ऊंची महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत कदम जरूरी: आरबीआई लेख

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ऊंची महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत कदम जरूरी: आरबीआई लेख

ऊंची महंगाई को काबू में लाने के लिये नीतिगत कदम जरूरी: आरबीआई लेख

मुंबई, 18 अगस्त (भाषा) देश में महंगाई लगातार उच्चस्तर पर बनी हुई है और आने वाले समय में इसे काबू में लाने के लिये उपयुक्त नीतिगत कदम की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में यह कहा गया है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में नरम होकर 6.71 प्रतिशत रही है। मुख्य रूप से खाने का सामान सस्ता होने से महंगाई घटी है।

रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये नीतिगत दर यानी रेपो में लगातार तीन मौद्रिक नीति समीक्षा में 1.40 प्रतिशत की वृद्धि की है। महंगाई दर लगातार सात महीने से केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है।

अर्थव्यवस्था की स्थिति पर रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा की अगुवाई वाली टीम के लिखे लेख में कहा गया है, ‘‘…हाल के समय में संभवत: सबसे सुखद घटनाक्रम जुलाई में महंगाई दर का जून के मुकाबले 0.30 प्रतिशत नरम होना है। वहीं 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में यह औसतन 7.3 प्रतिशत से 0.60 प्रतिशत कम हुई है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘इससे हमारी इस धारणा की पुष्टि हुई है कि मुद्रास्फीति अप्रैल, 2022 में चरम पर थी।’’

हालांकि, आरबीआई ने साफ किया है कि लेख में जो विचार व्यक्त किये गये हैं, वे लेखकों के विचार हैं। कोई जरूरी नहीं है कि लेख में कही गयी बातें रिजर्व बैंक की सोच से मेल खाती हों।

लेख के अनुसार, ‘‘मुद्रास्फीति की जो स्थिति बनी है, वह कमोबेश हमारे अनुमान के अनुरूप है…अगर अनुमान सही रहा तो मुद्रास्फीति अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सात प्रतिशत से घटकर पांच प्रतिशत पर आ जाएगी, जो केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर के अनुरूप होगा।

सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के बीच रखने की जिम्मेदारी दी है।

इसमें यह भी लिखा गया है कि आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है। इसके अलावा उत्पादकों की ओर से कच्चे माल की लागत का भार ग्राहकों पर भी डालने की आशंका है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर है कि उत्पादकों के पास मूल्य निर्धारण और मजदूरी के मामले में भार ग्राहकों पर डालने की कितनी क्षमता है।

हालांकि, कुछ जोखिम कम हुए हैं। इसमें जिंसों खासकर कच्चे तेल के दाम में कमी, आपूर्ति संबंधी दबाव कम होना और मानसून का बेहतर होना शामिल हैं।

लेख में कहा गया है, ‘‘मुद्रास्फीति में कमी जरूर आई है लेकिन यह अब भी उच्चस्तर पर है। इससे आने वाले समय में इसे काबू में लाने के लिये उपयुक्त नीतिगत कदम की जरूरत होगी।’’

इसमें यह भी कहा गया है कि वैश्विक वृद्धि की संभावना मासिक आधार पर कमजोर हुई है।

लेख के अनुसार, देश में आपूर्ति की स्थिति में सुधार हुआ है। हाल में मानसून के बेहतर होने के साथ विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में तेजी देखी जा रही है।

त्योहार आने के साथ गांवों समेत शहरों में ग्राहकों का भरोसा बढ़ना चाहिए। बुवाई गतिविधियां रफ्तार पकड़ रही हैं। केंद्र सरकार के मजबूत पूंजीगत व्यय से निवेश गतिविधियों को समर्थन मिल रहा है।

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