कैसे चीन के चक्कर में बर्बाद हुआ श्रीलंका, भारत पहुंचे इन परिवारों का दर्द पूरी कहानी बताने के लिए काफी

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कैसे चीन के चक्कर में बर्बाद हुआ श्रीलंका, भारत पहुंचे इन परिवारों का दर्द पूरी कहानी बताने के लिए काफी

नई दिल्ली: कुछ दिनों से लगातार हम अपने पड़ोसी देश श्रीलंका (Sri Lanka) में महंगाई और आर्थिक संकट (Economic Crisis) की खबरें सुन रहे हैं। हालांकि यह सिर्फ महंगाई और आर्थिक संकट के दौर से गुजरने तक ही सीमित नहीं है। इसका असर दिखना शुरू हो गया है और हालात ऐसे बन गए हैं कि लोग देश छोड़कर भी जाने लगे हैं। ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ यह अलग विषय और इस पर भी बात होगी लेकिन दो परिवारों के सामने ऐसी क्या मजबूरी आ गई जो नियमों की अनदेखी कर, डर को भूलकर नाव से श्रीलंका से तमिलनाडु ( Sri Lanka to Tamil Nadu) के लिए निकल पड़े। 50 हजार रुपये नाव वाले को देकर यहां पहुंचे हैं।

दूध और रोटी की कीमतें कई गुना अधिक, बच्चों को खिलाना मुश्किल हो गया

आर गजेंद्रन, 24, उनकी पत्नी मैरी क्लेरिन, 23, और उनके चार महीने के बेटे निजाथ ने 28 वर्षीय डोरी एनिस्टन, और उनके दो बच्चों, एस्तेर, 9, और मूसा, 6, के साथ मन्नार से एक नाव ली। तमिलनाडु पहुंचे गजेंद्रन, मैरी और डोरी ने कहा कि दूध और रोटी की कीमतें तीन गुना से अधिक हो गई हैं, जिससे उनके लिए अपने बच्चों को खिलाना मुश्किल हो गया है। सिलिंडर के लिए कतारें 2 किमी से अधिक लंबी लग रही हैं और पूरा दिन पानी इकट्ठा करने और खाना बनाने के लिए सामान लाने में ही बीत जा रहा था। एलपीजी सिलिंडर नहीं मिलने के कारण खाना बनाना भी मुश्किल हो गया था। अपने बच्चों के साथ आई डोरी अपने पति को श्रीलंका में छोड़कर आई है।

श्रीलंका आर्थिक संकट की लहर भारतीय तटों पर की जा रही महसूस
रोटी और दूध जैसी आवश्यक चीजों की बढ़ती लागत और ईंधन के लिए 2 किमी लंबी कतारों से दहशत में आए तमिल परिवारों ने श्रीलंका से भारत आने के लिए अवैध रूप से नाव का सहारा लिया। भारतीय तटरक्षक बल ने आठ बच्चों सहित सोलह शरणार्थियों को रामेश्वरम के पास एक टापू और दक्षिणी तमिलनाडु में धनुषकोडी घाट से बचाया जहां वह फंसे हुए थे। पुलिस सूत्रों की ओर से जानकारी दी गई कि शरणार्थियों ने नाविक को 50,000 रुपये का भुगतान किया और उन्हें वह आधी रात को रेत के टीले पर छोड़ गया। मरीन पुलिस ने शरणार्थियों को हिरासत में ले लिया। दो परिवार जो भारत पहुंचे हैं वह तमिलनाडु के शरणार्थी शिविरों में रह चुके हैं। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि आर्थिक संकट अधिक परिवारों को पलायन करने के लिए मजबूर कर सकता है। 1980 के दशक की शुरुआत में गृहयुद्ध के चलते तमिल शरणार्थी आना शुरू हुए थे। आज पूरे तमिलनाडु में 107 शिविरों में करीब 60,000 शरणार्थी रह रहे हैं। इन शिविरों के बाहर लगभग 30,000 और रहते हैं।

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श्रीलंका की क्यों आई ऐसी नौबत

चीन से कर्ज लेना कितना भारी पड़ सकता है यह अब श्रीलंका को समझ आ रहा होगा। महंगाई रेकॉर्ड लेवल पर पहुंच गई है, खाद्य पदार्थों की कीमत में बेतहाशा तेजी आई है और सरकारी खजाना तेजी से खाली हो रहा है। आशंका इस बात की है कि कहीं श्रीलंका दिवालिया न हो जाए। सवाल यह है कि श्रीलंका की यह हालत कैसे हुई। इसके कई कारण हैं। कोरोना संकट के कारण देश का टूरिज्म सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ। साथ ही सरकारी खर्च में बढ़ोतरी और टैक्स में कटौती ने हालात को और बदतर बना दिया। ऊपर से चीन के कर्ज को चुकाते-चुकाते श्रीलंका की कमर टूट गई। चीन का श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर से अधिक कर्ज है। पिछले साल उसने देश में वित्तीय संकट से उबरने के लिए चीन से और 1 अरब डॉलर का कर्ज लिया था। अगले 12 महीनों में देश को घरेलू और विदेशी लोन के भुगतान के लिए करीब 7.3 अरब डॉलर की जरूरत है। ऐसे हालात में श्रीलंका को समझ आ रहा होगा कि गलती कैसे हो गई।



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