क्या 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक? केंद्र से बोला सुप्रीम कोर्ट, अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं

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क्या 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक? केंद्र से बोला सुप्रीम कोर्ट, अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं

नई दिल्ली: राज्य स्तर पर हिंदुओं समेत अन्य अल्पसंख्यकों की पहचान से जुड़े मामले का समाधान किए जाने की जरूरत है। मामले में अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं होगा… एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह बात कही। बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि देश के 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वहां हिंदुओं की जगह स्थानीय बहुसंख्यक समुदायों को ही अल्पसंख्यक हितैषी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। इस मामले में केंद्र ने सोमवार को SC से कहा था कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और इस संबंध में कोई भी निर्णय राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा।

हमें यह नहीं समझ आ रहा कि केंद्र सरकार तय नहीं कर पा रही कि उसे क्या करना है। ये सब विचार पहले ही दिए जाने थे। इससे अनिश्चितता पैदा होती है और हमारे विचार किए जाने से पहले चीजें सार्वजनिक मंच पर आ जाती हैं। इससे एक और समस्या खड़ी होती है।

‘हिदू अल्पसंख्यक’ वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट

हमें समझ में नहीं आ रहा…
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने मंगलवार को कहा कि ये ऐसे मामले हैं, जिनके समाधान की जरूरत है और हर चीज पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता। पीठ ने कहा, ‘हमें यह नहीं समझ आ रहा कि केंद्र सरकार यह तय नहीं कर पा रही कि उसे क्या करना है। ये सब विचार पहले ही दिए जाने थे। इससे अनिश्चितता पैदा होती है और हमारे विचार किए जाने से पहले चीजें सार्वजनिक मंच पर आ जाती हैं। इससे एक और समस्या खड़ी होती है।’

यह कहना समाधान नहीं हो सकता कि सब कुछ इतना जटिल है… भारत सरकार यह जवाब नहीं दे सकती। आप निर्णय लीजिए कि आप क्या करना चाहते हैं। यदि आप उनसे विचार-विमर्श करना चाहते हैं तो कीजिए। आपको ऐसा करने से रोक कौन रहा है

सुप्रीम कोर्ट

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सुनवाई शुरू होने पर एक वकील ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई बाद में करने का अनुरोध किया कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता किसी अन्य अदालत में व्यस्त हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने केंद्र द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे का जिक्र किया।

आपको रोक कौन रहा है…
इसके बाद पीठ ने टिप्पणी की, ‘यदि केंद्र राज्यों से विचार-विमर्श करना चाहता है तो हमें फैसला करना होगा। यह कहना समाधान नहीं हो सकता कि सब कुछ इतना जटिल है, हम ऐसा करेंगे। भारत सरकार यह जवाब नहीं दे सकती। आप निर्णय लीजिए कि आप क्या करना चाहते हैं। यदि आप उनसे विचार-विमर्श करना चाहते हैं तो कीजिए। आपको ऐसा करने से रोक कौन रहा है?’

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न्यायालय ने कहा, ‘इन मामलों के समाधान की आवश्यकता है। अलग-अलग रुख अपनाने से कोई फायदा नहीं होगा। यदि विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है तो हलफनामा दाखिल करने से पहले ही यह काम हो जाना चाहिए था। सॉलिसिटर जनरल को आने दीजिए।’

क्या 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक?
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने केंद्र को उस याचिका का जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के आदेश देने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में दाखिल हलफनामे में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 की धारा-2 सी के तहत छह समुदायों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया है।

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हलफनामे में कहा गया है, ‘रिट याचिका में शामिल प्रश्न के पूरे देश में दूरगामी प्रभाव हैं और इसलिए हितधारकों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बिना लिया गया कोई भी फैसला देश के लिए जटिलता पैदा कर सकता है।’ हलफनामे के मुताबिक, ‘अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है, लेकिन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले रुख को राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा।’

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मंत्रालय ने कहा कि इससे सुनिश्चित होगा कि केंद्र सरकार इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे के संबंध में भविष्य में किसी भी अनापेक्षित जटिलताओं को दूर करने के लिए कई सामाजिक, तार्किक और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत के समक्ष एक दृष्टिकोण रखने में सक्षम हो पाएगी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने पूर्व में शीर्ष अदालत को बताया था कि राज्य सरकारें संबंधित राज्य के भीतर हिंदुओं सहित किसी भी धार्मिक या भाषाई समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं।



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