गाजियाबाद में ब्लैक फंगस से पहली मौत, प्रशासन अलर्ट लेकिन नहीं मिल पा रहा है मरीजों का कोई डेटा

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गाजियाबाद में ब्लैक फंगस से पहली मौत, प्रशासन अलर्ट लेकिन नहीं मिल पा रहा है मरीजों का कोई डेटा

गाजियाबाद
एक तरफ जिले में ब्लैक फंगस (म्युकर माइकोसिस) के केस बढ़ते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही भी बढ़ती जा रही है। गुरुवार को ब्लैक फंगस से जिले में पहली मौत हुई, लेकिन इस केस की बात तो दूर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के पास न तो इससे पीड़ित मरीजों का कोई डेटा है और न ही इसके उपचार के लिए कोई इंतजाम किए जा रहे हैं।

स्वास्थ्य अधिकारी कहते हैं कि जिले के किसी भी सरकारी अस्पताल में अभी तक ब्लैक फंगस का कोई मरीज नहीं आया है। यदि मरीज आता है तो उसे रामा या संतोष अस्पताल में भर्ती करवाया जाएगा। वहीं, अभी तक स्वास्थ्य विभाग को शासन से ब्लैक फंगस की कोई दवा भी नहीं मिली है। वहीं जानकारी के अनुसार, जिले में अब तक ब्लैक फंगस के 21 मरीज मिल चुके हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग को पहली मौत की भी जानकारी नहीं है।

दवाई के लिए भटकते रहे
नूरनगर सिहानी में रहने वाले पुष्पेंद्र ने बताया कि उनके पिता राजा राम (57) को 24 अप्रैल से बुखार होना शुरू हुआ था। 2 मई को जांच कराई तो कोरोना की पुष्टि हुई। इसके बाद उन्हें संजयनगर स्थित कंबाइंड अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में कोई देख-रेख नहीं हो रही थी और सांस की दिक्कत होने लगी। इसके बाद उन्होंने अपने पिता को वसुंधरा सेक्टर-1 स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। वहां कोरोना के उपचार के दौरान उनके पिता को काफी स्टेरॉयड दिया जाने लगा। धीरे-धीरे उनकी आंखों की पुतलियां टेढ़ी हो गईं। उन्होंने डॉक्टरों से इस परेशानी के बारे में बताया तो उन्होंने उस बीमारी को नजरअंदाज कर दिया।

तबीयत बिगड़ने पर किया रेफर
तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर अस्पताल प्रबंधन ने ईएनटी को दिखाने को कहा। इसके बाद राजा राम को हर्ष पॉली क्लीनिक में भर्ती कराया। यहां सीनियर ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. बी.पी. त्यागी इनका इलाज कर रहे थे। वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन दवाई नहीं मिलने के कारण वह परेशान थे। इसके बाद परिजनों को दवाई के लिए बोल दिया गया। उन्होंने बताया कि वह प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के चक्कर काटते रहे, लेकिन कहीं इसकी दवाई नहीं मिली। गुरुवार सुबह राजा राम की उपचार के दौरान मौत हो गई।

पिछले 2 दिन में मिले 6 मरीज

राजनगर स्थित हर्ष पॉली क्लीनिक में पिछले 2 दिन में ब्लैक फंगस के 5 और नए मरीज आ चुके हैं। यहां के डॉ. बी.पी. त्यागी ने बताया कि हाल ही में 5 और नए केस उनके पास आए हैं, जिनका उपचार चल रहा है। इसके अलावा राजनगर एक्सटेंशन में रहने वाली रचना त्यागी में गुरुवार को ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई। अभी वह वैशाली के मैक्स अस्पताल में भर्ती हैं। रचना त्यागी और उनके पति पिछले माह कोरोना की चपेट में आ गए थे। 7 मई को वे दोनों कोरोना से स्वस्थ होकर घर आ गए थे। 11 मई को उनके सिर में दर्द और आंखों में लाली बढ़ गई, जिसके बाद काफी प्रयास के बाद मैक्स अस्पताल में उनको भर्ती किया गया, जिसमें डॉक्टर्स ने ब्लैक फंगस की पुष्टि की।

सरकारी स्तर पर कोई सुविधा नहीं
शासन स्तर से ब्लैक फंगस के उपचार के लिए गाइडलाइंस तो जारी कर दी गई हैं, लेकिन जिले में अभी तक दवाएं नहीं भेजी गई हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में ब्लैक फंगस का उपचार शुरू ही नहीं हो सका है। सरकारी स्तर पर ब्लैक फंगस के मरीजों का डेटा भी नहीं जुटाया जा रहा है। सीएमओ डॉ. एन.के. गुप्ता ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में अभी तक ब्लैक फंगस का कोई मरीज नहीं आया है। यदि आता है तो उसे संतोष या रामा अस्पताल में भर्ती करवाया जाएगा। शासन से दवा मंगवाने के लिए पत्र भेजा गया है। अभी हम दवाई मिलने का इंतजार कर रहे हैं।

जिले में दवाई न होने से ज्यादा दिक्कत
इससे पीड़ित लोग जैसे तैसे प्राइवेट अस्पताल में इलाज करा रहे हैं, लेकिन यहां इसकी दवाइयां न होने से ज्यादा दिक्कत हो रही है। सरकारी स्तर तो दूर यहां के प्राइवेट मेडिकल स्टोर पर भी इसकी दवाई नहीं मिल रही है। लोगों को मजबूरी में दिल्ली का रुख करना पड़ रहा है, वहां भी सबको दवाई मिल जाए ये जरूरी नहीं। हर्ष पॉलीक्लिनिक में भर्ती एक मरीज के परिवारीजन ने बताया कि दिल्ली में केवल चार स्थानों पर ब्लैक फंगस की दवाएं मिल रही हैं और बहुत महंगी हैं। उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेचकर मां के उपचार के लिए दिल्ली से दवाएं खरीदी हैं। डॉ. त्यागी ने बताया कि उन्होंने प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से दवाएं उपलब्ध करवाने की मांग की है, लेकिन अभी तक उन्हें कोई आश्वासन तक नहीं मिला है।

दिल्ली रेफर किए जा रहे मरीज
ब्लैक फंगस को लेकर सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि जहां प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग मरीजों का डेटा एकत्र नहीं कर रहा है, वहीं सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों को दिल्ली रेफर किया जा रहा है। लोनी में एक महिला में ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद उसे दिल्ली के एम्स रेफर कर दिया गया। महिला की नाक और आंख में दर्द की शिकायत थी। एमआरआई में ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई। लोनी सीएचसी पहुंचने पर वहां उपचार नहीं होने की बात कही गई। इसके अलावा कई और लोगों को दिल्ली व नोएडा रेफर किया गया है।

इलाज है काफी महंगा
जिले के सरकारी अस्पतालों में ब्लैक फंगस के इलाज की सुविधा नहीं है और प्राइवेट में इसका इलाज काफी महंगा साबित हो रहा है। एक्सपर्ट के अनुसार, इसके इलाज में रोजाना करीब 1 लाख रुपये का का खर्चा आता है और 20 से 21 दिन तक उपचार चलता है। जिले में फिलहाल सीनियर ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. बी.पी. त्यागी ही इस बीमारी का उपचार कर रहे हैं। डॉ. त्यागी बताते हैं कि उनके यहां अब तक ब्लैक फंगस के 21 मरीज आ चुके हैं। इनमें से 5 स्वस्थ होकर घर जा चुके हैं और 15 मरीजों का अभी उपचार चल रहा है। स्वस्थ होने वाले मरीजों में एक मरीज की बाईं आंख निकालनी पड़ी थी। निजी स्तर पर इस बीमारी का उपचार कोरोना से भी महंगा है, जो मिडिल क्लास और गरीब व्यक्ति के सामर्थ्य से बाहर है।

पुरुषों में समस्या ज्यादा
डॉ. त्यागी के अनुसार उनके पास आने वाले मरीजों का आयु वर्ग 40 से 68 वर्ष है। इनमें पुरुषों की संख्या ज्यादा है। इस बीमारी में ज्यादातर बाईं नाक और आंख प्रभावित होती है। मरीज को यदि एक सप्ताह के अंदर उपचार मिल जाए तो उसके बचने की उम्मीद 50 प्रतिशत होती है और उसके बाद केवल 5 प्रतिशत। यदि फंगस दिमाग तक पहुंच जाए तो बचने की उम्मीद लगभग खत्म हो जाती है।

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