इतना बड़ा फर्जीवाड़ा! दिल्ली में पानी का बिल कलेक्ट करने वाली कंपनी कहीं है ही नहीं… ACB के खुलासे से हिल जाएंगे आप

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इतना बड़ा फर्जीवाड़ा! दिल्ली में पानी का बिल कलेक्ट करने वाली कंपनी कहीं है ही नहीं… ACB के खुलासे से हिल जाएंगे आप

इतना बड़ा फर्जीवाड़ा! दिल्ली में पानी का बिल कलेक्ट करने वाली कंपनी कहीं है ही नहीं… ACB के खुलासे से हिल जाएंगे आप

नई दिल्ली: दिल्ली जल बोर्ड में 20 करोड़ रुपये के घोटाला मामले की जांच कर रही एंटी करप्शन ब्यूरो को नई चीजें पता चली हैं। एसीबी ने बताया कि पेमेंट गेटवे के लिए बैंक ने जिस फर्म को नियुक्त किया था वह केवल पन्नों में दर्ज है और उसने एक कार क्लीनर को इसका डायरेक्टर बना रखा था। वहीं दूसरी फर्म ने रूसी लोगों को डायरेक्टर बना रखा था जिन्हें ट्रेस नहीं किया जा सकता था। ACB अब बैंक के अधिकारियों और डीजेबी को पूछताछ के लिए समन करने वाली है।आपको बता दें कि जांच के आदेश एलजी वीके सक्सेना ने दिए थे जिसके बाद नवंबर में इस मामले पर FIR दर्ज की गई थी।

एंटी करप्शन ब्यूरो के चीफ मधुर वर्मा ने तफ्तीश से इस मामले की जानकारी दी। मधुर वर्मा ने बताया कि साल 2012 में कॉर्पोरेशन बैंक ने दो कंपनियों फ्रेश पे आईटी सल्यूशंस और अर्रुम की नियु्क्ति की थी। इन कंपनियों को डीजेबी पानी बिल के ई-पेमेंट भपगतान के लिए नियुक्त किया गया था। एसीबी ने बताया कि हमने अपनी जांच में पाया कि ऐसी कोई कंपनियां कभी थी ही नहीं। सूत्रों ने बताया कि अर्रुम में 4 से 5 लोगों को डायरेक्टर बनाया गया था वहीं फ्रेश पे में 14-15 लोगों को डायरेक्टर बनाया गया था। कंपनियों का पता लगाने के लिए एजेंसी फ्रेश पे के गुरुग्राम और दिल्ली स्थित ठिकानों पर पहंचे लेकिन वहां ताला लटका हुआ था। यही हाल अर्रुम के कनॉट प्लेस स्थित ऑफिस का भी रहा।

कार क्लीनर निकला कंपनियों का डायरेक्टर
एसीबी चीफ ने आगे बताया कि जांच में पता चला कि जिस रतन सिंह को फ्रेश पे और अर्रुम का डायरेक्टर बताया गया वह वास्तविक में एक कार क्लीनर है। उसका इस व्यापार से कोई संबंध नहीं है। पुलिस ने रतन के मसूदपुर आवास भी गई लेकिन वह अधूरा निकला। आस-पास रहने वाले लोगों से पूछने पर पता चला कि यह आदमी कार सफाई का काम करता है और इसी क्षेत्र में दूसरी लोकेशन पर रहता है। डायरेक्टरों की लिस्ट में कुछ रूसी नागरिकों का भी नाम है। कॉर्पोरेशन बैंक के दस्तावेजों के अनुसार, फ्रेश पे TPDDL और BSES बिजली वितरकों के बिल पेमेंट कलेक्शन में भी शामिल थे। हालांकि पूछने पर दोनों कंपनियों ने इस बात से इंकार कर दिया।

क्या है पूरा मामला
आपको बता दें कि सबसे पहले यह मामला साल 2019 में प्रकाश में आया था। इसमें कस्टमर्स से पानी के बिल के नाम पर 20 करोड़ रुपये जमा कराए गए थे। यह डीजेबी के बैंक खाते में जमा नहीं हुए थे। इसके बजाय एक निजी बैंक खाते में लोगों के पैसे जमा कराए गए थे। एलजी के संज्ञान में मामला आने के बाद उन्होंने मुख्य सचिव को डीजेबी और बैंक अधिकारियों की पहचान करने के साथ-साथ इसमें शामिसल निजी संस्थाओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था।

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