‘जुगनू’ बन गया सेक्स वर्करों के बच्चों की आवाज, बिहार के रेड लाइट एरिया की हैरान कर देने वाली कहानी

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‘जुगनू’ बन गया सेक्स वर्करों के बच्चों की आवाज, बिहार के रेड लाइट एरिया की हैरान कर देने वाली कहानी

‘जुगनू’ बन गया सेक्स वर्करों के बच्चों की आवाज, बिहार के रेड लाइट एरिया की हैरान कर देने वाली कहानी

मुजफ्फरपुर : 1990 के दशक के अंत में बिहार सरकार ने राज्य के गरीब और वंचित लोगों की ओर से बनाए गए हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए पटना में एक कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें, मुजफ्फरपुर जिले के रेड-लाइट एरिया की सेक्स वर्कर्स की तीन बेटियों के बनाए क्रोशिए (थालपोश) लोगों ने खूब पसंद किये। राज्य की राजधानी में अपने काम की सराहना देखकर लड़कियां रोमांचित हो गईं। लेकिन, अगली सुबह एक स्थानीय हिंदी अखबार ने उन्हें अपमानित किया। इसने उनकी तस्वीर को हेडलाइन के साथ लिख दिया कि यौनकर्मियों ने भी समारोह में भाग लिया। सवाल ये है कि वे बच्चे थे, जो कड़ी मेहनत से अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने की कोशिश कर रहे थे।

रेड लाइट एरिया का दर्द

मुजफ्फरपुर चतुर्भुज स्थान में पली बढ़ी और सामाजिक सरोकार के कार्यों को लेकर पहचानी जाने वाली नसीमा खातून कहती हैं कि हम एक नई छवि बनाने, समाज में स्वीकार्यता पाने और सम्मान का जीवन जीने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। दुख होता है, जब हमें नियमित रूप से ‘सेक्स वर्कर्स’ के रूप में पेश किया जाता है। उस दौरान किसी ने हमारा समर्थन नहीं किया। हिंदी अखबार की इस गलती से दुखी लड़कियों ने उस दिन कार्यक्रम स्थल को छोड़ दिया। इस कटु अनुभव से प्ररित होकर लड़कियों ने अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए ‘जुगनू’ नाम की हस्तलिखित पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।

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2004 में ‘जुगनू’ शुरू

इस प्रकार 2004 में ‘जुगनू’ नाम का एक त्रैमासिक केवल छह पृष्ठों के साथ पैदा हुआ। ये अब 36-पृष्ठ तक बढ़ गया है और अभी भी नसीमा के संपादन में में सेक्स वर्कर्स के बच्चों की ओर से लिखा और प्रकाशित किया जाता है। ‘जुगनू’ बिहार के अलावा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी पढ़ा जाता है। नसीमा कहती हैं कि हमने यौनकर्मियों की समस्याओं को उठाने और लोगों और पुलिस के सामने तथ्य रखने के लिए अपनी खुद की पत्रिका शुरू करने का फैसला किया, जो अक्सर हमारे साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करते हैं।

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रेड-लाइट क्षेत्रों की छवि बदल रही है

‘जुगनू’ का लक्ष्य चतुर्भुज स्थान जैसे रेड-लाइट क्षेत्रों की छवि को बदलना है। जिसका नाम पास के एक मंदिर के नाम पर रखा गया है और मुगल काल से अस्तित्व में है। नसीमा अपने पत्रकारों – सेक्स वर्कर्स के अन्य बच्चों – की मदद से अभियान चलाती हैं, जो मुफ्त में काम करते हैं। लड़के और लड़कियां समाचार एकत्र करने के लिए साइकिल और परिवहन के अन्य साधनों से बाहर निकलती हैं और फिर हस्तलिखित कहानियां पत्रिका को देती हैं।

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डीएम ने देखी पत्रिका

‘जुगनू’ के शुरूआती वर्षों में ये बाल पत्रकार लोगों से मिलने से झिझकते थे और अपनी पहचान छुपाते थे, लेकिन अब वे नियमित रूप से जिला कार्यालयों में जाते हैं। हाल ही में, दो पत्रकारों- एमडी आरिफ और सबीना खातून ने मुजफ्फरपुर के डीएम प्रणव कुमार को अपनी पत्रिका दिखाई। आरिफ ने टीओआई को बताया कि वंचितों के बारे में लिखने के हमारे प्रयासों से डीएम साहब बहुत खुश दिखे और उन्होंने हमें प्रोत्साहित किया। ‘जुगनू’ के पन्नों को देखें, तो इसके पत्रकारों के लेखों के बीच आपको अन्य यौनकर्मियों के बच्चों के नोट्स भी मिलेंगे। जैसे- राजस्थान के बाड़मेर के किशननाथ कालबेलिया सामाजिक कार्यकर्ता बनना चाहते हैं, वहीं 15 वर्षीय ओमनाथ सेना में सेवा करना चाहते हैं।

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‘जुगनू’ की पहुंच बढ़ रही

‘जुगनू’ की पहुंच बढ़ रही है। अब इसकी आपूर्ति महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों में की जाती है। धर्मार्थ संगठनों ने इसे बढ़ने में मदद करने के लिए कदम बढ़ाया है। नसीमा को सुखद आश्चर्य हुआ जब हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने उनसे पत्रिका को अपने पुस्तकालय में भेजने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि सेक्स वर्कर्स के बच्चों को सम्मान दिलाने की मेरी कोशिश जारी रहेगी। मुझे अब समाज के हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है। यह हम सभी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। नसीमा को हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सलाहकार समूह के सदस्य के रूप में नामित किया गया है।

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सम्मान चाहिए

फरवरी 2014 की रिपोर्ट बताती है कि वेश्यावृत्ति में लड़कियां और महिलाएं पर हुए एक अध्ययन के मुताबिक उसमें कहा गया है कि भारत में 28 लाख से अधिक यौनकर्मी हैं, जो लगभग फीफा विश्व कप के मेजबान कतर की आबादी के बराबर है। उस समय अकेले बिहार में 1.6 लाख से अधिक यौनकर्मी थे। अध्ययन का सबसे परेशान करने वाला निष्कर्ष यह था कि 36% यौनकर्मी बच्चे थे। रेड-लाइट एरिया में बदलाव आ रहे हैं। क्योंकि सेक्स वर्कर्स के बच्चे देह व्यापार से दूर हो गए हैं। वे सम्मान के साथ जीने के लिए शिक्षा की ओर रुख कर रहे हैं।

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