एक किस्सा : जब राष्ट्रपति फूट-फूट कर रो रहे थे, तब देश के प्रधानमंत्री सो रहे थे | Dr. Shankar Dayal Sharma, The 9th president of India, 6 dec in history | Patrika News

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एक किस्सा : जब राष्ट्रपति फूट-फूट कर रो रहे थे, तब देश के प्रधानमंत्री सो रहे थे | Dr. Shankar Dayal Sharma, The 9th president of India, 6 dec in history | Patrika News

एक किस्सा : जब राष्ट्रपति फूट-फूट कर रो रहे थे, तब देश के प्रधानमंत्री सो रहे थे | Dr. Shankar Dayal Sharma, The 9th president of India, 6 dec in history | Patrika News

पॉलीटिकल किस्सों की कड़ी में पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा से जुड़े दिलचस्प किस्से….।

डॉ. शंकर दयाल शर्मा वही व्यक्ति थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया था। लेकिन जब भारत के 9वें राष्ट्रपति बने तो हमेशा उन्हें यह दुख सताता रहा कि वे कभी अपने घर तक नहीं जा सके। उन गलियों तक नहीं जा सके, जहां उन्होंने बचपन के दिन बताए थे। पुराने भोपाल की बुलियादाई की गली में डॉ. शंकर दयाल शर्मा का पैतृक निवास रहा है, यहीं उन्होंने अपने दोस्तों के साथ बचपन बिताया था।

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एक किस्सा यह भी
बात 1968 की है जब कांग्रेस में फूट पडऩे लगी थी। एक गुट पीएम इंदिरा गांधी के साथ खड़ा था और दूसरा गुट तब के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा के साथ। तब दो गुटों में बंटी कांग्रेस में एक नेता ऐसा भी था जिसे दोनों ही तरफ बड़ा आदर मिलता था। सुबह पार्टी अध्यक्ष के साथ होती थी, तो शाम को इंदिरा गांधी की दरबार में गुजरती थी। यह डा. शंकर दयाल शर्मा ही थे। इंदिरा के दरबार में डॉ. शर्मा की उपस्थिति से कांग्रेस अध्यक्ष नाराज थे। इंदिरा के समर्थक इन्हें सच्चा देशभक्त मानते थे, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा इन्हें विभीषण कहने लगे थे। कांग्रेस टूट चुकी थी। इंदिरा को अलग पार्टी बनानी पड़ी। नई पार्टी में शंकरदयाल को वरिष्ठ महासचिव बनाया गया। वे अध्यक्ष भी बने। तो इंदिरा की कैबिनेट में मंत्रालय भी मिला। तब तक एस निजलिंगप्पा शंकर दयाल के नाम से इतने नाराज हो चुके थे कि उन्होंने उनसे मिलना भी बंद कर दिया, यहां तक कि बोलचाल भी बंद कर दी थी।

किसी को नहीं पता था यह छोटा सा नेता बनेगा कांग्रेस का बड़ा रणनीतिकार
कांग्रेस पार्टी में जिस प्रकार से शंकरदयाल का कद बढऩे लगा था, उससे निजलिंगप्पा बेहद नाराज चल रहे थे। खास बात यह है कि वे खुद ही भोपाल में सियासत करने वाले शंकर दयाल को सचिव बनाकर दिल्ली ले गए थे। तब किसी को नहीं पता था कि भोपाल का यह छोटा सा नेता कांग्रेस का बड़ा रणनीतिकार बनकर उभरेगा।

इंदिरा के संकटमोचक भी
शंकर दयाल 1984 में इंदिरा के लिए संकट मोचन तक बन गए थे। 1983 के वक्त आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को हराकर तेलुगु देशम पार्टी ने सरकार बनाई थी। मुख्यमंत्री बने एनटी रामाराव। रामाराव इलाज के लिए अमेरिका गए थे, तभी कांग्रेस के ही नेता बगावत कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लेते हैं। रामाराव लौटकर दिल्ली कूच करते हैं। देश में इंदिरा के खिलाफ आवाजें उठने लगती हैं। तब इंदिरा डॉ. शर्मा को आंध्रा का गवर्नर बनाकर भेज देती हैं। शंकर दयाल रामाराव को फिर से सीएम पद की शपथ दिलवा देते हैं और इंदिरा विरोधी लहर कमजोर होने लगती है।

ग से ‘गधा’ पढ़ाओ
डॉ. शर्मा को सेकुलर नेता माना जाता था। जब वे मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री थे तो उन्होंने स्कूलों में ‘ग’ से ‘गणेश’ की जगह ‘ग’ से ‘गधा’ पढ़ाना प्रारंभ करवाया। तर्क दिया गया था कि ‘गधा’ किसी धर्म का नहीं होता। शिक्षा को धर्म से नहीं जोडऩा चाहिए। जब ऐसे सेकुलर नेता का नाम राष्ट्रपति पद के लिए 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने उठाया तो पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने यह कहकर उनका विरोध किया कि वे ब्राह्मण हैं। नरसिंहराव डॉ. शर्मा को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, क्योंकि डॉ. शर्मा की ना के बाद ही तो वो प्रधानमंत्री बने थे।

ठुकराया था प्रधानमंत्री पद
1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं थीं। 1991 में देश में कांग्रेस की बड़ी जीत हुई थी। पार्टी में मंथन चल रहा था पीएम किसे बनाया जाए, तब सोनिया को पार्टी और इंदिरा के सबसे वफादार शंकर दयाल की याद आई। सभी कांग्रेसी नेता उनके नाम पर सहमत थे। नेहरू-गांधी परिवार की वफादार अरुणा आसीफ अली डॉ. शर्मा से मिलने गई। सोनिया का संदेश दिया। पार्टी चाहती है आप देश के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लें। डॉ. शर्मा ने उम्र का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया। इसके बाद नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री बने।

एक नजर – 19 अगस्त 1918 में भोपाल में हुआ था जन्म।
– 1940 में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
– भारत की आजादी के बाद 1952 में भोपाल के मुख्यमंत्री बने।
– 1984 से वह भारतीय राज्यों के राज्यपाल के नियुक्त किए जाते रहे।
– आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए बेटी और दामाद की हत्या।
– 1985 से 1986 तक पंजाब के राज्यपाल रहे।
– देश के 9वें राष्ट्रपति बने।
– देश के 8वें उपराष्ट्रपति रहे।
– 26 दिसंबर 1999 को देहांत।

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