जामा मस्जिद: लड़कियों, ‘धर्म के ठेकेदारों का चक्रव्यूह तोड़ दो’ | Delhi Jama Masjid Withdraws Ban On Girls Entry On Lt Governor Request | Patrika News

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जामा मस्जिद: लड़कियों, ‘धर्म के ठेकेदारों का चक्रव्यूह तोड़ दो’ | Delhi Jama Masjid Withdraws Ban On Girls Entry On Lt Governor Request | Patrika News

जामा मस्जिद: लड़कियों, ‘धर्म के ठेकेदारों का चक्रव्यूह तोड़ दो’ | Delhi Jama Masjid Withdraws Ban On Girls Entry On Lt Governor Request | News 4 Social

फेमिनिस्ट-फेमिनिस्ट कहकर लगाते ठहाके, लड़ाइयों में उलझी रहे आधी आबादी?
यह पुरुष-वर्चस्ववादी बड़े अच्छे से जानते हैं और बड़ी चालाकी से यही चक्रव्यूह रचते रहते हैं। यही चक्रव्यूह रचा गया पहले सबरीमाला में और फिर दिल्ली की जामा मस्जिद में। बस, अपने मंदिर जाने, मस्जिद जाने के अधिकार को लेकर लड़ाइयों में उलझी रहे आधी आबादी और यह मजे से उसे फेमिनिस्ट, फेमिनिस्ट कह ठहाके लगाते रहे।

जामा मस्जिद मामले में एलजी का हस्तक्षेप, हटाए गए पोस्टर
यह तो अच्छा है कि हम एक लोकतंत्र में हैं और सबरीमाला में सभी उम्र की महिलाओं को जाने की अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने दी, तो जामा मस्जिद मामले में दिल्ली महिला आयोग तुरंत हरकत में आया और संवैधानिक अधिकार याद दिलाया गया।

एलजी के हस्तक्षेप से इमाम ने मस्जिद के गेट से वो पोस्टर हटावा दिए हैं, जिन पर लिखा था कि महिलाएं अकेले या समूह में मस्जिद में प्रवेश नहीं करेंगी। धर्म वाले ठेकेदार तो हैं ही टोह में
मंदिर में महिलाएं प्रवेश ना करें, मस्जिद में ना करें, दरगाह में ना करें, बाजार में वो ना दिखें, ऐसे कपड़ों में ना दिखें-वैसे कपड़ों में ना दिखें। दिखें तो ढकी-छिपी-डरी हुई दिखे। नहीं तो नेता ‘लड़कों से गलती हो जाती है’ टाइप बयान दे देंगे। धर्म वाले ठेकेदार तो हैं ही टोह में।

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने कहा, यह देश ईरान नहीं, भारत है
दिल्ली की जामा मस्जिद में लड़कियों के प्रवेश पर पाबंदी को लेकर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने सही आइना दिखाया कि यह देश ईरान नहीं है। भारत है और यहां लोकतंत्र है।

संविधान है, जो बराबरी के अधिकार देता है। जहां आप महिला होने पर उसका कोई संवैधानिक अधिकार छीन नहीं सकते और पुरुष होने पर एक अधिकार ज्यादा नहीं दे सकते। इसीलिए बात होती है, राजनीति और सभी महत्वपूर्ण पदों, नीति नियामकों के तौर पर महिलाओं की भागीदारी की। स्वाति मालीवाल जैसी ही महिलाएं जब लोकतंत्र के नीति नियामकों में अग्रणी भूमिकाओं में आएंगी, तब जाकर यह धार्मिक चक्रव्यूह की लड़ाइयों पर लगाम लगेंगी।

हम भी महिलाएं इन मंदिर-मस्जिद से निकलकर अपनी राह पकड़ें
वैसे कथित धर्म के ठेकेदारों की ओर से बहिष्कृत की जाने वाली महिलाएं, इन धार्मिक पाखंडों का ही बहिष्कार कर दे तो अच्छा। कुछ उर्जा बचेगी, जो इस दुनिया को अपने रहने लायक और कुछ खूबसूरत बनाने के काम आएगी। उर्जा को समेट लें और मुंह फेर लें पाखंडों से। ताकि इनसे उलझने की बजाय, किसी कॉम्पटिशन एग्जाम में ही उलझेंगे या चुनाव ही लड़ लेंगे कि लोकतंत्र में ऐसे मामले फिर सिर ही ना उठा सकें।

(यह ओपीनियन तसनीम खान के अपने निजी विचार हैं। जो पत्रकार और ‘ऐ मेरे रहनुमा’ उपन्यास की लेखक हैं। महिला मुद्दों पर लेखन को लेकर लाडली मीडिया अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकी हैं)



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