ऑक्सिजन के मसले पर केंद्र और दिल्ली सरकार आमने – सामने, रिपोर्ट पर दिल्ली सरकार को क्यों है आपत्ति

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ऑक्सिजन के मसले पर केंद्र और दिल्ली सरकार आमने – सामने, रिपोर्ट पर दिल्ली सरकार को क्यों है आपत्ति

नई दिल्ली
आक्सिजन के मामले को लेकर एक बार फिर दिल्ली और केंद्र सरकार आमने- सामने है। सुप्रीम कोर्ट की बनाई ऑक्सिजन ऑडिट रिपोर्ट के सामने आने के बाद बीजेपी के निशाने पर केजरीवाल सरकार है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान जब देशभर में ऑक्सिजन के लिए हाहाकार मचा हुआ था, तब दिल्ली सरकार ने जरूरत के चार गुना ऑक्सिजन की मांग की गई। वहीं दिल्ली सरकार के प्रधान गृह सचिव भूपिंदर एस भल्ला ने इसको लेकर आपत्ति दर्ज कराई है।

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दिल्ली प्रधान गृह सचिव भूपिंदर एस भल्ला ने अंतरिम रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है। उन्होंने अपनी टिप्पणियों में कहा है सुप्रीम कोर्ट ने सबकमेटी का गठन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ऑक्सिजन सप्लाई के अवरोध की पहचान व सुगम सप्लाई का रास्ता ढूढ़ने को कहा था। लेकिन सबकमेटी ऑक्सिजन फॉर्मूले की समीक्षा कर रही है जो कि राष्ट्रीय टास्क फोर्स का काम है। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम में एम्स डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया, दिल्ली सरकार के प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी भूपिंदर भल्ला, मैक्स हेल्थ केयर के डायरेक्टर डॉक्टर संदीप बुद्धिराज, केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के डायरेक्टर सुबोध यादव शामिल थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्पष्ट नहीं है कि किस आधार पर दिल्ली सरकार की ओर से 700 MT ऑक्सिजन की मांग की गई
दिल्ली सरकार का कहना है कि 700 MT ऑक्सिजन की मांग भारत सरकार आईसीएमआर के स्टैंडर्ड के मुताबिक है। 24 लीटर प्रति मिनट आईसीयू बेड और 10 लीटर प्रति मिनट बिना आईसीयू वाले मरीजों की जरूरत के हिसाब से है। साथ ही 1 लाख एक्टिव केस के आधार पर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 470 MTऑक्सिजन रिजर्व रखा गया जबकि जरूरत 400 मीट्रिक टन से भी कम थी
सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के हिसाब से ऐसा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी कहा कि अतिरिक्त सप्लाई की जाए इमरजेंसी को ध्यान में रखते हुए। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति बेड के हिसाब से 250 MTअप्रैल के आखिर में, 470 से 490 मीट्रिक टन मई के पहले सप्ताह में खपत थी वहीं दिल्ली सरकार की ओर से दस मई को 900 MT की डिमांड की गई।

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दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया कि मई के पहले हफ्ते में कोरोना के मामले पीक पर थे और खपत मरीजों की संख्या पर निर्भर थी। प्रति बेड के हिसाब से ऑक्सिजन की खपत बढ़ रही थी। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में 625 मीट्रिक टन और मई के पहले सप्ताह में 700 मीट्रिक टन की जरूरत थी। भारत सरकार का जो फॉर्मूला है उस हिसाब से 50 फीसदी बिना आईसीयू वाले बेड ऑक्सिजन का उपयोग कर सकते हैं जबकि दिल्ली सरकार का फॉर्मूला आईसीएमआर की गाइडलाइन के हिसाब से है जिसमें बिना आईसीयू बेड वाले मरीजों को आक्सिजन की जरूरत है।

कोरोना के सभी मरीजों को इलाज के दौरान हर स्तर पर ऑक्सिजन की जरूरत नहीं है। ऐसा तब भी जब ऑक्सिजन वाले बेड पर हो। जबकि ऐसा मान लिया गया कि सभी मरीजों को जो ऑक्सिजन बेड पर हैं उन्हें ऑक्सिजन की जरूरत है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि यह फॉर्मूला आईसीएमआर की गाइडलाइन के आधार पर है। हॉस्पिटल में भर्ती सभी मरीजों को निरंतर ऑक्सिजन की जरूरत है।

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कई जगहों ऐसी शिकायत आई कि टैंकर खड़े रहे, ऑक्सिजन टैंकर खाली नहीं हो पाया हॉस्पिटल के पास पहले से ही ऑक्सिजन था।

सरकार की ओर से कहा गया है कि कुछ बड़े हॉस्पिटल में ही इनकी ओर से ऑक्सिजन सप्लाई होती है। सप्लाई की टाइमिंग, देरी और अनिश्चितता की वजह से दूसरे सप्लायर्स से ऑक्सिजन आपूर्ति की गई।

refill medical oxygen( FILE PIC)

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