कर्नाटक-राजस्थान में जातिगत गणना की रिपोर्ट ही सरकार ने दबा दी, क्या नीतीश जारी कर पाएंगे आंकड़े?

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कर्नाटक-राजस्थान में जातिगत गणना की रिपोर्ट ही सरकार ने दबा दी, क्या नीतीश जारी कर पाएंगे आंकड़े?

कर्नाटक-राजस्थान में जातिगत गणना की रिपोर्ट ही सरकार ने दबा दी, क्या नीतीश जारी कर पाएंगे आंकड़े?


Caste Based Survey: बिहार की नीतीश कुमार सरकार 500 करोड़ रुपये खर्च कर जाति आधारित गणना करवा रही है। इससे पहले कर्नाटक और राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकारों ने जातिगत जनगणना करवाई थी, मगर उसका कोई फायदा नहीं हुआ। क्योंकि सरकारों ने उनकी रिपोर्ट ही सार्वजनिक नहीं की। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार बिहार में जातिगत गणना के आंकड़े सार्वजनिक करेंगे? क्या जातियों की गिनती की पूरी रिपोर्ट जनता को मिल पाएगी?

2011 में जब देश भर में जनगणना हुई थी, तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उसमें जाति का कॉलम भी जोड़ा था। पूरे राजस्थान के लोगों की गिनती के साथ-साथ उनकी जातियों की भी गणना की गई थी। हालांकि, इस पर विवाद हुआ और रिपोर्ट जारी करने पर रोक लगा दी गई। इसके बाद राजस्थान सरकार ने कभी भी जातिगत गणना के आंकड़े जारी नहीं किए। सिर्फ आर्थिक और सामाजिक सर्वे की रिपोर्ट ही बाहर आई।

इसी तरह कर्नाटक में भी 2014-15 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जाति आधारित जनगणना का फैसला लिया था। इसमें सिद्धारमैया सरकार ने करीब 150 करोड़ खर्च किए। उस पर भी विवाद हुआ तो जाति गणना का नाम बदलकर सामाजिक और आर्थिक सर्वे कर दिया गया। मगर यह फैसला कांग्रेस के लिए उल्टा साबित हुआ। 2017 में इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई। उसमें कई तरह की गड़बड़ियां सामने आई। 

कर्नाटक में हुए जातिगत सर्वे में कई लोगों ने जाति के कॉलम में अपनी उपजातियां भर दी। इससे ओबीसी वर्ग की संख्या बहुत बढ़ गई और लिंगायत एवं वोक्कालिगा समुदाय की संख्या घट गई। इसका कांग्रेस को अगले चुनाव में नुकसान झेलना पड़ा। कर्नाटक सरकार ने भी यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की।

क्या नीतीश जाति आधारित गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करेंगे?

अब सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार बिहार में जातिगत सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक करेंगे या नहीं। अगर जातिगत सर्वे के आंकड़े सरकार के अनुकूल नहीं आएंगे तो क्या इसकी रिपोर्ट कभी बाहर आ पाएगी? बिहार में वैसे तो सभी दलों ने एकजुट होकर नीतीश सरकार के इस फैसले पर सहमति दी थी। हालांकि सत्ता से बाहर जाने के बाद बीजेपी ने अब इसके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है। बीजेपी आरोप लगा रही है कि इससे कुछ फायदा नहीं होने वाला है। नीतीश सिर्फ राजनीति करने के लिए यह सर्वे करा रहे हैं। 

बिहार में जातिगत गणना की जरूरत क्यों है?

दरअसल, बिहार की राजनीति जाति फैक्टर के आसपास ही घूमती है। कोई भी चुनाव हो, उसमें जातिगत राजनीति बहुत मायने रखती है। देशभर में अभी सरकारों के पास एससी और एसटी वर्ग के लोगों के आंकड़े तो होते हैं, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी का डेटा नहीं होता है। अभी सबसे ज्यादा ओबीसी की है और इसकी सही संख्या की गणना करना मुश्किल है। जेडीयू और आरजेडी समेत अन्य पार्टियां इसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए अपनी राजनीति कर रही है। जातिगत गणना कराने से ओबीसी के सही आंकड़ों के बारे में जानकारी मिलेगी और उस हिसाब से राजनीतिक फैसले लिए जा सकते हैं।

कहीं सुप्रीम कोर्ट से अटक न जाए मामला

दूसरी ओर, बिहार में जारी जाति आधारित गणना पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई है। याचिका में कहा गया है कि जातिगत जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र को है। यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। ऐसे में नीतीश सरकार के जाति आधारित गणना के नोटिफिकेशन को रद्द किया जाए। सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई के बाद फैसला देगा।

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