जब पूर्व उपराष्ट्रपित की बहन ने डर के साए में काटी थी आज़ादी की रात, चारों तरफ मचा था कत्लेआम…

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जब पूर्व उपराष्ट्रपित की बहन ने डर के साए में काटी थी आज़ादी की रात, चारों तरफ मचा था कत्लेआम…

जब पूर्व उपराष्ट्रपित की बहन ने डर के साए में काटी थी आज़ादी की रात, चारों तरफ मचा था कत्लेआम…

अश्वनी शर्मा, नई दिल्ली: पूर्व उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की बहन सुभद्रा खोसला देश को आजादी मिलने के बावजूद उसका जश्न नहीं मना पाई थीं। जिस समय भारत में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था उस वक्त देश की सबसे युवा स्वतंत्रता सेनानी लाहौर के एक शिविर में अपने परिवार के साथ थीं। आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण उन्हें लाहौर के एक शिविर में शरण लेनी पड़ी थी। 14 अगस्त 1947 की रात को याद कर वह कहती हैं कि हर ओर डर और आतंक का माहौल था। कत्लेआम मचा था। पाकिस्तान जहां अपनी आजादी का जश्न मना रहा था, वहीं पाकिस्तान से निर्वासित होने वाले परिवार शिविरों में अनहोनी की आशंका में रात काट रहे थे। उस समय पिता शिविर में आए और मिट्टी की तेल की बोतल व सिलाई देकर कहा कि जब तक हम हैं रक्षा करेंगे। नहीं कर पाए तो खुद को आग लगा लेना।

अविभाजित हिन्दुस्तान के पंजाब में तरनतारन तहसील के कोट मोहल्ला मोहम्मद खान में 30 नवंबर 1928 को जन्म लेने वाली सुभद्रा अब 95 साल की हैं। उनकी एक छोटी बहन हैं जिनका नाम निर्मलकांता है। वह उनसे 10 साल छोटी हैं। फिलहाल, वह दिल्ली में रह रही हैं। सुभद्रा ने पंजाब विश्वविद्यालय से एमए किया है। उन्होंने जालंधर कन्या महाविद्यालय से उन्होंने स्नातक की डिग्री ली। सुभद्रा की शादी 1951 में हुई । उनके पति का नाम गणपत राय खोसला था।

सुभद्रा ने बताया कि उनके पिता लाला अंचित राम विभाजन के बाद लाहौर में विस्थापित हिंदुओं के लिए पलायन अधिकारी का काम कर रहे थे। उस दौरान मां सत्यवती बेटियों की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित रहा करती थीं। सुभद्रा ने बताया कि बंटवारे के बाद भारत सरकार ने उनके पिता को संविधान सभा का सदस्य बनाया। उसके बाद पूरा परिवार अक्टूबर 1947 में भारत आ गया।

सुभद्रा खोसला

पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए सुभद्रा बताती है कि वह अपने पिता अंचित राम से काफी प्रेरित थीं। पिता को ही देखकर उन्होंने विदेशी कपड़ा छोड़ने के लिए अभियान चलाया। सुभद्रा बताती हैं कि दादा भगवानदास कोहली मखमल पहनते थे। मेरे पिता के कहने पर उन्होंने भी विदेशी कपड़ा पहनना छोड़ दिया और खादी पहनना शुरू कर दिया। सुभद्रा ने पिता को याद करते हुए कहा कि काफी धन दौलत होने के बावजूद पिता काफी सादगी भरा जीवन जीते थे। पूरी जिंदगी दो रुपये वाली जूती और खादी पहनी। सबको भोजन कराने के बाद खुद खाना खाते थे।

सुभद्रा बताती है कि वह अपने जीवन में दो घटना कभी नहीं भूल सकती। पहली महज 13 साल की उम्र में जेल जाना और फिर जेल में चारपाई की सीढ़ी लगाकर झंडा फहराना। वहीं दूसरी बात 14 अगस्त 1947 की रात। हर तरफ चीख-पुकार व कई जगह जश्न मना रहे थे। इस बीच पिता आए और मिट्टी के तेल की बोतल व दियासलाई देकर कहा था कि हम जब तक है रक्षा करेंगे। नहीं कर पाए तो आप सब लोग आत्मदाह कर लेना।

जेल में ऐसे फहराया था झंडा
सुभद्रा ने बताया कि 26 अगस्त, 1942 को रक्षाबंधन था। उनकी उम्र 13 साल थी। सुबह इन्द्र कुमार गुजराल (जो बाद में प्राइम मिनिस्टर बने) वो आए थे। उन्हें राखी बांधी। उन्होंने कहा कि शाम को खाना साथ में खाएंगे। दिन में अनारकली बाजार में उन्होंने विदेशी कपड़ा छोड़ने का आंदोलन किया। इस बीच उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। वह 14 महीने जेल में रहीं। उनके साथ उनकी मां और बहन भी थीं। बाहर लोग काफी प्रदर्शन कर रहे थे। इसलिए कोर्ट की सुनवाई अंदर ही होने लगी। सुभद्रा ने बताया कि 9 अक्टूबर 1942 को जेल में उन्होंने अन्य महिला के साथ मिलकर चारपाई को एक के ऊपर एक झंडा रखकर फहराया। झंडा फहराने के दौरान 40 से 50 महिला जेल में थीं। इस बीच जेल के सुपरिंटेंडेंट मनमोहन ने हमें धमकाने के लिए पुलिस वालों को बुला लिया। फिर अंदर ही धरना दिया गया। इस दौरान “आजादी के नारों से दुनिया को हिला देंगे, सोतों का क्या कहना हम मुर्दों को जगा देंगे…..” गाया गया । सुभद्रा ने जेल की दुश्वारियों को याद करते हुए कहा कि हमें गंदा खाना दिया जाता था। खाने के लिए भी हमने जेल में धरना दिया। परेशान होकर जेलकर्मियों ने सबको अलग-अलग कर दिया। पुराने दौर को याद करते हुए सुभद्रा कहती हैं कि आज आपस में प्रेम नहीं है, अब लोगों में लालच समा गया है। पहले के दौर जैसा कुछ नहीं है।

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