गुटखा, पान मसाला, सिगरेट… दिल्ली में तंबाकू उत्पादों पर बैन अब और नहीं, हाई कोर्ट ने हटाया
हाई कोर्ट ने माना कि अधिसूचना जारी करने को सही ठहराने के लिए धुआं रहित और धूम्रपान करने वाले तंबाकू के बीच वर्गीकरण(क्लासिफिकेशन) संविधान के अनुच्छेद 14 का साफतौर पर उल्लंघन है। कोर्ट ने संबंधित अधिसूचनाओं को रद्द करते हुए कहा कि फूड सिक्योरिटी कमिश्नर ने एफएसएसए के तहत मौजूद शक्तियों का उल्लंघन करते हुए अपनी शक्ति और अधिकार का दायरा पार किया है और इसलिए अधिसूचनाएं बरकरार रहने लायक नहीं हैं।
तंबाकू के कारोबार में शामिल कंपनियों ने उन्होंने तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध को चुनौती देते हुए आधार दिया कि वो मनमानी हैं और एफएसएसए का उल्लंघन है, क्योंकि फूड सिक्यॉरिटी कमिश्नर को चबाने वाले तंबाकू की बिक्री निर्माण, भंडारण, वितरण पर इस तरह का प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ये कोटपा के तहत नोटिफाइड प्रोडक्ट्स हैं और किसी भी तरह से एफएसएसए के दायरे में ‘भोजन’ के रूप में नहीं माना जा सकता है।
HC ने तंबाकू के इस्तेमाल से सेहत को नुकसान की बात मानी, इसकी निंदा की
हाई कोर्ट ने तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचनाओं को रद्द करने के साथ ऐसे प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल की निंदा भी की। जस्टिस कंठ ने कहा कि यह अदालत तंबाकू के धुआं रहित या धूम्रपान, दोनों तरह से इस्तेमाल से होने वाले दुष्प्रभावों और बीमारियों के प्रति सचेत है। इस अदालत का मानना है कि तंबाकू का इस्तेमाल हर रूप में लोगों की सेहत के लिए हानिकारक है। इसीलिए अदालत किसी भी तरह से तंबाकू के इस्तेमाल की निंदा करती है।
कोर्ट ने कहा कि जन स्वास्थ्य समाज और देश के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है और इसलिए, इसे सुरक्षित रखने के लिए सभी संभव कदम उठाने की जरूरत है। यह भी कहा कि यह अदालत इस बात से सहमत है कि तंबाकू और निकोटीन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, हालांकि, मौजूदा मामले में कुछ वैधानिक सवाल हैं, जो केवल जनता की सजगता और भावनाओं के आधार पर तय नहीं किया जा सकता है। उन्हें न्यायिक फैसलों के आलोक में कानून की स्पष्ट व्याख्या के आधार पर निपटाया जाता है।