गणेश उत्सव 2022- भोपाल में विराजे हैं महागणपति, पूरे देश में केवल 2 ​ही ​हैं ऐसे मंदिर | only Mahaganpati temple in MP with 10 arms | Patrika News

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गणेश उत्सव 2022- भोपाल में विराजे हैं महागणपति, पूरे देश में केवल 2 ​ही ​हैं ऐसे मंदिर | only Mahaganpati temple in MP with 10 arms | Patrika News

गणेश उत्सव 2022- भोपाल में विराजे हैं महागणपति, पूरे देश में केवल 2 ​ही ​हैं ऐसे मंदिर | only Mahaganpati temple in MP with 10 arms | Patrika News

भगवान गणपति यूं ताे विश्व के अनेक कोनों में विराजमान है, वहीं जब बात गणेश जी के स्वरूपों की आती है, तो महागणपति या महागणेश का स्वरूप सबसे दिव्य माना जाता है। एक ओर जहां श्री गणेशजी महाराष्ट्र में अष्टविनायक के रूप में विराजित हैं ताे वहीं भोपाल के 10 नंबर में मध्यप्रदेश का एक मात्र महागणेश मंदिर माैजूद है।

खास बात यह है कि महागणपति के मंदिर देशभर में केवल 2 जगह पर ही माैजूद हैं। पहला महागणपति मंदिर महाराष्ट्र में पुणे के पास रांझण गांव में स्थित है (यह मंदिर गणेश जी के अष्ट मंदिरों में से एक यानि अष्टविनायक है, जबकि दूसरा मध्यप्रदेश के भाेपाल में है)। भोपाल के मंदिर में रखी प्रतिमा का पंडित ब्रजेश प्रसाद तिवारी द्वारा निर्माण और प्रतिष्ठा परामर्श किया गया है।

बताया जाता है कि इनकी आस्था थी कि मंदिर में भगवान श्रीगणेश के पूर्ण स्वरूप की स्थापना की जाए। मंदिर से प्राप्त जानकारी के अनुसार समिति ने मध्यप्रदेश में इस स्वरूप के गणपति नहीं होने की वजह से निर्णय लिया कि यहां श्री महागणेश जी मंदिर बनवाया जाए।

दरअसल पुणे के महाराज पेशवा द्वारा शताब्दी पूर्व सतारा महाराष्ट्र में प्रतिष्ठित महागणपति का पहला मंदिर है। वहीं, दूसरी प्रतिमा भाेपाल के इस मंदिर में माैजूद है। यहां भगवान श्रीणेशजी की प्रतिमा की ऊंचाई 5 फीट है। जबकि इसका वजन 13 क्विंटल के आसपास है।

मंदिर की विशेषता
करीब 50 साल बने इस मंदिर की आधारशिला बाइस अगस्त 1982 में रखी गई थी। यहां हर साल गणेश जन्मोत्सव पर कई कार्यक्रम होते हैं। भगवान गणपति को यहां लोग मनोकामना पूर्ण करने वाले भगवान के स्वरूप में पूजते हैं।

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ये है महागणपति की मान्यता
श्रीगणेशजी के महागणपति वाले इस स्वरूप के संबंध में मान्यता है कि इन्हें बड़े कारखानों और फैक्ट्री में स्थपित करना चाहिए, ऐसा करना शुभ माना जाता है।

ये है महत्त्व
भगवान श्रीगणेशजी महागणपति स्वरूप में 10 भुजाओं वाले हैं। यहां इनकी सभी 10 भुजाओं में अलग-अलग वस्तु और अस्त्र हैं। इसके तहत इनके बाएं हाथ की पहली भुजा में जहां भगवान विष्णु का चक्र माैजूद है, वहीं दूसरी भुजा में अनार फल है। इसके अतिरिक्त तीसरी भुजा में धनुष, जबकि चौथी भुजा में भगवान शंकर कर त्रिशूल और पांचवीं भुजा में गदा मौजूद है।

वहीं यदि बाएं हाथ की बात करें तो बाएं हाथ की पहली भुजा में सुख समृद्धि का कलश, जबकि दूसरी भुजा में भगवान का एक दंत है इसके अतिरिक्त तीसरी में धान है जाे हरियाली का प्रतीक है, जबकि चौथी में पाश व इसके अतिरिक्त पांचवीं भुजा में देवी महालक्ष्मी का कमल भी मौजूद है।

ऐसे पहुंचें यहां
भगवान श्री गणेशजी का यह मंदिर भाेपाल में स्थित है, ऐसे में आप इनके दर्शन के लिए बस या ट्रेन किसी भी माध्यम से भाेपाल आ सकते हैं। यह मंदिर देश के पहले प्राइवेट स्टेशन रानी कमलापति से चंद मीटर की दूरी पर ही माैजूद है।



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