क्या तुगलक के किले में जिन्न रहते हैं? तांत्रिकों के ‘काले धंधे’ पर ASI ने लगवा दिया लोहे का ताला

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क्या तुगलक के किले में जिन्न रहते हैं? तांत्रिकों के ‘काले धंधे’ पर ASI ने लगवा दिया लोहे का ताला

क्या तुगलक के किले में जिन्न रहते हैं? तांत्रिकों के ‘काले धंधे’ पर ASI ने लगवा दिया लोहे का ताला

नई दिल्ली: ये कहानी 14वीं शताब्दी के मध्य की है। दिल्ली में यमुना के किनारे फिरोजशाह तुगलक ने फिरोजाबाद शहर बसाया। अब उसका कम हिस्सा ही अस्तित्व में है। महल का परिसर और किले का कुछ हिस्सा ही बचा है, जिसे फिरोजशाह कोटला कहा जाता है। कहते हैं कि तब का फिरोजाबाद हौज खास से लेकर हिंदूराव अस्पताल तक के इलाके में फैला हुआ था। समय बदला और लोगों ने मानना शुरू कर दिया कि फिरोजशाह किले में जिन्न रहते हैं। यह बात फैल गई कि उनसे जो भी मांगिए वह पूरी हो जाती है। लोग अगरबत्ती, दीये, दूध, अनाज आदि लेकर पहुंचने लगे। क्या सच में इस किले में जिन्न रहते हैं? जिन्न के बारे में शायद आपने कई सीरियलों में देखा या पढ़ा होगा। यह एक काल्पनिक पात्र है जिसे जादुई शक्तियों वाला इंसान बताया जाता है।

फिरोजशाह का किला

इस किले के संरक्षण का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पास है। हर गुरुवार को यहां बड़ी संख्या में लोग आने लगे। ASI लगातार इसे लोगों में फैल रहा अंधविश्वास बता रहा था। अपील की जा रही थी कि लोग इस ऐतिहासिक इमारत को नुकसान न पहुंचने दें। दरअसल, जिन्न की इबादत के चक्कर में अगरबत्ती सुलगाने और दीये जलने से इमारत गंदी हो रही थी। अनाज चढ़ाए जाने से चूहे भी बढ़ रहे थे। ऐसा पिछले करीब 50 साल से चला आ रहा था। अब इस पर ताला लग गया है।

जी हां, अब तांत्रिकों की एक नहीं चलेगी। जहां तांत्रिक तंत्र-मंत्र करते थे, उस मस्जिद स्मारक के सभी दरवाजों पर लोहे के गेट लगाकर ताला लगा दिया गया है। प्रशासन ने साफ कहा है कि आगे से ऐसा कुछ हुआ तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।

तब दिल्ली पर था तुगलक का राज
दिल्ली में 1321-1414 तक तुगलक वंश का शासन रहा। 100 साल के दौरान 11 शासकों का राज रहा। इसी वंश का तीसरा शासक था फिरोजशाह तुगलक। इतिहासकार उनके द्वारा दिल्ली में बसाए गए नए शहर फिरोजाबाद को दिल्ली का पांचवां शहर मानते हैं। किले में एक गोलाकार बावली है। कोटला फिरोजशाह में कई महल बने थे। अब कुछ इमारतों के अवशेष बचे हैं।

इसके अंदर बनी मस्जिद का नाम जामी मस्जिद है। अब इसकी एक ही दीवार बची है। तुगलक के राज में यह सबसे बड़ी मस्जिद हुआ करती थी। बताते हैं कि तैमूर ने 1398 में इस मस्जिद में इबादत की थी। वह इस मस्जिद से इतना प्रभावित हुआ कि इसकी जैसी मस्जिद समरकंद में बनवाई। किले में मौजूद बावली में आज भी पानी है और इसका इस्तेमाल नहाने और गर्मी से बचने के लिए किया जाता था। फिरोजशाह को एक ऐसा शासक माना जाता है जिसकी इतिहास और वास्तुकला में काफी रुचि थी। उसने कई शिकारगाह बनवाए और कई शहरों की बुनियाद डाली। हौज खास के तालाब, कुतुब मीनार और सूरज कुंड की मरम्मत भी इस शासक ने करवाई थी।

लेकिन समय के साथ यह शहर वीरान हो गया। इसके बाद यह बात फैल गई कि ज्यादा समय तक यहां लोग नहीं रहे इसलिए जिन्नों ने किले पर कब्जा कर लिया है। आसपास रहने वाले लोगों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसे जिन्नों से जोड़कर देखा गया और फिर अंधविश्वास जंगल में आग की तरह फैल गई।

इतिहास की गवाह इमारतों पर दीयों की कालिख

अंधविश्वास पनपने से ऐसे शासक के इतिहास को याद कराने वाली इमारतें ही गंदी होती हैं। फिरोजशाह कोटला महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। ASI यहां लगातार संरक्षण के काम करता रहता है। लेकिन मस्जिद के तहखाने में तांत्रिकों का तंत्र-मंत्र चल रहा था। अंदर कई जगह आग जलती दिखाई देती थी। लोग यहां दूर-दूर से सिर्फ तांत्रिकों के चक्कर में चले आते थे। दिल्ली के इतिहास का साक्षी कोटला फिरोजशाह अंधविश्वास का केंद्र बनता चला गया। तांत्रिक दावा करते कि वे यहां आत्माओं को बुलाते हैं, गरीब जनता उनके बहकावे में आ जाती थी। मुराद पूरी होने की उम्मीद में लोग खूब धूप-अगरबत्ती जलाते थे।

अब ASI की तालाबंदी के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि लोग जिन्न का चक्कर छोड़कर इतिहास को याद रखना चाहेंगे। आखिर, ऐसी ही इमारतें तो दिल्ली का इतिहास बताती हैं।

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