कलेक्टोरेट बना बदमाशों का अड्डा… पहुंचे थे मोटी कमाई के लिए | Collectorate became the haunt of miscreants… arrived for big money | Patrika News

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कलेक्टोरेट बना बदमाशों का अड्डा… पहुंचे थे मोटी कमाई के लिए | Collectorate became the haunt of miscreants… arrived for big money | Patrika News

कलेक्टोरेट बना बदमाशों का अड्डा… पहुंचे थे मोटी कमाई के लिए | Collectorate became the haunt of miscreants… arrived for big money | Patrika News

प्रशासनिक संकुल का नाम सुनते ही माफियाओं के पसीने छूट जाते हैं। एक नोटिस में हालत पतली हो जाती है, लेकिन कल शहर के बदमाशों ने भारी हिम्मत दिखाई। शहर के 12 मैदानों पर लगने वाले अस्थाई पटाखा दुकानों को लगाने के टेंडर होने थे। उसमें भाग लेने के लिए कई कुख्यात बदमाश गुर्गों को लेकर प्रशासनिक संकुल पहुंचे थे। स्थिति ये थी कि अपने चेले चपाटियों ने नाम पर अधिकतर मैदानों पर उन्होंने टेंडर डाले। एसडीएम स्तर पर सभी मैदानों की निविदा खोली जानी थी। बदमाश परिसर में डेरा डाले हुए थे तो उनके गुर्गे एसडीएम के कमरों के बाहर खड़े हुए थे।

कुछ बदमाशों ने तो अन्य निविदा डालने वालों पर रंगदारी दिखाने तक का प्रयास किया। दबाव बना रहे थे कि वे टेंडर से नाम वापस ले लें। हालांकि भाग लेने वालों की इतनी संख्या थी कि वे सभी को हटा नहीं सके। आखिरी प्रयास तो ये भी किया गया कि जिनके टेंडर खुले, उन पर दबाव बनाने का प्रयास किया कि छोटी-मोटी रकम लेकर वे हट जाएं। आगे का काम हम करेंगे। नहीं मानने पर देखने तक की धमकियां दी गईं। कल दोपहर से शाम तक प्रशासनिक संकुल कई बदमाशों से पटा हुआ था। हर कोने में झुंड नजर आ रहे थे। चौंकाने वाली बात ये है कि सारी रंगदारी अफसरों की नाक के नीचे कर रहे थे। प्रशासन को चाहिए कि टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने आने वाले बदमाशों की सूची तैयार करके अच्छे से इलाज कर दे ताकि भविष्य में सरकारी कामों में हस्तक्षेप व रंगदारी करने की कोई हिम्मत न करें।

ऐसे समझें मोटी कमाई
चार दिन के लिए मैदानों में अस्थाई पटाखा दुकान लगती हैं। उसके लिए खेरची व्यापारियों को मोटी कीमत चुकानी पड़ती है। प्रशासन चाहता है कि कम से कम कीमत पर व्यापारियों को दुकान मिले, लेकिन ऐसा होता नहीं है। कुछ साल पहले 500 और हजार रुपए का कोटेशन भरकर ठेका लिया गया, लेकिन व्यापारियों से 10 से 15 हजार रुपए तक वसूली की गई। प्रशासन को समझ में आ गया कि इतनी कम कीमत पर पतरे और लाइट का काम नहीं हो सकता, इसलिए न्यूनतम कीमत प्रति दुकान तीन हजार रुपए रखी गई। इस वजह से अधिकतर ठेकेदारों ने तीन हजार रुपए ही भरे।

ऐसे समझें वसूली का गणित
सच्चाई ये है कि इतने पैसे में काम नहीं बनता है। ठेकेदार दुकान और बिजली के अलावा टेंट व पटाखा रखने वाली सीढ़ी को मिलाकर 12 से 15 हजार रुपए वसूल करता है, जबकि दोनों काम तीन हजार रुपए में हो जाते हैं। कुल मिलाकर छह हजार का खर्च होता है, लेकिन व्यापारियों से दो से ढाई गुना किराया वसूल किया जाता है। 100 दुकानें होने पर पांच लाख रुपए की अवैध वसूली हो जाती है। व्यापारियों की मजबूरी है कि उन्हें ठेकेदार से ही सारा काम कराना पड़ता है, जबकि प्रशासन की प्रतिबद्धता दुकान व लाइट को लेकर ही है। बाकी टेंट व सीढ़ी पटाखा व्यापारी किसी से भी कराए। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए, लेकिन सांठगांठ के चलते कोई कार्रवाई नहीं होती है।



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