कीर्तन बैंड ने बिखेरी मधुर स्वर लहरियां | Osho Musical Festival in jabalpur | Patrika News

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कीर्तन बैंड ने बिखेरी मधुर स्वर लहरियां | Osho Musical Festival in jabalpur | Patrika News

कीर्तन बैंड ने बिखेरी मधुर स्वर लहरियां | Osho Musical Festival in jabalpur | Patrika News

ओशो म्यूजिकल फेस्टिवल के दूसरे दिन अंतरराष्ट्रीय कीर्तन बैंड की धूम मची

जबलपुर। ओशो होम भेड़ाघाट के तत्वावधान में आचार्य रजनीश के जन्मोत्सव पर मनाए जा रहे ओशो म्यूजिकल फेस्टिवल के दूसरे दिन अंतरराष्ट्रीय कीर्तन बैंड की धूम मची। अंतरराष्ट्रीय कीर्तन बैंड की स्वर लहरियों के साथ दीप प्रज्ज्वलन किया गया। इसके बाद स्वामी प्रेम पारस ने कुण्डलनी ध्यान कराया। कार्यक्रम का उद्घाटन ध्यान शिविर के प्रथम चरण में व्हाइट रोब ब्रदर हुड स्वामी अविनाश भारती के संचालन में किया गया।
अमृतधाम आश्रम, जबलपुर के स्वामी अविनाश भारती, ओशो होम आश्रम, भेड़ाघाट के स्वामी श्रीला प्रेम पारस, ओशो की छोटी बहन निशा मां, भेड़ाघाट के पूर्व नपं अध्यक्ष अनिल तिवारी, श्रीधाम, गोटेगांव के स्वामी ध्यान भारती के सान्निध्य में कार्यक्रम हुए।
स्वामी श्रीला प्रेम पारस ने बताया कि 11 दिसंबर को सुबह 9:30 बजे से अंतरराष्ट्रीय ख्याति लब्ध बांसुरी वादक पद्म श्री व पद्म भूषण पंडित हरिशंकर चौरसिया बांसुरी वादन कला की प्रस्तुति देंगे। इसी दिन इंडियन आइडल फेम गिरीश विश्वा कला दिखाएंगे। विख्यात सितार वादक नीलाद्री कुमार शाम 6:00 बजे प्रस्तुति देंगे। इसी क्रम में गायक सवाई भाट, गायिका इशिता विश्वकर्मा, बनारस की कवयित्री विभा शुक्ला व गिटार वादक अरङ्क्षवद हल्दीपुर कला का प्रदर्शन करेंगे। शनिवार हो हुए कार्यक्रम में स्वामी श्रीला प्रेम पारस व स्विट््जरलैंड से आईं मां राबिया की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
जहां ओशो को संबोधि मिली, मौलश्री वृक्ष की ख्याति सीमित
अपने 6 दशक के जीवनकाल में से आचार्य रजनीश के रूप में जबलपुर से ओशो का सर्वाधिक 2 दशक तक गहरा जुड़ाव था। उन्हें यहीं भंवरताल स्थित मौलश्री वृक्ष (ओशो ट्री) के तले संबोधि की उपलब्धि हुई थी।
इस लिहाज से देश-दुनिया में फैले करोड़ों ओशो प्रेमियों के लिए जबलपुर के मौलश्री वृक्ष या ओशो ट्री का वही महत्व है, जो तथागत गौतम बुद्ध के दुनियाभर में फैले असंख्य अनुयायियों के लिए बिहार के बोधिवृक्ष का है। इस ओशो ट्री को संरक्षित कर दिया गया, लेकिन इसकी ख्याति जबलपुर तक ही सीमित है। इसके बारे में नगर निगम व जिला प्रशासन ने पर्याप्त प्रचार-प्रसार और प्रयास नहीं किया। जबकि इसे विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है।
घोषित नहीं कर रहे विश्व विरासत
2019 में राज्य सरकार के अध्यात्म विभाग ने अनूठा प्रायोजन करते हुए पूरी दुनिया के ओशो प्रेमियों का ध्यान जबलपुर की तरफ आकर्षित किया था।
11 से 13 दिसंबर 2019 तक जबलपुर के तरंग प्रेक्षागृह शक्तिभवन में त्रिदिवसीय अभूतपूर्व ’ओशो महोत्सव’ का आयोजन किया गया था। इसके बाद स्थानीय ओशो प्रेमियों की आशा जगी थी कि आचार्य रजनीश की कर्मभूमि जबलपुर में स्थित भंवरताल पार्क का नामकरण ओशो इंटरनेशनल पार्क और यहां स्थित मौलश्री वृक्ष को विश्व धरोहर घोषित किया जा सकता है, लेकिन उसके बाद सरकार की ओर से इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए।
पार्क के बाहर तक नहीं है सूचना पटल
भंवरताल पार्क में स्थित मौलश्री के इस संबोधि वृक्ष की हालत कुछ वर्षों पहले काफी खस्ता हो गई थी। नगर निगम ने ओशोप्रेमियों की मांग को देखते हुए 2018 में वृक्ष को संरक्षित किया। यहां चबूतरा बनवाया गया। बैठने के लिए कुर्सियां लगवाई गईं। संबोधि वृक्ष की जानकारी देते हुए पेड़ के समीप ही एक सूचना पटल भी लगाया गया। अनजान व बाहरी लोगों को इसकी जानकारी देने के लिए पार्क के बाहर कोई सूचना पटल अब तक नहीं लगा। इसके अलावा शहर के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट में भी इस वृक्ष की जानकारी देने अब तक कोई कदम नहीं उठाया।
और भी हैं स्मृतियां
देवताल की पहाड़ी पर स्थित ओशो ध्यान शिला में उन्होंने साधना की थी। नेपियर टाउन स्थित योगेश भवन (ओशो हॉल), आर्यसमाज मंदिर श्रीनाथ की तलैया और खंदारी सहित कई जगहों में उनके कभी न भुलाए जा सकने वाले प्रवचन हुए। उन्होंने डीएन जैन और सिटी कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ली। सुषमा साहित्य सदन व टाउन हॉल सहित यहां के सभी पुस्तकालयों में संग्रहित किताबों को पढकऱ ज्ञानार्जन किया। जीवन ज्योति केन्द्र की स्थापना की और युक्रांत नामक पत्रिका भी प्रकाशित की। ओशोप्रेमियों का कहना है कि ओशो के जीवन से जुड़ी ये तमाम स्मृतियां शहर में आज भी जीवंत हैं। इन्हें सहेजने व इनका प्रचार करने की आवश्यकता है।

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