गुडबाय… ‘इमोशनल’ सफर! | Movie Review Goodbye | Patrika News

177
गुडबाय… ‘इमोशनल’ सफर! | Movie Review Goodbye | Patrika News

गुडबाय… ‘इमोशनल’ सफर! | Movie Review Goodbye | Patrika News


आर्यन शर्मा @ जयपुर. अपनी जिंदगी में हम तमाम तरह की प्लानिंग करते हैं, मगर शायद ही इस बात की प्लानिंग करते हैं कि मरने के बाद हमें कैसे जाना है यानी हमारा अंतिम संस्कार किस तरह होना चाहिए। फिल्म ‘गुडबाय’ में इसी को आधार बनाकर एक उलझे ‘रिश्तों’ वाले परिवार के ‘मोतियों’ को डोर में पिरोने की कोशिश की है। फिल्म में इमोशंस के सही राग को छुआ है, पर दिल की गहराई तक एहसास जगाने में लेखन के स्तर पर थोड़ी चूक हो गई। हालांकि एक-दो सीन ऐसे हैं जो अंदर से हिलाकर रख देंगे। फिल्म में परिवार की उलझनें, जीवन व कॅरियर की आपाधापी के कारण आपस में बढ़ती दूरियां, पिता-पुत्री के बीच वैचारिक मतभेद और किसी अपने को खो देने का दर्द है। फिल्म में कुछ लाइट और फनी मोमेंट भी हैं।

कहानी में हरीश (अमिताभ बच्चन) और गायत्री भल्ला (नीना गुप्ता) के चार बच्चे हैं। सभी अपने जॉब और पैशन के कारण देश-दुनिया में अलग-अलग जगह सेटल हैं। गायत्री का अचानक निधन हो जाता है। सूचना मिलने पर उनके बच्चे होमटाउन चंडीगढ़ पहुंचते हैं। हरीश को लगता है कि बच्चों को मां की मौत का ज्यादा अफसोस नहीं है। वहीं, बेटी तारा (रश्मिका मंदाना) मां के अंतिम संस्कार के रीति-रिवाजों पर सवाल उठाती है। मसलन, मौत के बाद नाक में रुई क्यों डाली जाती है और पैरों को बांधा क्यों जाता है। वह उनमें लॉजिक और साइंस तलाशने की बात करती है…।

फिल्म में कुछ ऐसे किरदार दिखाए हैं, जिन्हें देखकर अपने आस-पास के कुछ लोग जेहन में आ सकते हैं। यहां एक पड़ोसी भी हैं, जिन्हें देखकर आपको अपनी कॉलोनी के किसी ऐसे ही अंकल की याद आ जाएगी।फिल्म में अंतिम संस्कार के समय लोगों को मोबाइल में और सेल्फी लेने में मशगूल दिखाया है जो आज की हकीकत की ओर इशारा है। यही नहीं, पड़ोसनों का कुर्सी के लिए इंतजार, श्मशानघाट में वॉट्सऐप ग्रुप बनाने की कोशिश जैसी चीजें सीधे तौर पर ‘असंवेदनशीलता’ को दर्शाती हैं।
कहानी में स्पष्ट खामियां हैं। स्क्रीनप्ले टाइट नहीं है, एक बिंदु के बाद ठहर-सा जाता है। विकास बहल का निर्देशन औसत है। ट्रैक पकड़ने के बाद भी कहीं-कहीं भटक जाता है। ‘जयकाल महाकाल’ सॉन्ग को छोड़ कर गीत-संगीत कमजोर है। एडिटिंग में भी गुंजाइश है। सिनेमैटोग्राफी डीसेंट रही है।
बेशक अमिताभ बच्चन की एक्टिंग मूवी की ‘रीढ़’ है। बस, फ्रेशनेस की कमी है। दरअसल, इस तरह के किरदार वह पहले भी अदा कर चुके हैं। रश्मिका मंदाना की यह बॉलीवुड में पहली फिल्म है। वह अच्छी लगी हैं, लेकिन हिंदी संवादों में उनका एक्सेंट थोड़ा अटपटा है। नीना गुप्ता की परफॉर्मेंस इंद्रधनुष की तरह खूबसूरत है। वे जब भी स्क्रीन पर आती हैं, दिल में बस जाती हैं। हरिद्वार में ‘मॉडर्न-डे’ पंडित के कैमियो में सुनील ग्रोवर मनोरंजक हैं। पावेल गुलाटी ओके हैं। आशीष विद्यार्थी ने पड़ोसी का किरदार अच्छे से निभाया है। एली अवराम के पास करने को कुछ खास नहीं है, वहीं शिविन नारंग को भी ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला। अगर आप अमिताभ व रश्मिका के फैन हैं और भावनाओं की लहर के साथ फैमिली ड्रामा पसंद है तो खुद महसूस कर तय करें कि वाकई में फिल्म कैसी है।

राजस्थान की और समाचार देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Rajasthan News