कानपुर देहात नरसंहार में 44 साल बाद फैसला, पीड़ित बोले-जब हम सब दुश्मनी भुला चुके तब आया निर्णय

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कानपुर देहात नरसंहार में 44 साल बाद फैसला, पीड़ित बोले-जब हम सब दुश्मनी भुला चुके तब आया निर्णय

कानपुर देहात नरसंहार में 44 साल बाद फैसला, पीड़ित बोले-जब हम सब दुश्मनी भुला चुके तब आया निर्णय


गौरव राठौर, कानपुर देहात : 44 साल पहले सेल्हूपुर गांव में वर्चस्व की जंग में सामूहिक नरसंहार के मामले में गुरुवार को एडीजे चतुर्थ की कोर्ट ने पांच आरोपियों को दोषी मानते हुए आजीवन कारवास की सजा सुनाई है। इस घटना में नामजद आरोपियों में 21 में 14 की मौत हो चुकी है। एक आरोपी अभी तक फरार है। इतने पुराने मामले में फैसला आने के बाद इस घटना की चर्चा पूरे कानपुर देहात जिले में है।

कानपुर देहात के सेल्हूपुर गांव में 23 अप्रैल 1979 को सामूहिक नसंहार किया गया था। लाठी डंडे, असलहे लेकर गांव के ही लोगों ने अयोध्या प्रसाद के घर जाकर हमला बोला था। इसमें अयोध्या के भाई के सरजू, भतीजे शिव प्रसाद, छोटे और चार साल के बच्चे भीम की हत्या कर दी थी। किसी को कुल्हाड़ी मारकर मौत के घाट उतारा गया था तो किसी को गोली मारकर हत्या की गई थी। चार लोगों की हत्या के बाद गांव में तनाव का माहौल हो गया था। इस घटना की चर्चा पूरे प्रदेश में हुई थी। मामले में अयोध्या की तहरीर पर भोगनीपुर कोतवाली में 21 लोगों के खिलाफ बलवा, हत्या, हत्या का प्रयास समेत कई गंभीर धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई थी। कानूनी दांवपेच के चलते 1988 में हाईकोर्ट से स्थगन आदेश मिलने पर कार्रवाई लंबित रही।

अभियोजन की ओर से पैरवी करने के बाद स्थगन आदेश खत्म हो गया। मामले की सुनवाई एडीजे चतुर्थ रवि यादव की कोर्ट में चल रही थी। सुनवाई के दौरान 14 आरोपियों की मौत हो चुकी है। गुरुवार को कोर्ट ने धनीराम, विजयनरायन, विजयबहादुर, बतोले, प्रेमचंद्र को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास और 29-29 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। एडीजीसी प्रदीप कुमार पांडेय ने बताया कि आरोपी मथुरा प्रसाद को साक्ष्यों के अभाव में दोषमुक्त किया गया है।

फरार आरोपी को नहीं ढूंढ़ पाई पुलिस

सेल्हूपुर गांव में सामूहिक नरसंहार के बाद घटना में नामजद किया गया आरोपी मान सिंह फरार हो गया। इसके बाद पुलिस उसे अब तक नहीं ढूंढ पाई है। विवेचना के दौरान उसकी भूमिका घटना में पाए जाने पर उसके विरूद्ध भी चार्जशीट दाखिल की गई थी। वह कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ। एडीजीसी प्रदीप पांडेय ने बताया कि फरार आरोपी मान सिंह की पत्रावली पत्रावली पृथक कर अलग से सुनवाई की जा रही है।

जानिए क्यों हुआ था इतना बड़ा नरसंहार

नवंबर 1978 में बिना कोई रंजिश के वर्चस्व की जंग में दिनेश की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में गांव के ही कुंवरलाल, अयोध्या प्रसाद, रामऔतार आदि के विरूद्ध हत्या की रिपोर्ट भोगनीपुर कोतवाली में दर्ज की गई। इस घटना के करीब एक साल बाद अयोध्या प्रसाद आदि जमानत मिलने पर जेल से बाहर आ गए। जेल से बाहर आने के बाद दिनेश के परिजनों में आक्रोश बढ़ने लगा। साथ ही वर्चस्व स्थापित करने के लिए खूनी खेल की कहानी रची गई। इसके बाद 23 अप्रैल 1979 को अयोध्या प्रसाद के यहां धावा बोलकर चार लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।

जब भुला दी दुश्मनी तब आया फैसला

सामूहिक नरसंहार में आरोपी रहे कुंवर लाल की मौत हो चुकी है। उनकी पत्नी चंद्रकली ने कहा कि 44 साल पहले विपक्षी दिनेश आदि के परिवार से चल रही वर्चस्व की जंग खत्म हो गई थी। दोनों के परिवार ये दुश्मनी भी भुला चुके हैं। गांव में अब कोई तनाव जैसा माहौल भी नहीं है। कुंवरलाल के बेटे लाल सिंह, मंगल सिंह, भगौती, ज्ञान सिंह आदि ने कहा कि कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर पुरान जख्म हरे हो गए है। फिलहाल गांव के बुर्जगों के बीच इस घटना की चर्चा हो रही है। वहीं, नई पीढ़ी भी इस घटना के बावत बुजुर्गों से बात कर रही है।

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