गर्मी के दिन बढते जाएंगे, सर्दी होगी कम, बारिश भी होगी अनियमित, यह हो रहा ग्लोबल वार्मिंग का असर | climate change conference in bhopal | Patrika News
कार्यक्रम में शामिल अंतरिक्ष उपयोग केंद्र इसरो के डायरेक्टर नीलेश एम देसाई ने कहां कि क्लाइमेंट चेंज पूरे विश्व के लिए चुनाैती है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। देश में जलवायु परिवर्तन को लेकर नई तकनीकों पर काम किया जा रहा है। भारत बहुत बड़ा देश है और यहां हर राज्य की अलग-अलग जलवायु है, ऐसे में हर राज्य की जलवायु के बारे में पता लगाना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन तकनीक के उपयोग से इस पर काम कर रहे हैं। उपग्रह, सेटेलाइट्स के माध्यम से इस पर अध्ययन किया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि ग्राउंड लेवल पर सर्वे कर सेंपल लेकर भी जलवायु के बारे में पता लगाना चाहिए।
बाढ़, सूखा, लू, चक्रवात सभी में हो रहा परिवर्तन प्रो पंकज कुमार ने बताया जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा, लू, चक्रवात सहित सभी परिवर्तन आ रहा है। जैसे पिछले साल भोपाल में लू ज्यादा थी इसी प्रकार इस साल बारिश अधिक हुई है। समुद्र में वाष्पीकरण के कारण चक्रवात की िस्थति बनती है। पहले तीन से 4 चक्रवात आते थे, जो अब 5 से 6 हो गए है। इसी प्रकार लू के दिन बढ़ रहे हैं। पहले कोल्ड डे, शीत लहर अधिक होती थी, लेकिन अब पहले के मुकाबले इसमें कमी आ रही है। इसका कारण कहीं ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ना है। कार्बन का उत्सर्जन अधिक हो रहा है। पावर इंडस्टी, आटोमोबाइल, मिथेन के कारण ग्रीन हाउस का प्रभाव अधिक हो रहा है। इसे रोकना बहुत जरूरी है। पिछले पिछले सात आठ दशकों में औसत तापमान लगभग 1.5 बढ़ा है।
सटीक भविष्यवाणी का दायरा बढ़ाएंगे मौसम विशेषज्ञ जीडी मिश्रा ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मौसम की प्रकृतियों में लगातार परिवर्तन आ रहा है। मौसम विभाग मौसम की इन विकृतियों को रोक तो नहीं सकता, लेकिन आम जनता को इससे निपटने के लिए जरूरी दिशा निर्देश देते रहता है। पिछले कुछ वर्षों में मौसम की भविष्यवाणियों का दायरा भी बढ़ाया गया है। किसी क्षेत्र में बिजली गिरने की संभावना है, कहां ओले गिरेंगे इसे लेकर कई भविष्यवाणी समय-समय पर की जाती है। आम जनता को चाहिए कि इसे फॉलो करे। इसके साथ ही कीटनाशक आदि का प्रयोग कम करे, वनो को बचाए।
15 साल बाद हुआ भोपाल में आयोजन भोपाल में इस संगोष्ठी का आयोजन तकरीबन 15 साल बाद हुआ है। वर्ष 1992 से हर साल इस सेमिनार का आयोजन होता आ रहा है और वर्ष 2007 के बाद पूरे 15 साल के बाद भोपाल को इसकी मेजबानी करने का अवसर प्राप्त हुआ। संगोष्ठी में विशेष रूप से अखिलेश गुप्रा (सेक्रेटरी, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधन बोर्ड, नई दिल्ली), प्रोफेसर सुनीत गुप्ता (कुलपति, राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल), प्रोफेसर रूपा कुमार कोली , डॉ. आर. कृष्णन (डायरेक्टर, भारतीय उष्णकटिबधीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे), डॉ. एम. राजीवन (पूर्व सचिव, भारत सरकार, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय) आदि मौजूद रहे।
कार्यक्रम में शामिल अंतरिक्ष उपयोग केंद्र इसरो के डायरेक्टर नीलेश एम देसाई ने कहां कि क्लाइमेंट चेंज पूरे विश्व के लिए चुनाैती है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। देश में जलवायु परिवर्तन को लेकर नई तकनीकों पर काम किया जा रहा है। भारत बहुत बड़ा देश है और यहां हर राज्य की अलग-अलग जलवायु है, ऐसे में हर राज्य की जलवायु के बारे में पता लगाना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन तकनीक के उपयोग से इस पर काम कर रहे हैं। उपग्रह, सेटेलाइट्स के माध्यम से इस पर अध्ययन किया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि ग्राउंड लेवल पर सर्वे कर सेंपल लेकर भी जलवायु के बारे में पता लगाना चाहिए।
बाढ़, सूखा, लू, चक्रवात सभी में हो रहा परिवर्तन प्रो पंकज कुमार ने बताया जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा, लू, चक्रवात सहित सभी परिवर्तन आ रहा है। जैसे पिछले साल भोपाल में लू ज्यादा थी इसी प्रकार इस साल बारिश अधिक हुई है। समुद्र में वाष्पीकरण के कारण चक्रवात की िस्थति बनती है। पहले तीन से 4 चक्रवात आते थे, जो अब 5 से 6 हो गए है। इसी प्रकार लू के दिन बढ़ रहे हैं। पहले कोल्ड डे, शीत लहर अधिक होती थी, लेकिन अब पहले के मुकाबले इसमें कमी आ रही है। इसका कारण कहीं ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ना है। कार्बन का उत्सर्जन अधिक हो रहा है। पावर इंडस्टी, आटोमोबाइल, मिथेन के कारण ग्रीन हाउस का प्रभाव अधिक हो रहा है। इसे रोकना बहुत जरूरी है। पिछले पिछले सात आठ दशकों में औसत तापमान लगभग 1.5 बढ़ा है।
सटीक भविष्यवाणी का दायरा बढ़ाएंगे मौसम विशेषज्ञ जीडी मिश्रा ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मौसम की प्रकृतियों में लगातार परिवर्तन आ रहा है। मौसम विभाग मौसम की इन विकृतियों को रोक तो नहीं सकता, लेकिन आम जनता को इससे निपटने के लिए जरूरी दिशा निर्देश देते रहता है। पिछले कुछ वर्षों में मौसम की भविष्यवाणियों का दायरा भी बढ़ाया गया है। किसी क्षेत्र में बिजली गिरने की संभावना है, कहां ओले गिरेंगे इसे लेकर कई भविष्यवाणी समय-समय पर की जाती है। आम जनता को चाहिए कि इसे फॉलो करे। इसके साथ ही कीटनाशक आदि का प्रयोग कम करे, वनो को बचाए।
15 साल बाद हुआ भोपाल में आयोजन भोपाल में इस संगोष्ठी का आयोजन तकरीबन 15 साल बाद हुआ है। वर्ष 1992 से हर साल इस सेमिनार का आयोजन होता आ रहा है और वर्ष 2007 के बाद पूरे 15 साल के बाद भोपाल को इसकी मेजबानी करने का अवसर प्राप्त हुआ। संगोष्ठी में विशेष रूप से अखिलेश गुप्रा (सेक्रेटरी, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधन बोर्ड, नई दिल्ली), प्रोफेसर सुनीत गुप्ता (कुलपति, राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल), प्रोफेसर रूपा कुमार कोली , डॉ. आर. कृष्णन (डायरेक्टर, भारतीय उष्णकटिबधीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे), डॉ. एम. राजीवन (पूर्व सचिव, भारत सरकार, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय) आदि मौजूद रहे।