उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की डिनर पार्टी से इसलिए बनाई दूरी, पढ़िए विश्लेषण

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उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की डिनर पार्टी से इसलिए बनाई दूरी, पढ़िए विश्लेषण

उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस की डिनर पार्टी से इसलिए बनाई दूरी, पढ़िए विश्लेषण


मुंबई:राहुल गांधी की संसद सदस्यता छिनने के बाद महाराष्ट्र की सियासत में भी नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि वह सावरकर नहीं गांधी हैं, इसलिए माफी नहीं मांगेंगे। इसके बाद महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे से लेकर उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी को चेतावनी दी। उद्धव ठाकरे का रुख इसलिए अहम है, क्योंकि वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी में पार्टनर हैं। उद्धव ठाकरे ने मालेगांव की सभा में राहुल को चेताया और फिर दिल्ली में कांग्रेस की डिनर पार्टी से भी दूरी बना ली। आखिर सावरकर पर उद्धव ठाकरे की क्या मजबूरी है, यह समझने के लिए नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह से बात की।

सवाल- उद्धव ठाकरे को आखिर खतरा किस बात का है?
जवाब- हमारा जो चुनाव का सिस्टम है यह उसकी प्रॉब्लम है। हमारे यहां बहुत सारे पहचान समूह हैं। इसी पर राजनीतिक पार्टियां खेलती भी हैं। पहचान समूह है शिवसेना, पहचान समूह है यादव-दलित। संविधान में तो सिर्फ शेड्यूल कास्ट (अनुसूचित जाति) लिखा था लेकिन नीतीश कुमार ने तो उसको भी तोड़कर महादलित एक कैटेगरी बना दी। दूसरा राजनीति मौकापरस्त होती है। क्या कांग्रेस ने कभी भी सावरकर को अपना आदर्श माना है? ये बात तो उद्धव ठाकरे को तब भी पता थी, जब उन्होंने सरकार बनाई थी। ऐतराज उनको अपने क्षेत्र को लेकर है, क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो बीजेपी उनको खा जाएगी। बीजेपी अपना प्रसार कर रही है। वहां पर हार्डकोर हिंदुत्व (कट्टर हिंदुत्व) का भाव लाकर कर रही है। उद्धव ठाकरे को खतरा कांग्रेस से थोड़ी है, खतरा तो उनको बीजेपी से है। वह पूरे महाराष्ट्र में इनको हाशिए पर कर देगी, खासकर मुंबई और आसपास जहां पर शिवसेना का प्रभाव है। बीजेपी कहीं पलटकर उनके ऊपर हमला न करे, इसलिए उद्धव ठाकरे ऐसा कर रहे हैं। इसीलिए वह डिनर में भी नहीं गए।

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सवाल- अगर उद्धव ठाकरे सावरकर पर राहुल गांधी के स्टैंड का विरोध नहीं करते तो क्या मुश्किल थी?
जवाब- अगर वह विरोध न करते तो बीजेपी भुनाना शुरू कर देती कि राहुल गांधी ने सावरकर पर ऐसा कहा था और फिर भी उद्धव ठाकरे ऐसा कर रहे हैं। ऐसे में उनका जो मूल है हार्डकोर हिंदुत्व वह खत्म हो जाएगा। कोई उद्धव ठाकरे से यह पूछे कि जब आप महाविकास अघाड़ी बनाकर साथ आए थे तो क्या कांग्रेस सावरकर को अपना भगवान मानती थी। नीतीश कुमार के खिलाफ बीजेपी लड़ती है। फिर साथ मिलकर बीजेपी सत्ता में आ जाती है। फिर जिसके खिलाफ (आरजेडी) नीतीश कुमार लड़े थे उसके साथ चले जाते हैं। यह कमी हमारे FPTP (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट यानी बहुमत का सिस्टम) की है। यानी जिस विधानसभा क्षेत्र में जो कैंडिडेट सबसे ज्यादा वोट पाता है वो जीत जाता है। एक ऐसा समाज जो बुरी तरह से पहचान समूहों में बंटा हुआ है, उसमें आप तर्क से नहीं चल सकते हैं।

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सवाल- बीजेपी से मुकाबले में उद्धव ठाकरे और उनकी तरह क्षेत्रीय पार्टियों की क्या मजबूरी है? उद्धव के पास क्या ऑप्शन है?
जवाब- अगर उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ आएंगे तो बीजेपी धीरे-धीरे उनको हजम कर जाएगी। एक मगरमच्छ जब बड़ा शिकार करता है तो धीरे-धीरे दांत से खींचता है। बीजेपी उनको हजम कर जाएगी। जितने भी इनके साथ के लोग हैं, उन सबको हजम कर लिया। आपका विस्तार क्षेत्र लिमिटेड है और सिर्फ महाराष्ट्र में ही है। शिवसेना की पहचान मराठी अस्मिता से है। इसमें जो बाहर के लोग आकर रहे हैं, चाहे गुजराती हों या अन्य वह उद्धव ठाकरे साथ तो हैं नहीं। आपका विस्तार पूरे महाराष्ट्र में भी नहीं है। ऐसे में आपको खुद से बढ़ना होगा। वरना आप सेकेंड प्लेयर भी नहीं रहेंगे, आपका अस्तित्व नहीं बचेगा। नीतीश कुमार जैसे लालू के साथ रहे या बीजेपी के। यही उद्धव ठाकरे की भी मजबूरी है। यही मजबूरी आरजेडी के साथ है और यही मजबूरी मायावती या सपा के साथ है। यह क्षेत्रीय पार्टियों की मजबूरी है कि या तो बीजेपी के साथ जुटें और सत्ता का मजा लें। बीजेपी से अलग होकर एक ही विकल्प है- सारे विपक्षी दल एक हों। नीतीश कुमार ने तो कर लिया है लेकिन अखिलेश यादव और मायावती नहीं कर पा रहे हैं। दोनों के खिलाफ मुकदमा है। ईडी दोनों पर छापा मार सकती है। नीतीश को यह डर नहीं है।

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सवाल- सावरकर का हिंदुत्व क्या है और क्यों वह हार्डकोर हिंदुत्व के प्रतीक हैं?
जवाब- दो तरह के हिंदुत्व हैं। एक सॉफ्ट हिंदुत्व है जो मूल है हिंदू धर्म का। उसको धीरे से यह दिखाकर कि मुसलमान आए हैं तो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के बहाने सॉफ्ट हिंदुत्व नहीं चलेगा। लिहाजा हार्डकोर हिंदुत्व की बात होती है और उसके प्रतीक हैं सावरकर। उन्होंने अपनी किताब में कहा है कि हिंदू के अलावा मानव को सेकेंड क्लास नागरिक बनकर रहना होगा। उनको भारत, भारतमाता और हिंदू धर्म के नीचे रहना पड़ेगा। ये हार्डकोर हिंदुत्व को सूट करता है। सावरकर के दो पक्ष हैं। वह बहुत ही बुद्धिमान थे। 1900 से 1906 में जाकर उन्होंने ब्रिटिश लाइब्रेरी में चीजों को पढ़ा और अध्ययन किया। उस आदमी की बौद्धिक क्षमता का कोई मुकाबला नहीं था। यह सच है कि अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाला। सावरकर बौद्धिक रूप से बहुत मजबूत थे साथ ही वह हिंदुत्व के लिए समर्पित थे। किसी भी नए दौर में, जिसमें धर्मनिरपेक्ष लोगों की भावनाएं होती हैं, उसमें उनको बुरा भी माना जा सकता है। लेकिन सावरकर सावरकर हैं। अगर एक तरफ डॉक्टर आंबेडकर हैं तो दूसरी तरफ सावरकर। सावरकर का दूसरा पक्ष है कि उन्होंने अंग्रेजों को माफीनामा दिया था। डॉक्टर हेडगेवार आरएसएस लेकर आए उस वक्त क्रांतिकारी थे। जब लोगों ने कहा कि आप गांधी और कांग्रेस के साथ सीधे तौर पर क्यों नहीं हिस्सा ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हमारा संगठन अभी उभर रहा है। अगर हम इसे बढ़ाते नहीं खत्म करते हैं तो साथ जाना होगा। यह हेडगेवार की रणनीति का हिस्सा था। इसी तरह से सावरकर के व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू भी है। हिंदुत्व की रक्षा के लिए और हार्डकोर हिंदुत्व को पल्लवित करने के लिए जो सावरकर ने किया, वो किसी ने नहीं किया।

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