कुशवाहा और राजभर के बाद अब पाल बने बसपा का चेहरा, मायावती की अति पिछड़ों को जोड़ने की नई रणनीति क्या सफल होगी?

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कुशवाहा और राजभर के बाद अब पाल बने बसपा का चेहरा, मायावती की अति पिछड़ों को जोड़ने की नई रणनीति क्या सफल होगी?

कुशवाहा और राजभर के बाद अब पाल बने बसपा का चेहरा, मायावती की अति पिछड़ों को जोड़ने की नई रणनीति क्या सफल होगी?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पिछले 10 सालों में अगर किसी राजनीतिक दल ने अगर सबसे ज्यादा जनाधार खोया है तो वह है बहुजन समाज पार्टी। जिस पार्टी ने 2007 में अकेले दम पर उत्तर प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाई, उससे 2012 के बाद से जनता का ऐसा मोहभंग हुआ कि आज 2022 में सिर्फ एक विधायक के साथ विधानसभा में खड़ी है। ऐसा नहीं है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रयास नहीं किया लेकिन हर बार उनकी रणनीति फेल ही होती रही। लगातार हार के कारण पार्टी से भी तमाम नेता दूरी बना चुके हैं। अब मायावती अपने 15 साल पुराने दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को त्याग चुकी हैं। वह वापस दलित, मुस्लिम गठजोड़ की सियासत कर रही हैं। इसके साथ ही उनकी ओबीसी जातियों पर भी नजर है। यही कारण है कि राम अचल राजभर, आरएस कुशवाहा के बाद उन्होंने भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। हालांकि ओबीसी जातियों को जोड़ने में कुछ खास सफलत नहीं मिली लेकिन मायावती ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। इसी क्रम में पार्टी के पुराने कैडर में शुमार अयोध्या के विश्वनाथ पाल को बसपा का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है।

दरअसल उत्तर प्रदेश में ओबीसी जातियों का 50 फीसदी से ज्यादा वोट बैंक है। प्रदेश में 79 ओबीसी जातियां हैं, इनमें भी गैर यादव जातियों की बात करें तो करीब 40 फीसदी का वोट प्रतिशत बैठता है। भाजपा से लेकर सपा और बसपा, सभी पार्टियों की नजरें इसी वोट बैंक पर रहती हैं। अब मायावती ने विश्वनाथ पाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इसी 40 प्रतिशत वोटबैंक पर लक्ष्य केंद्रित किया है। उन्होंने खुद अपने ट्वीट में कहा, “विश्वनाथ पाल, बी.एस.पी. के पुराने, मिशनरी कर्मठ व वफादार कार्यकर्ता हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि वे विशेषकर अति-पिछड़ी जातियों को बी.एस.पी. से जोड़कर, पार्टी के जनाधार को बढ़ाने में पूरे जी-जान से काम करके सफलता जरूर अर्जित करेंगे।”

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राजनीतिक विश्वलेषकों के अनुसार दरअसल मायावती ने विश्वनाथ पाल का चयन कर साफ कर दिया है कि राजभर वोट बैंक से ज्यादा अब पार्टी पाल वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित करेगी। दरअसल राजभर वोट बैंक का झुकाव परंपरागत रूप से बसपा की तरफ रहा। सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर भी बसपा से ही निकले नेता हैं। 2017 में भाजपा ने इस वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित किया और सुभासपा के साथ गठबंधन किया। ओम प्रकाश राजभर योगी सरकार में मंत्री भी बनाए गए लेकिन साथ ही भाजपा ने अपने यहां भी इस समाज के नेताओं की पौध तैयार करनी शुरू कर दी। इस बार के विधानसभा चुनावों में ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और उनका सीधा मुकाबला भाजपा से ही हुआ। इस पूरी सियासत में बसपा कहीं दिखाई नहीं दी। यहां तक की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर अपने गृह जनपद मऊ में तीसरे स्थान पर रहे। जहां माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने सुभासपा के टिकट पर जीत दर्ज की। मुख्तार भी बसपा में हुआ करते थे।

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ओम प्रकाश राजभर अब अपने समाज के बड़े नेता बन चुके हैं, दूसरी तरफ भाजपा का भी राजभर समाज में दखल बढ़ा है। ऐसे में बसपा के लिए गुंजाइश कम दिखती है। यही कारण है कि अब मायावती ने भीम राजभर को बिहार प्रदेश की ये कहते हुए जिम्मेदारी दी है, “भीम राजभर ने भी बी.एस.पी.यू.पी. स्टेट अध्यक्ष के पद पर रहकर, पार्टी के लिए पूरी ईमानदारी व वफादारी से कार्य किया है, जिनकी पार्टी आभारी है।” राजनीति विश्लेषकों के अनुसार दरअसल पाल समाज पर दांव लगाने के पीछे की प्रमुख रणनीति उसकी आबादी भी है। दरअसल उत्तर प्रदेश में राजभर समाज से ज्यादा जनसंख्या पाल समाज की मानी जाती है। पश्चिम यूपी में ब्रज क्षेत्र से लेकर बुंदेलखंड और अवध के कई जिलों में ये वोट बैंक अहम भूमिका निभाता है।

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