गंगा बेसिन जैसा संरक्षण तो हुआ नहीं, गंगा को प्रदूषित करने का जरिया जरूर बनेगी कलियासोत नदी | Kaliasot river was not protected like Ganga basin | Patrika News
राजधानी से निकलने वाली कलियासोत नदी की लंबाई 36 किलोमीटर है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-सीपीसीबी ने देश में 351 रिवर स्ट्रेच को प्रदूषित क्षेणी में चिन्हित किया है, उनमें से एक कलियासोत भी है। एनजीटी ने भी इसका संरक्षण गंगा नदी बेसिन के अनुसार करने का आदेश दिया था। उसके बाद नदी के कायाकल्प के लिए योजना तो बनाई गई लेकिन इसमें से अभी तक कोई काम नहीं हुआ।
यह बनी योजना – नदी के प्रदूषणकारी स्रोतों की पहचान कर उन पर नियंत्रण करना।
– नदी में सीधे सीवेज नहीं मिले इसके लिए आसपास पर्याप्त एसटीपी, ईटीपी आदि बनवाना और उसका संचालन सुनिश्चित करना।
– सीवेज वाले नालों को डायवर्ट करना या उन्हें सीवेज र्टीटमेंट प्लांट से जोड़ना । इसके साथ एसटीपी से निकलने वाले ट्रीटेड पानी को उपयोग में लाना ताकि भूजल और नदी के जल का दोहन कम से कम हो।
– नदी के दोनों ओर बड़े स्तर पर पौधरोपण कर ग्रीनबेल्ट विकसित करना।
– नदी में सॉलिड वेस्ट नहीं मिले इसके लिए उसके समुचित प्रबंधन की व्यवस्था करना।
– आसपास भूजल की नियमित जांच और उसकी निकासी पर नियंत्रण। – आसपास के क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देना।
– नदी के प्रवाह को बनाए रखने के लिए ग्राउंड वाटर चार्जिंग को बढ़ावा देना।
यह है हकीकत – कलियासोत नदी के किनारे ग्रीनबेल्ट के स्थान पर कई बड़े अपार्टमेंट और शैक्षणिक संस्थान बने हुए हैं। लेकिन यहां पर कोई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट या ईटीपी नहीं बनाया गया है। इससे इनका अनुपचारित सीवेज सीधे नदी में जा रहा है।
– दामखेड़ा में नदी के ग्रीनबेल्ट में ही बड़ी संख्या में झुग्गियां बन गई हैं और बड़े अपार्टमेंट भी बने हुए हैं। इन सबका अनुपचारित सीवेज सीधे कलियासोत नदी में जा रहा है। यहां पर एक भी एसटीपी नहीं बना।
– नदी को पाट कर उस पर कई डेयरियां भी संचालित की जा रही हैं। यहां दर्जनों गाय और भैंस पाली गई हैं। उनका भी अपशिष्ट सीधा नदी में जा रहा है।
– नगर निगम ने सर्वधर्म पुल के नजदीक एक मल मूत्र विसर्जन पॉइंट बनाया है। इसका भी अनट्रीटेड सीवेज सीधे कलियासोत नदी में प्रवाहित किया जा रहा है।
नोट- यह हकीकत एमपीपीसीबी की टीम के निरीक्षण में ही सामने आई थी।
डेढ़ किमी तक के भूजल में मिले थे कॉलीफॉर्म बैैक्टीरिया पत्रिका की पहल पर डॉ सुभाष सी पांडे ने कलियासोत नदी के आसपास स्थित पांच स्थानों से पानी के सेंपल लेकर वर्ष 2021 में इनकी जांच लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की स्टेट लैब में कराई थी। इस रिपोर्ट में कलियासोत नदी सहित विभिन्न कॉलोनियों के ट्यूबवेल से लिए गए सेंपलों में भी फीकल कोलीफॉर्म और टोटल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया बहुत अधिक संख्या में पाए गए हैं। खास बात यह है कि नदी के डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कॉलोनी के ट्यूबवेल के पानी में भी टोटल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए गए थे। इससे साफ जाहिर है कि आसपास डेढ़ किमी तक का भूजल दूषित हो चुका है।
——— कलियासोत नदी के दोनों किनारों के निरीक्षण में सामने आया था कि ग्रीनबेल्ट में ही अवैध झुग्गियां बसी हुई हैं। किनारे कई कॉलोनियां हैं। इनका सीवेज नालों के माध्यम से सीधे नदी में मिल रहा है। कॉलोनियों में भी एसटीपी नहीं बने हैं। एनजीटी के निर्देशानुसार प्लान बनाकर सीपीसीबी को भेज दिया गया है। नदी किनारे एसटीपी बनवाने और अवैध कब्जे हटाने के लिए नगर निगम को लिखा गया है।
– ब्रजेश शर्मा, रीजनल ऑफिसर एमपीपीसीबी
राजधानी से निकलने वाली कलियासोत नदी की लंबाई 36 किलोमीटर है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-सीपीसीबी ने देश में 351 रिवर स्ट्रेच को प्रदूषित क्षेणी में चिन्हित किया है, उनमें से एक कलियासोत भी है। एनजीटी ने भी इसका संरक्षण गंगा नदी बेसिन के अनुसार करने का आदेश दिया था। उसके बाद नदी के कायाकल्प के लिए योजना तो बनाई गई लेकिन इसमें से अभी तक कोई काम नहीं हुआ।
यह बनी योजना – नदी के प्रदूषणकारी स्रोतों की पहचान कर उन पर नियंत्रण करना।
– नदी में सीधे सीवेज नहीं मिले इसके लिए आसपास पर्याप्त एसटीपी, ईटीपी आदि बनवाना और उसका संचालन सुनिश्चित करना।
– सीवेज वाले नालों को डायवर्ट करना या उन्हें सीवेज र्टीटमेंट प्लांट से जोड़ना । इसके साथ एसटीपी से निकलने वाले ट्रीटेड पानी को उपयोग में लाना ताकि भूजल और नदी के जल का दोहन कम से कम हो।
– नदी के दोनों ओर बड़े स्तर पर पौधरोपण कर ग्रीनबेल्ट विकसित करना।
– नदी में सॉलिड वेस्ट नहीं मिले इसके लिए उसके समुचित प्रबंधन की व्यवस्था करना।
– आसपास भूजल की नियमित जांच और उसकी निकासी पर नियंत्रण। – आसपास के क्षेत्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देना।
– नदी के प्रवाह को बनाए रखने के लिए ग्राउंड वाटर चार्जिंग को बढ़ावा देना।
यह है हकीकत – कलियासोत नदी के किनारे ग्रीनबेल्ट के स्थान पर कई बड़े अपार्टमेंट और शैक्षणिक संस्थान बने हुए हैं। लेकिन यहां पर कोई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट या ईटीपी नहीं बनाया गया है। इससे इनका अनुपचारित सीवेज सीधे नदी में जा रहा है।
– दामखेड़ा में नदी के ग्रीनबेल्ट में ही बड़ी संख्या में झुग्गियां बन गई हैं और बड़े अपार्टमेंट भी बने हुए हैं। इन सबका अनुपचारित सीवेज सीधे कलियासोत नदी में जा रहा है। यहां पर एक भी एसटीपी नहीं बना।
– नदी को पाट कर उस पर कई डेयरियां भी संचालित की जा रही हैं। यहां दर्जनों गाय और भैंस पाली गई हैं। उनका भी अपशिष्ट सीधा नदी में जा रहा है।
– नगर निगम ने सर्वधर्म पुल के नजदीक एक मल मूत्र विसर्जन पॉइंट बनाया है। इसका भी अनट्रीटेड सीवेज सीधे कलियासोत नदी में प्रवाहित किया जा रहा है।
नोट- यह हकीकत एमपीपीसीबी की टीम के निरीक्षण में ही सामने आई थी।
डेढ़ किमी तक के भूजल में मिले थे कॉलीफॉर्म बैैक्टीरिया पत्रिका की पहल पर डॉ सुभाष सी पांडे ने कलियासोत नदी के आसपास स्थित पांच स्थानों से पानी के सेंपल लेकर वर्ष 2021 में इनकी जांच लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की स्टेट लैब में कराई थी। इस रिपोर्ट में कलियासोत नदी सहित विभिन्न कॉलोनियों के ट्यूबवेल से लिए गए सेंपलों में भी फीकल कोलीफॉर्म और टोटल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया बहुत अधिक संख्या में पाए गए हैं। खास बात यह है कि नदी के डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कॉलोनी के ट्यूबवेल के पानी में भी टोटल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया पाए गए थे। इससे साफ जाहिर है कि आसपास डेढ़ किमी तक का भूजल दूषित हो चुका है।
——— कलियासोत नदी के दोनों किनारों के निरीक्षण में सामने आया था कि ग्रीनबेल्ट में ही अवैध झुग्गियां बसी हुई हैं। किनारे कई कॉलोनियां हैं। इनका सीवेज नालों के माध्यम से सीधे नदी में मिल रहा है। कॉलोनियों में भी एसटीपी नहीं बने हैं। एनजीटी के निर्देशानुसार प्लान बनाकर सीपीसीबी को भेज दिया गया है। नदी किनारे एसटीपी बनवाने और अवैध कब्जे हटाने के लिए नगर निगम को लिखा गया है।
– ब्रजेश शर्मा, रीजनल ऑफिसर एमपीपीसीबी