क्या बनेंगे पीएम कैंडिडेट? अखिलेश का यह बड़ा संकेत, नीतीश कुमार से ममता तक की बढ़ेगी टेंशन

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क्या बनेंगे पीएम कैंडिडेट? अखिलेश का यह बड़ा संकेत, नीतीश कुमार से ममता तक की बढ़ेगी टेंशन

क्या बनेंगे पीएम कैंडिडेट? अखिलेश का यह बड़ा संकेत, नीतीश कुमार से ममता तक की बढ़ेगी टेंशन

लखनऊ: समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का नया बयान इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है। कन्नौज में एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद अखिलेश ने कहा कि से 2024 का चुनाव लड़ सकते हैं। पत्रकारों ने सवाल किया था कि आप लोकसभा चुनाव 2024 में उम्मीदवार होंगे? कन्नौज से उम्मीदवारी पेश करेंगे? सवाल के जवाब में अखिलेश का अंदाज सवालिया ही था, हम नेता है, चुनाव नहीं लड़ेंगे तो क्या करेंगे? लड़ेंगे। अब इसको लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जानी शुरू कर दी गई हैं। दरअसल, पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान अखिलेश यादव को फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चुना गया। इस मंच पर कई नेताओं ने उनके प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने की बात कही। उस समय अखिलेश यादव ने कहा था कि हम प्रधानमंत्री की दावेदारी नहीं कर रहे। बड़े लक्ष्य की नहीं सोच रहे। हमारा लक्ष्य 2024 में केंद्र की सत्ता से भारतीय जनता पार्टी को बाहर करने का है। हालांकि, समाजवादी पार्टी के नेताओं की ओर से लगातार उनके प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने की मांग उठती रही हैं। ऐसे में 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा का असर सीधे तौर पर इस उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बना रहे नीतीश कुमार पर पड़ना तय है। वहीं, विपक्ष की रणनीति को धार दे रही ममता बनर्जी के लिए भी यह एक नई चुनौती साबित हो सकती है। भले ही, अखिलेश यादव को पीएम पद का उम्मीदवार न घोषित किया जाए, लेकिन किसी अन्य नेता को भी चुनाव के पहले तीसरे फ्रंट का चेहरा घोषित करने में तो अब परेशानी होगी ही।

भाजपा अपनी रणनीति पर कर रही काम
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण तय करने में जुटे हुए हैं। इस क्रम में भारतीय जनता पार्टी भी पूरे जोर-शोर से तैयारी कर रही है। लगातार पार्टी की ओर से बूथ स्तर पर ध्यान में रखकर कार्यक्रमों का दौर चल रहा है। निकाय चुनाव के बहाने बूथ मैनेजमेंट कमेटी को लगातार सक्रिय बनाए रखने की कोशिश हो रही है। उत्तर प्रदेश, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। इस पर जीत दर्ज कर पार्टी केंद्र की सत्ता पर काबिज होने में पिछले 2 लोकसभा चुनाव में पार्टी कामयाब रही है। लोकसभा चुनाव 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार एनडीए ने यूपी की 80 में से 73 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया था। इसमें से 71 सीटों पर तो भाजपा के ही सांसद चुने गए।

लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बड़े गठबंधन के बाद भी भाजपा 80 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। वहीं, एनडीए को 64 सीटों पर जीत मिली। सपा- बसपा गठबंधन 15 सीटों पर सिमटी और कांग्रेस के खाते में 1 सीट गई। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए। उसके बाद से भाजपा ने राजनीतिक किलों को ढहाने का जो सिलसिला शुरू किया है, वह आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उप चुनाव तक जारी रहा। मैनपुरी लोकसभा चुनाव में सपा आक्रामक है। वहीं, अखिलेश यादव की नई घोषणा के मायने भी काफी अलग दिख रहे हैं।

अखिलेश की घोषणा पर उठे सवाल
अखिलेश यादव के ताजा बयान के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या वे लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री पद की विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर दावेदारी पेश करेंगे? अगर ऐसा होता है तो फिर उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव होगा। दरअसल, अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी दल के शीर्ष नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उस जगह को भरने की कोशिश विपक्ष के नेताओं के स्तर पर की जा रही है। पिछले दिनों सैफई से लेकर लखनऊ तक विपक्षी नेताओं का जमघट लगा रहा।

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर देश की विपक्ष की राजनीति के तमाम बड़े चेहरे मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद जुटे। अखिलेश से मुलाकात की। अपनी संवेदनाएं जाहिर की। संदेश दे दिया कि वे अखिलेश के साथ हर समय खड़े रहने को तैयार हैं। मतलब, एक चेहरे के तौर पर मुलायम सिंह यादव के रिप्लेसमेंट के रूप में अखिलेश यादव तैयार हो चुके हैं। अगर मैनपुरी उप चुनाव को जीतने में सफल होते हैं तो दावेदारी और पुख्ता होगी। ऐसे में केंद्र की सत्ता में एक बार फिर उनकी वापसी की चर्चा ने अलग माहौल बनाना शुरू कर दिया है।

2017 के बाद भी पकड़ी थी दिल्ली की राह
यूपी चुनाव 2017 के बाद प्रदेश की सत्ता गंवाने वाले अखिलेश यादव ने दिल्ली की राह पकड़ ली थी। वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में वे आजमगढ़ से चुनावी मैदान में उतरे। बड़े अंतर से जीत के बाद संसद पहुंचे, लेकिन यूपी चुनाव 2022 में अखिलेश यादव ने लखनऊ वापस लौटने का फैसला लिया। मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे। उनके सामने भाजपा ने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा। टक्कर ठीक-ठाक हुई, लेकिन समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अपनी जीत यहां से सुनिश्चित करने में कामयाब रहे। विधायक बने। सांसदी छोड़ी। संकेत दे दिया कि लखनऊ में ही रहेंगे। उत्तर प्रदेश की राजनीति ही करेंगे। केंद्र की राजनीति में अभी जाने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन, स्थितियां बदली। परिस्थितियां, मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद काफी बदलती दिख रही हैं।

सपा पिछले दिनों 2 लोकसभा उप चुनाव में हार चुकी है। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट गंवाने के बाद लोकसभा में सपा महज 3 सीटों पर सिमटी हुई दिख रही है। ऐसे में मैनपुरी का किला बचाना और अगले चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर बनाने की रणनीति तैयार करना अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में दिख रहा है। यही कारण है कि उन्होंने कन्नौज में लोकसभा चुनाव 2024 में उतरने के संकेत देकर अपनी तैयारी के संकेत दे दिए हैं।

पीएम पद की दावेदारी पर चर्चा क्यों?
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष के लोकसभा चुनाव में उतारने और प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर दावेदारी के मसले पर सवाल हो सकता है। यह भी पूछा जा सकता है कि अखिलेश यादव ने तो वर्ष 2019 में भी लोकसभा चुनाव लड़ा था। उस समय उनके प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में चर्चा क्यों नहीं हुई? इसका सीधा जवाब है कि तब मैनपुरी लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव लड़ रहे थे। उनके कद के सामने अखिलेश यादव के पक्ष में इस प्रकार की बातें कोई नहीं कर सका। हालांकि, पीएम उम्मीदवारी की दावेदारी का मसला तब भी खूब गरमाया था। प्रदेश की राजनीति में उस समय भी समाजवादी पार्टी, भाजपा के बाद सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उत्तर प्रदेश में स्थान रखती थी। लेकिन, लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान बसपा के साथ गठबंधन ने सारा खेल बिगाड़ दिया।

सपा- बसपा गठबंधन का सबसे अधिक फायदा बसपा को मिला। 2014 में 00 सीट जीतने वाली बसपा 10 सीटें जीतने में सफल हुई। वहीं, सपा 2014 की तरह ही 2019 में 5 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हो पाई। मतलब, पार्टी के चुनाव परिणाम में कोई अंतर नहीं आया। बसपा- सपा गठबंधन की राह अलग हो गई। अब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले समाजवादी पार्टी एक ऐसा माहौल बनाना चाहती है, जिस प्रकार का माहौल यूपी चुनाव 2022 के दौरान था। ऐसे में अखिलेश की भूमिका बड़ी होनी जरूरी दिखने लगी है।

यूपी की राजनीति को दो ध्रुवीय बनाने की कोशिश
सपा की ओर से कोशिश दो ध्रुवीय चुनाव की ही हो रही है। वोट दो भाग में ही बंटे, इसके प्रयास हो रहे हैं। भाजपा समर्थकों को एक तरफ कर विरोधियों के तमाम वोट सपा की ओर ट्रांसफर हों, प्रयास कुछ यही है। यूपी चुनाव 2022 के दौरान बसपा को 13 फीसदी से कम वोट शेयर मिला। यह सपा और भाजपा की दो ध्रुवीय चुनाव की रणनीति का ही परिणाम था। ऐसे में लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने के बाद अगर अखिलेश यादव के पक्ष में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की बात हुई तो उसका असर यूपी चुनाव के मैदान में दिख सकता है। भाजपा के पीएम उम्मीदवार के जवाब में सपा का पीएम उम्मीदवार। भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। पिछले दो चुनावों में इसका असर यूपी के राजनीतिक मैदान पर दिख चुका है। ऐसे में उनकी टक्कर में अगर समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव को कन्नौज से प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करने में सफल हो जाती है तो फिर पूरे यादवलैंड में वोट बैंक को एकजुट करने में पार्टी को सफलता मिल सकती है। सपा को इससे वर्ष 2014 और 2019 के चुनाव परिणामों से अलग प्रदर्शन करने में मदद मिल सकती है।

मैनपुरी निभाएगा अहम भूमिका
मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव सपा की रणनीति को धार देने में अहम भूमिका निभाएगा। उप चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान कई चीजें सामने आई हैं। शिवपाल यादव अब सपा के साथ आ गए हैं। मुलायम परिवार एकजुट दिख रहा है। शिवपाल यादव ने जसवंतनगर विधानसभा सीट पर एक सभा के दौरान यह भी दावा किया कि अगर मैनपुरी ने डिंपल यादव को रिकॉर्ड वोटों से जिता दिया तो 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 50 से अधिक सीटें जीत सकती है। इस दावे के पीछे का समीकरण तो शिवपाल यादव ही समझा सकते हैं। हालांकि, मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव को भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ सबसे बड़ा नेता पेश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाली है।

शिवपाल यादव भी इसी प्रकार की रणनीति पर काम करते दिख रहे हैं। उनके लिए लखनऊ का रास्ता अब तभी साफ होगा, जब वहां अखिलेश नहीं होंगे। मुलायम ने जिस प्रकार अखिलेश और शिवपाल को प्रदेश की सत्ता के केंद्र में रखकर खुद को केंद्र में सीमित किया था। हो सकता है, अखिलेश कुछ वैसा कर जाएं। यह सब मैनपुरी लोकसभा सीट के 8 दिसंबर को आने वाले चुनाव परिणाम पर निर्भर करेगा। हालांकि, अखिलेश के बयान ने राजनीतिक पारा तो गरमा ही दिया है।

नीतीश से ममता तक को बदलनी होगी रणनीति
नीतीश कुमार ने इस साल अगस्त में एनडीए से अपना नाता एक बार फिर तोड़ा। महागठबंधन से जुड़े। उस समय से लगातार यह चर्चा चलती रही है कि वह देश में थर्ड फ्रंट के लीडर बन सकते हैं। मतलब, थर्ड फ्रंट का चेहरा। सीधे शब्दों में कहें तो तीसरे फ्रंट का प्रधानमंत्री उम्मीदवार। थर्ड फ्रंट की अगुवाई इस समय टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार करते दिख रहे हैं। अखिलेश यादव की इन तीनों नेताओं के साथ पकड़ मजबूत है। ममता बनर्जी, अखिलेश के लिए प्रचार करने यूपी के चुनावी मैदान में उतरी थीं। शरद पवार भी आए थे। वहीं, अखिलेश यादव ने ममता बनर्जी की बनाई राह पर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग कर यह दिखाया है कि वे उनके साथ हैं। नीतीश कुमार एनडीए से बाहर- भीतर होते रहे हैं। ऐसे में थर्ड फ्रंट में उनकी भूमिका अभी तक साफ नहीं दिख रही है।

थर्ड फ्रंट के लीडर के तौर पर दावेदारी के चंद्रशेखर राव की भी है। ममता बनर्जी का भी नाम आगे आ रहा है। वहीं, सबसे बड़े प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी दल के शीर्ष नेता के तौर पर अखिलेश यादव का नाम ही सबसे आगे दिख रहा है। इन नामों के बीच किसके सिर विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के दावेदार का ताज सजता है, यह देखना दिलचस्प होगा। हालांकि, अखिलेश यादव की घोषणा ने अन्य नेताओं की चिंता जरूर बढ़ा दी है।

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