आजम खान पर फैसला, सपा के लिए फिर ‘इम्तिहान’ की घड़ी… समर्थन और विरोध दोनों से खतरा, क्या करेंगे अखिलेश?

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आजम खान पर फैसला, सपा के लिए फिर ‘इम्तिहान’ की घड़ी… समर्थन और विरोध दोनों से खतरा, क्या करेंगे अखिलेश?

आजम खान पर फैसला, सपा के लिए फिर ‘इम्तिहान’ की घड़ी… समर्थन और विरोध दोनों से खतरा, क्या करेंगे अखिलेश?

लखनऊ: एसपी के वरिष्ठ नेता और रामपुर से विधायक आजम खां के सजायाफ्ता होने के बाद एसपी के लिए फिर ‘इम्तिहान’ की घड़ी आ गई है। मामला अदालती होने के चलते आजम के पक्ष में खुलकर खड़े होने पर भी सवाल है और किनारा करने की अपनी मुश्किलें। वहीं, आजम की लगातार दरक रही जमीन और खिसक रही सियासत से एसपी के सामने एक बड़ा मुस्लिम चेहरा तलाशने की भी चुनौती खड़ी हो गई है। समाजवादी पार्टी इस समय तक कोई बड़ा निर्णय आजम खान के बारे में नहीं ले पाई है। विधानसभा सत्र के दौरान जिस प्रकार अखिलेश यादव मुखर दिख रहे थे। आजम खान के खिलाफ कार्रवाई का मामला उठा रहे थे। रामपुर कोर्ट के फैसले के बाद उनकी ओर से कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं आई है।

एसपी में फिलहाल आजम के कद का कोई और मुस्लिम चेहरा नहीं है, जिसकी अपील हो, असर हो और जिसके बयान सियासत में हलचल पैदा करते हों। यही वजह है कि आजम के तेवर चाहे जो रहें हो एसपी नेतृत्व उनके सामने हमेशा नरम ही दिखा है। हालांकि, पिछले आठ साल से गाहे-बगाहे आजम खुद एसपी के लिए मुद्दा बनते रहें हैं, जिसे ‘हल’ करना पार्टी के लिए आसान नहीं रहता। वह भी ऐसे समय में जब निकाय चुनाव सिर पर हैं। लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में किसी भी बड़े नेता को नजरअंदाज करने का संदेश काफी दूर तक जा सकता है। आजम की फैन फॉलोइंग भी काफी बड़ी है। ऐसे में सपा काफी सावधानी से कदम आगे बढ़ाती दिख रही है।

‘लड़ाई’ और सफाई की मुश्किलें
आजम जब एसपी के मंचों पर मुखर रहे तो उनके बयानों ने ध्रुवीकरण की आग को ऐसी हवा दी कि खुद एसपी भी उससे ‘झुलसने’ से नहीं बची। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव के केंद्र में आजम के बयान रहे तो 2019 के लोकसभा चुनाव में मुखरता ने आजम को मुजरिम बना दिया, जिसकी सजा भी गुरुवार को मिली। हालांकि, इस कवायद में अल्पंसख्यक वोटों का महरम भी पार्टी को लगा। 2022 के विधानसभा चुनाव में आजम जेल में थे, इसलिए उनकी सक्रियता नहीं रही। लेकिन, एसपी नेतृत्व ने आक्रामक बयान देने वाले हर चेहरे को खामोश ही रखा, जिनमें इमरान मसूद जैसे नाम भी शामिल थे।

हालांकि, बढ़े वोट शेयर के बाद भी नतीजे पक्ष में नहीं आए तो आजम खुद एसपी के लिए एक सवाल बन गए। यह सवाल था जेल गए आजम की उपेक्षा का। सवाल उठाने वाले पार्टी और सैफई परिवार के भीतर के थे। कभी आजम की चुप्पी तो कभी तंज ने भी इस मुद्दे को हवा दी, जिसका असर रहा कि आजम की नाराजगी पर सफाई और उनको खुश करने की सियासी ‘कीमत’ का लंबा सिलसिला चला। इसकी वजह यह थी कि पार्टी अब तक आजम का विकल्प नहीं तलाश पाई है। नतीजे जो भी रहे हों, लेकिन जब एसपी को आजमगढ़ में मुस्लिमों को छिटकने का डर दिखा तो उपचुनाव में उन्हें आजम को ही ले जाना पड़ा। हालांकि, अब रुख तय करना मुश्किल हो रहा है।

असमंजस यूं ही नहीं है!
आजम की सजा पर एसपी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं है। जबकि, आजम की लड़ाई यहां से और मुश्किल होती दिख रही है। हेट स्पीच के मामले में हाई कोर्ट से राहत मिल भी गई तो आधा दर्जन से अधिक और मुकदमे हैं, जिसमें आजम, उनकी पत्नी और बेटे पर सजा की तलवार लटक रही है। आजम की रामपुर लोकसभा सीट छिन चुकी है और विधायकी भी छिनने के कगार पर है। ऐसे में आजम सवाल और सहानुभूति दोनों के केंद्र में हैं। आजम की उपेक्षा के आरोप झेल चुकी एसपी अगर चुप्पी साधती है तो आरोप और गहरे होंगे।

2022 में मुस्लिम वोटों के एकतरफा समर्थन को बरकरार रखना आसान नहीं होगा। उपचुनाव में इसकी झलक मिल चुकी है। इस बीच आजम की खामोशी या मुखरता दोनों ही संजीदगी से संभालने की जिम्मेदारी भी एसपी पर होगी। अगर, एसपी आजम को लेकर मुखर होती है तो उसके प्रतिद्वंद्वी अदालत की तौहीन के आरोप लगाएंगे। वहीं, आजम सियासी तौर पर अकेले पड़ते हैं तो पार्टी के लिए उनका विकल्प तलाशना और नुकसान की भरपाई करना मुश्किल होगा।

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