चुनाव बाद भी किसी से कोई गठबंधन नहीं करेगी BSP, जानें चुनावी रणनीति पर और क्या बोले पार्टी के महासचिव

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चुनाव बाद भी किसी से कोई गठबंधन नहीं करेगी BSP, जानें चुनावी रणनीति पर और क्या बोले पार्टी के महासचिव

लखनऊ: यूपी चुनाव (UP Elections) में लड़ाई हमेशा चौतरफा होती है। इस चुनाव में जहां वर्तमान सत्ताधारी पार्टी भाजपा जीत के बड़े दावे कर रही है। वहीं, दूसरी तरफा सपा कई पार्टियों के साथ गठबंधन करके चुनौती दे रही है। कांग्रेस प्रियंका की अगुआई में चुनाव लड़ रही है तो बीएसपी अकेले ही पूर्ण बहुमत का दावा कर रही है। बीएसपी की तैयारी, रणनीति और दावों पर दीप सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र (Satish Chandra Mishra) से खास मुलाकात की।

इस चुनाव में आपको कितनी सीटों की उम्मीद है?
हमें पूरा भरोसा है। एक चरण का चुनाव हो जाने के बाद यह भरोसा और बढ़ गया है। हमारी पूर्ण बहुमत की सरकार बनने जा रही है। अबकी बार 2007 से भी ज्यादा सीटों पर हम जीतकर आ रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जनता कि बीएसपी सिर्फ वादे नहीं करती। करके दिखाने में यकीन रखती है। आज जनता बहन जी के शासन और उस समय की कानून व्यवस्था को शिद्दत से याद कर रही है।

अखिलेश यादव 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, बीजेपी 350 पार की बात कर रही है और आप भी बहुमत का दावा कर रहे हैं। सीटें कुछ ज्यादा नहीं हो रहीं?
एक हजार सीटें हों यूपी में तो इन सबकी बातें सही हो जाएं। सीटें तो 403 ही हैं। हां, ये निश्चित मान कर चलिए कि बहुमत इस बार बीएसपी को ही मिलेगा। देखिएगा, 2007 की तरह ही चौंकाने वाले नतीजे आने वाले हैं।

सोशल इंजीनियरिंग आपने 2007 में भी की थी। इस बार उसमें क्या नया प्रयोग है?
अबकी बार हम पूरे 75 जिलों में गए और वहां प्रबुद्ध सम्मेलन किए। सबसे पहले 23 जुलाई से इसकी शुरुआत हमने ही की। उसके बाद दूसरों ने हमारी नकल की और प्रबुद्ध सम्मेलन किए। हमारे सम्मेलनों में तो हजारों लोग आ रहे थे। उसमें 90 फीसदी ब्राह्मण थे। बाकी पार्टियों ने दो-तीन सम्मेलन किए और देखा कि लोग आ नहीं रहे। खासतौर से ब्राह्मण तो बिल्कुल नदारद थे तो सम्मेलन बंद करने पड़े। सोशल इंजिनियरिंग का सबसे बड़ा उदाहरण टिकट वितरण है, जो बहनजी ने किया है। सभी समाजों को पूरा प्रतिनिधित्व दिया है। बहनजी जो कहती हैं, करके दिखाती हैं। मुस्लिम समाज और ओबीसी को बहुत टिकट दिए हैं। सवर्णों को और उसमें भी अलग-अलग जातियों को टिकट दिए हैं। दलितों को रिजर्व सीटों के अलावा भी टिकट दिए गए हैं।

बीएसपी सबसे पहले टिकट घोषित कर देती थी लेकिन इस बार देर से घोषित हो रहे हैं और उनमें भी बार-बार बदलाव क्यों करना पड़ रहा है?
बीएसपी ने ही सबसे पहले करीब 300 सीटों पर टिकट घोषित कर दिए थे। वो अपना प्रचार भी कर रहे थे। कुछ सीटें ऐसी थीं, जिन पर कई समीकरण देखने थे और विचार करना था, उनको ही रोका हुआ था।

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इस बार दूसरी पार्टियों के बागियों को इतना टिकट क्यों दिए हैं?
कुछ सीटें छोड़ दी गई थीं, उनमें यदि कोई मजबूत दावेदार मिला है या दूसरे दल से आया है तो उसको टिकट दिया है। लोग कहते थे कि बीएसपी से नेता जा रहे हैं। आप लिस्ट उठाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि कितने लोग बीएसपी में आए हैं। सिटिंग एमएलए के अलावा कई बड़े नेता शामिल हुए हैं। ऐसे नेताओं की संख्या ही चार दर्जन से ज्यादा है।

लेकिन आपके पुराने नेता पार्टी छोड़ क्यों रहे हैं?
जो पार्टी छोड़ रहे हैं या निकाले जा रहे हैं, ये वही लोग हैं, जो निष्क्रिय हो गए थे या पार्टी के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था। आपको याद होगा 6-7 एमएलए वो थे, जिन्होंने सपा के प्रभाव में आकर राज्यसभा में एक उद्योगपति को वोट डाले थे। हमारी पार्टी एक अनुशासित पार्टी है। जिसने भी अनुशासनहीनता की, उसको निकालकर बाहर कर दिया गया। जो निकाले गए, वे सभी ऐसे नेता थे जो बसपा में आकर ही नेता बने। उससे पहले कोई उनको जानता भी नहीं था। उसके बाद यदि पार्टी को ही धोखा देंगे तो पार्टी से बाहर किए जाएंगे और नए लोग आएंगे।

जब इतने नेता चले जाएंगे तो फिर चेहरे कहां से लाएंगे?
पार्टी विश्वासघात और अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं कर सकती। जो बाहर किए गए, उनकी जगह निश्चित तौर पर नए लोग आएंगे। अबकी बार तो इतने अच्छे और खासकर युवा नेता आ रहे हैं। आप लिस्ट उठाकर देखिए। उनका बैकग्राउंड देखिए। इस बार 70 प्रतिशत युवा चेहरे पार्टी ने दिए हैं। ये सब पार्टी को आगे बढ़ाने का काम करेंगे। भविष्य को ध्यान में रखकर काम किया गया है। बहनजी ने कहा था कि 50 प्रतिशत टिकट युवाओं को देंगे। उससे ज्यादा ही दिए हैं।

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आपकी पार्टी ने किसी से अभी गठबंधन नहीं किया है। चुनाव बाद किसी को बहुमत नहीं मिला तो किसके साथ जाएंगे?
यह बात बहुत पहले साफ की जा चुकी है कि हमारी पार्टी न चुनाव से पहले और न चुनाव के बाद किसी से गठबंधन करेगी। हम अकेले चुनाव लड़ रहे हैं। अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के मकसद से काम कर रहे हैं। हमें भरोसा है, यही वजह है कि बीएसपी ही ऐसी पार्टी है जिसने किसी से गठबंधन नहीं किया। भाजपा और सपा के पास वो क्षमता और विश्वास नहीं है। इसीलिए वो बैशाखियों के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं। हम अपने बलबूते चुनाव लड़ रहे हैं।

रिजर्व सीटों पर क्या तैयारी है?
आपको याद होगा कि 2007 में ब्राह्मण समाज ने भाईचारा बनाते हुए रिजर्व सीटों पर बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की थी तो हम 62 सीटें जीते थे। बाकी पर भी थोड़े-थोड़ अंतर से दूसरे नंबर पर थे। इस बार भी हमने पहले ब्राह्मण सम्मेलन किए। उसके बाद रिजर्व सीटों पर सभाएं कीं। वहां देखा कि ब्राह्मण समाज बाकी पार्टियों से दु:खी होकर हमारी तरफ आ रहा है।

तो आपको पूरा भरोसा है कि ब्राह्मण बसपा को ही वोट करेंगे?
इस समय ब्राह्मण बहुत दु:खी हैं। आप देखिए 100 से ज्यादा ब्राह्मणों के एनकाउंटर हो गए, 500 से ज्यादा हत्याएं कर दी गईं। खुशी दुबे पर चार्जशीट में कोई आरोप नहीं है लेकिन 19 महीने से जमानत नहीं दी जा रही। मंत्री का बेटा जिसने किसानों की हत्या की, उसको जमानत मिल जाती है। हाथरस में रेनू शर्मा को जमानत मिलने के बावजूद तब तक जेल में रखा, जब तक वह मर नहीं गई। यही वजहें हैं कि ब्राह्मण समाज अबकी बार जिस तरह से हमारे साथ जुड़ा है,उसके चौंकाने वाले नतीजे आएंगे। ब्राह्मण सपा के साथ कभी नहीं जा सकता। उसने देखा था कि सपा शासन में कितना अत्याचार हुआ था। भाजपा ने तो किया ही है, इसलिए जाएगा नहीं। बीएसपी ने उनको हर तरह से सम्मान दिया था। ब्राह्मणों को 15 से ज्यादा कैबिनेट मंत्रालय दिए गए थे, एक दर्जन से ज्यादा एमएलसी बनाए थे। एडवोकेट जनरल से लेकर नीचे तक 400 से ज्यादा सरकारी वकील बनाए थे।

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