एकनाथ शिंदे सरकार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार, जानिए मामला

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एकनाथ शिंदे सरकार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार, जानिए मामला

एकनाथ शिंदे सरकार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने लगाई कड़ी फटकार, जानिए मामला


मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने अनाथ और परित्यक्त (घर से त्यागे जा चुके) बच्चों पर शिंदे सरकार के रुख की तीखी आलोचना की है। बाम्बे हाई कोर्ट ने एक एनजीओ की अपील पर सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसा क्यों होता है कि आपके हर मामले में विवाद खड़ा हो जाता है। हाई कोर्ट ने कहा कि हमें बार-बार सामने आना पड़ता है।

‘कब समझेंगे कि सिर्फ आप सही नहीं हो सकते’
शिंदे सरकार की तरफ से पिछली कई सुनवाई में कहा गया कि अनाथ और घर से त्यागे जा चुके बच्चों में अंतर है। इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले ने कहा, ‘हर मामले में सरकार एक विवाद शुरू कर देती है। हमें इससे लड़ना पड़ता है और इसका विरोध करना पड़ता है। यह सरकार कब इस बात को समझ पाएगी कि सिर्फ वह सही नहीं हो सकती है। कई बार वह गलत भी हो सकती है।’

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चाइल्ड होम चलाने वाले एनजीओ की अपील
दरअसल मुंबई के अंधेरी ईस्ट में एक अनाथालय चलाने वाले नेस्ट फाउंडेशन ने हाई कोर्ट में अपील की थी। इसमें दो बच्चों के लिए (ऑर्फन सर्टिफिकेट) अनाथ होने का प्रमाणपत्र जारी करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। सर्टिफिकेट जारी होने की सूरत में ये बच्चे एक प्रतिशत ऑर्फन कोटा के दायरे में आकर हेल्थ साइंस की पढ़ाई कर सकते हैं। महिला और बाल विकास विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी शरद अहीर ने कोर्ट में एफिडेविट दाखिल किया। इस पर कोर्ट ने सख्त ऐतराज जताया।

जान-बूझकर चाइल्ड केयर में बच्चों को डाल देते हैं: सरकार
अहीर ने कोर्ट में कहा कि माता-पिता और अभिभावक जान-बूझकर या सोचते समझते हुए बच्चों को चाइल्ड केयर इंस्टिट्यूट में डाल देते हैं। इससे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 का दुरुपयोग होता है। इसके पीछे उनका मकसद बच्चे को स्कूलिंग, बोर्डिंग, लॉजिंग और दूसरी सुविधाओं को मुहैया कराना होता है।

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क्या आप उन माता-पिता की परिस्थिति समझते हैं: कोर्ट
इस पर जजों ने कहा कि क्या अहीर उन कठिन परिस्थितियों को समझते हैं, जब एक माता-पिता अपने बच्चे का त्याग कर देते हैं। जस्टिस पटेल ने कहा, ‘हो सकता है एक पुरुष के रूप में मैं किसी बच्चे को छोड़ने वाली मां की दुर्दशा को न समझ पाऊं लेकिन एक पिता के रूप में भी यह अकल्पनीय है।’

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क्या सरकार त्यागे गए बच्चे की परवाह नहीं करती है: कोर्ट
जस्टिस पटेल ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा, ‘एक बच्चे को माता-पिता की जरूरत होती है। अगर माता-पिता को हटा दिया जाए तो चाहे अनाथ हो या त्यागा गया बच्चा बात एक ही है। इकलौता फैक्टर बच्चों की परवरिश का अभाव होना है।’ जजों ने कहा कि स्टेट (राज्य सरकार) एक सुरक्षात्मक छतरी की तरह होता है। आरक्षण के मामले में किसी अनाथ या त्यागे गए बच्चे में क्यों भेदभाव होना चाहिए? जस्टिस पटेल ने कहा, ‘मुझे मजबूरन कहना पड़ रहा है कि सरकार हमें यह भरोसा करने को कह रही है कि वह त्यागे गए बच्चे की परवाह नहीं करती है।’

इस मामले में राज्य सरकार के वकील ने एफिडेविट को दोबारा देखने के लिए कोर्ट से समय मांगा। हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 31 मार्च तय की है।

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