ओसाका ने जो किया, अगर विराट करें तो!
लेखकः विमल कुमार
दुनिया की नंबर दो महिला टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका ने एक ऐसा फैसला लिया, जिससे हलचल मच गई। जापान की इस प्लेयर ने एक बेहद अहम ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट के दौरान नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस करने में असमर्थता जता दी। इसके चलते उन पर 15 हजार डॉलर का जुर्माना भी लगा। पलटकर नाओमी ने टूर्नामेंट से ही नाम वापस ले लिया। दरअसल, ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट के नियमों के मुताबिक, मैच के बाद अगर कोई खिलाड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया से बातचीत से इनकार करे तो उस पर 20 हजार अमेरिकी डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
चार ग्रैंड स्लैम आयोजनकर्ताओं ने एक संयुक्त बयान में चेतावनी जारी की है कि ओसाका को काफी जुर्माना और भविष्य के ग्रैंड स्लैम में निलंबन का सामना करना पड़ सकता है। ग्रैंड स्लैम नियमों का एक मुख्य तत्व है मीडिया के साथ जुड़ने की खिलाड़ियों की जिम्मेदारी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि उस खिलाड़ी के मैच का परिणाम क्या है।
ओसाका के इस फैसले ने भारतीय खेल मीडिया को भी सकते में डाल दिया है। खासकर क्रिकेट कवरेज से जुड़े धड़े को। कई जानकारों को लग रहा है कि अगर ओसाका जैसा कदम किसी भारतीय क्रिकेटर ने उठाया तो बीसीसीआई अपने खिलाड़ी के पक्ष में ही खड़ा होगा। वैसे, इस मुद्दे के भी दो पक्ष हैं। अगर खिलाड़ियों और बोर्ड को संतुलित नजरिया अपनाना है, तो मीडिया को भी सोचना होगा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस की गरिमा का ध्यान रखा जाए। टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी वन टु वन इंटरव्यू नहीं देते थे, जबकि ऐसा फैसला सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज भी नहीं कर पाए थे।
धोनी की दलील होती थी कि भारत में इतने सारे मीडिया हाउस हैं, इसलिए किसी पत्रकार को अलग से इंटरव्यू देना सही परंपरा नहीं। बेहतर है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में सारे सवालों के जवाब दे दिए जाएं। कप्तानी के पहले 5-6 बरस धोनी इस सिद्धांत पर चले। हालांकि कई मौकों पर वह मुझे या कुछ और पत्रकारों को यह कहने से नहीं चूके कि ‘यार, हर मैच के पहले और बाद में मीडिया से बात करना बेहद थकाने वाला सिस्टम है। इससे किसी को क्या फायदा होता है? सवाल भी लगभग एक ही जैसे होते हैं और मेरे जवाब में भी बहुत अंतर नहीं होता।’
फिर, गुरुनाथ मय्प्पन 2013 में आईपीएल स्पॉट-फिक्सिंग कांड में धोनी को भी विवादों में ले आए, तब से माही प्रेस से उखड़ गए। धोनी ने नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के दिमाग में यह बात डाल दी कि अगर आप अच्छा खेलोगे तो प्रेस की मजबूरी है तारीफ करना। अगर अच्छा नहीं खेले, तो मीडिया केवल विवादित चीजें तलाशेगा। आपको याद है, धोनी पर जो फिल्म बनी है, उसमें मीडिया को लेकर कुछ ही सीन हैं और एक सीन में वीरेंद्र सहवाग के साथ विवाद को लेकर जिस तरह की टिप्पणी की गई, उससे साफ जाहिर था कि माही भारतीय मीडिया के लिए बहुत सम्मान नहीं रखते।
कई मौके ऐसे भी होते हैं, जब खिलाड़ी खुद इंतजार करते हैं मीडिया से बातचीत का, क्योंकि उन्हें कई मुद्दों पर अपनी सफाई देनी होती है। अतीत में हमने देखा है कि किस तरह से रोहित शर्मा और रविचंद्रन अश्विन समेत कई खिलाड़ियों ने सार्वजनिक मंच पर वैसी बातें कहीं, जिसे वे शायद इंटरव्यू में नहीं कह पाते। प्रेस कॉन्फ्रेंस में रिपोर्टर के किसी भी तरह के सवाल पर यह कहने की गुंजाइश नहीं रहती है कि किसी खिलाड़ी विशेष ने जानबूझकर कोई खास सवाल सेट कराया है।
हां, एक चीज जरूर है कि क्रिकेटर अब किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आते हैं, तो 70 फीसदी बातें रटी-रटाई और एक पैटर्न पर होती हैं। इसके बावजूद इसकी अहमियत है, क्योंकि आप कोई भी सवाल खिलाड़ी से पूछ सकते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस इसलिए भी अहम हैं, क्योंकि यहां मीडिया हाउस के दबदबे या किसी बड़े रिपोर्टर को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
लेकिन, अहम सवाल अब भी यही है कि क्या ओसाका प्रकरण के बाद भारतीय क्रिकेट में भी कुछ बदल सकता है? इसका सीधा जवाब है कि पहले से इसकी नींव रखी जा चुकी है। आप दुनिया की सबसे कामयाब लीग यानी आईपीएल की प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखिए। यहां कोई तय नियम नहीं है कि कप्तान ही हर बार आपके सवालों के जवाब देने आएगा। विदेशी दौरों पर भारतीय मीडिया को हफ्तों तक एक भी खिलाड़ी नहीं मिलता, जब तक कि कोई अहम मैच करीब न आ जाए।
बोर्ड और खिलाड़ियों को ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया के इस दौर में उन्हें प्रेस की क्या जरूरत। जो कहना है, वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट और प्रेस रिलीज के जरिए कह देंगे। ऐसा करना खिलाड़ियों और बोर्ड के लिए सहज है, लेकिन इस तरह प्रशंसकों के लिए एक अहम रास्ता बंद कर दिया जाता है। जीत के बाद हर खिलाड़ी के सोशल मीडिया अकाउंट पर कुछ न कुछ लिखा मिल जाता है, पर हार के बाद सब शांत रहते हैं। ऐसे में कुछ रिपोर्टर ही हैं, जो इस मुश्किल दौर में संयमित और प्रासंगिक खबरें लाकर देते हैं।
वैसे, खिलाड़ी प्रेस को कितना भी नापसंद करें, उन्हें पता है कि मीडिया का एक्सपोजर उनके ब्रैंड को बेहतर करता है। इसका इस्तेमाल अपने तरीके से करते हैं खिलाड़ी। आपको याद है न, कैसे कोहली ने एक बार नोटबंदी को मास्टरस्ट्रोक बताकर सरकार को खुश किया था। सौरव गांगुली के बारे में कहा जाता है कि जब उन्हें अपनी टीम के साथियों पर किसी तरह का दबाव बनाना होता था, वह कोलकाता के अपने पसंदीदा पत्रकारों को पहले से ही कुछ खास सवाल भेज देते थे। यानी पत्रकार ही नहीं, खिलाड़ियों को भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की दरकार होती है। भले ही वे खुलकर इसे स्वीकार न करें।
लेखकः विमल कुमार
दुनिया की नंबर दो महिला टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका ने एक ऐसा फैसला लिया, जिससे हलचल मच गई। जापान की इस प्लेयर ने एक बेहद अहम ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट के दौरान नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस करने में असमर्थता जता दी। इसके चलते उन पर 15 हजार डॉलर का जुर्माना भी लगा। पलटकर नाओमी ने टूर्नामेंट से ही नाम वापस ले लिया। दरअसल, ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट के नियमों के मुताबिक, मैच के बाद अगर कोई खिलाड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया से बातचीत से इनकार करे तो उस पर 20 हजार अमेरिकी डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
चार ग्रैंड स्लैम आयोजनकर्ताओं ने एक संयुक्त बयान में चेतावनी जारी की है कि ओसाका को काफी जुर्माना और भविष्य के ग्रैंड स्लैम में निलंबन का सामना करना पड़ सकता है। ग्रैंड स्लैम नियमों का एक मुख्य तत्व है मीडिया के साथ जुड़ने की खिलाड़ियों की जिम्मेदारी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि उस खिलाड़ी के मैच का परिणाम क्या है।
ओसाका के इस फैसले ने भारतीय खेल मीडिया को भी सकते में डाल दिया है। खासकर क्रिकेट कवरेज से जुड़े धड़े को। कई जानकारों को लग रहा है कि अगर ओसाका जैसा कदम किसी भारतीय क्रिकेटर ने उठाया तो बीसीसीआई अपने खिलाड़ी के पक्ष में ही खड़ा होगा। वैसे, इस मुद्दे के भी दो पक्ष हैं। अगर खिलाड़ियों और बोर्ड को संतुलित नजरिया अपनाना है, तो मीडिया को भी सोचना होगा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस की गरिमा का ध्यान रखा जाए। टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी वन टु वन इंटरव्यू नहीं देते थे, जबकि ऐसा फैसला सचिन तेंडुलकर और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज भी नहीं कर पाए थे।
धोनी की दलील होती थी कि भारत में इतने सारे मीडिया हाउस हैं, इसलिए किसी पत्रकार को अलग से इंटरव्यू देना सही परंपरा नहीं। बेहतर है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में सारे सवालों के जवाब दे दिए जाएं। कप्तानी के पहले 5-6 बरस धोनी इस सिद्धांत पर चले। हालांकि कई मौकों पर वह मुझे या कुछ और पत्रकारों को यह कहने से नहीं चूके कि ‘यार, हर मैच के पहले और बाद में मीडिया से बात करना बेहद थकाने वाला सिस्टम है। इससे किसी को क्या फायदा होता है? सवाल भी लगभग एक ही जैसे होते हैं और मेरे जवाब में भी बहुत अंतर नहीं होता।’
फिर, गुरुनाथ मय्प्पन 2013 में आईपीएल स्पॉट-फिक्सिंग कांड में धोनी को भी विवादों में ले आए, तब से माही प्रेस से उखड़ गए। धोनी ने नई पीढ़ी के खिलाड़ियों के दिमाग में यह बात डाल दी कि अगर आप अच्छा खेलोगे तो प्रेस की मजबूरी है तारीफ करना। अगर अच्छा नहीं खेले, तो मीडिया केवल विवादित चीजें तलाशेगा। आपको याद है, धोनी पर जो फिल्म बनी है, उसमें मीडिया को लेकर कुछ ही सीन हैं और एक सीन में वीरेंद्र सहवाग के साथ विवाद को लेकर जिस तरह की टिप्पणी की गई, उससे साफ जाहिर था कि माही भारतीय मीडिया के लिए बहुत सम्मान नहीं रखते।
कई मौके ऐसे भी होते हैं, जब खिलाड़ी खुद इंतजार करते हैं मीडिया से बातचीत का, क्योंकि उन्हें कई मुद्दों पर अपनी सफाई देनी होती है। अतीत में हमने देखा है कि किस तरह से रोहित शर्मा और रविचंद्रन अश्विन समेत कई खिलाड़ियों ने सार्वजनिक मंच पर वैसी बातें कहीं, जिसे वे शायद इंटरव्यू में नहीं कह पाते। प्रेस कॉन्फ्रेंस में रिपोर्टर के किसी भी तरह के सवाल पर यह कहने की गुंजाइश नहीं रहती है कि किसी खिलाड़ी विशेष ने जानबूझकर कोई खास सवाल सेट कराया है।
हां, एक चीज जरूर है कि क्रिकेटर अब किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आते हैं, तो 70 फीसदी बातें रटी-रटाई और एक पैटर्न पर होती हैं। इसके बावजूद इसकी अहमियत है, क्योंकि आप कोई भी सवाल खिलाड़ी से पूछ सकते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस इसलिए भी अहम हैं, क्योंकि यहां मीडिया हाउस के दबदबे या किसी बड़े रिपोर्टर को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
लेकिन, अहम सवाल अब भी यही है कि क्या ओसाका प्रकरण के बाद भारतीय क्रिकेट में भी कुछ बदल सकता है? इसका सीधा जवाब है कि पहले से इसकी नींव रखी जा चुकी है। आप दुनिया की सबसे कामयाब लीग यानी आईपीएल की प्रेस कॉन्फ्रेंस को देखिए। यहां कोई तय नियम नहीं है कि कप्तान ही हर बार आपके सवालों के जवाब देने आएगा। विदेशी दौरों पर भारतीय मीडिया को हफ्तों तक एक भी खिलाड़ी नहीं मिलता, जब तक कि कोई अहम मैच करीब न आ जाए।
बोर्ड और खिलाड़ियों को ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया के इस दौर में उन्हें प्रेस की क्या जरूरत। जो कहना है, वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट और प्रेस रिलीज के जरिए कह देंगे। ऐसा करना खिलाड़ियों और बोर्ड के लिए सहज है, लेकिन इस तरह प्रशंसकों के लिए एक अहम रास्ता बंद कर दिया जाता है। जीत के बाद हर खिलाड़ी के सोशल मीडिया अकाउंट पर कुछ न कुछ लिखा मिल जाता है, पर हार के बाद सब शांत रहते हैं। ऐसे में कुछ रिपोर्टर ही हैं, जो इस मुश्किल दौर में संयमित और प्रासंगिक खबरें लाकर देते हैं।
वैसे, खिलाड़ी प्रेस को कितना भी नापसंद करें, उन्हें पता है कि मीडिया का एक्सपोजर उनके ब्रैंड को बेहतर करता है। इसका इस्तेमाल अपने तरीके से करते हैं खिलाड़ी। आपको याद है न, कैसे कोहली ने एक बार नोटबंदी को मास्टरस्ट्रोक बताकर सरकार को खुश किया था। सौरव गांगुली के बारे में कहा जाता है कि जब उन्हें अपनी टीम के साथियों पर किसी तरह का दबाव बनाना होता था, वह कोलकाता के अपने पसंदीदा पत्रकारों को पहले से ही कुछ खास सवाल भेज देते थे। यानी पत्रकार ही नहीं, खिलाड़ियों को भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की दरकार होती है। भले ही वे खुलकर इसे स्वीकार न करें।
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