असदुद्दीन ओवैसी को हिजाब वाला पीएम चाहिए तो शफीकुर्रहमान बर्क को अल्पसंख्यक, समझिए सियासत

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असदुद्दीन ओवैसी को हिजाब वाला पीएम चाहिए तो शफीकुर्रहमान बर्क को अल्पसंख्यक, समझिए सियासत

असदुद्दीन ओवैसी को हिजाब वाला पीएम चाहिए तो शफीकुर्रहमान बर्क को अल्पसंख्यक, समझिए सियासत

लखनऊ: देश में प्रधानमंत्री पद को पिछले दिनों कई नामों की खासी चर्चा रही। नीतीश कुमार, के. चंद्रशेखर राव से लेकर अखिलेश यादव और मायावती के नाम खूब गरमाए। देश में अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री की बात इन दिनों खूब जोर पकड़ रही है। निशाने पर भारतीय जनता पार्टी है। यह पूरी बहस ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद पर ऋषि सुनक की बहाली के बाद शुरू हुई है। ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं। हिंदू हैं। अपनी हिंदू पहचान पर गर्व करते हैं। उनके इंग्लैंड जैसे क्रिश्चियन बहुल देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद बहस शुरू हो गई है कि क्यों नहीं यहां भी एक अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री बन सकता है? बहस को आगे बढ़ाया है एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने। उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री पद पर एक बुर्काशीं को देखना चाहता हूं। वहीं, समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकउर्र रहमान वर्क को अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री चाहिए। अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री पद की बात लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी भी कर रही है। अब इन सब के पीछे की सियासत को अगर आप समझने की कोशिश करेंगे तो एक चीज साफ दिखेगी, वह है लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति। लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की जुगत में हैं। इसलिए अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री के मुद्दे को खूब हवा दी जा रही है। सवाल भाजपा से इसलिए हो रहा है कि देश की सत्ताधारी पार्टी का लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक में अभी एक भी अल्पसंख्यक सांसद नहीं है। सरकार में अल्पसंख्यक भागीदारी नहीं रहने को लेकर केंद्र सरकार को घेरा जा रहा है।

क्या कहा असदुद्दीन ओवैसी ने?
एआईएमआईएम अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि वे भारत की प्रधानमंत्री के रूप में हिजाब वाली महिला को देखना चाहते हैं। कर्नाटक के बीजापुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने ये बातें कहीं। लेकिन, इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी। ओवैसी ने कहा कि भाजपा मुसलमानों के खिलाफ है। उसका असली मकसद देश से मुसलमानों को हटाना है। उन्होंने कहा कि देश के लिए हलाल मांस खतरा है। मुसलमान की दाढ़ी खतरा है। मुसलमान की टोपी खतरा है। मुसलमान का खाना-पीना, ओढ़ना-सोना सब खतरा है। यही भाजपा का एजेंडा है। पीएम मोदी पर निशना साधते हुए ओवैसी ने कहा कि मोदी कहते हैं सबका साथ और सबका विकास, लेकिन यह सिर्फ जुबानी बातें हैं। उनका असली मकसद मुसलमान की पहचान को हमेशा के लिए खत्म करना है। ओवैसी ने कर्नाटक में फरवरी में हुए हिजाब विवाद पर कहा कि मेरी जिंदगी में या मेरी जिंदगी के बाद एक हिजाब पहनने वाली बच्ची भारत की प्रधानमंत्री बनेगी।

शफीकुर्रहमान बर्क बयान का ये तर्क
अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री मामले में समाजवादी पार्टी भी कूदी है। सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि भारत में भी अल्पसंख्यक समाज के व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनना चाहिए। हमारे देश में भी लोकतंत्र है। जैसे ब्रिटेन में हुआ है, वैसे ही देश चलाने की काबिलियत रखने वाले अल्पसंख्यक और शिक्षित व्यक्ति को यहां भी प्रधानमंत्री बनना चाहिए। कांग्रेस नेताओं के बयानों का समर्थन करते हुए सांसद बर्क ने कहा कि उनके बयान में कुछ भी गलत नहीं है। देश में अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री को लेकर चर्चा की राजनीति गरमाई हुई है। भाजपा हमलावर है। ओवैसी को पार्टी में किसी बुर्कानशीं को आगे लाने की बात कर रही है। वहीं, सपा में भी अल्पसंख्यक चेहरे को आगे करने की बात कही जा रही है।

थरूर और मुफ्ती के बयानों से गरमाई राजनीति
कांग्रेस नेता शशि थरूर और पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती के बयानों से राजनीति गरमाई हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने वाले शशि थरूर ने ग्रेट ब्रिटेन के पीएम पद पर ऋषि सुनक को चुने पर कहा था कि अगर ऐसा होता है, तो मुझे लगता है कि हम सभी को यह स्वीकार करना होगा कि ब्रिटेन के लोगों ने दुनिया में बहुत ही दुर्लभ काम किया है। ब्रिटेन ने अपने सबसे शक्तिशाली कार्यालय में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य को मौका दिया है। जैसे हम भारतीय, ऋषि सुनक के लिए जश्न मना रहे हैं, आइए ईमानदारी से पूछें। क्या यहां ऐसा हो सकता है? वहीं, जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी ग्रेट ब्रिटेन की तर्ज पर देश में अल्पसंख्यक पीएम की बात कही। इन दोनों बयानों पर दोनों नेताओं को ट्रोल किया गया। भाजपा ने महबूबा मुफ्ती से पूछ लिया कि क्या कश्मीर में अल्पसंख्यक सीएम को वे प्रमोट करेंगी?

तो क्या देश में अल्पसंख्यक समाज को नहीं मिला मौका?
देश में क्या अल्पसंख्यक चेहरों को मौका नहीं मिला है? यह एक सवाल तो उठता ही है। कांग्रेस के नेता अगर यह सवाल करें तो इस पर चर्चा शुरू हो जाती है। उन तमाम लोगों के लिए जवाब पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के रूप में सामने हैं। सिख समुदाय से आने वाले मनमोहन सिंह 10 सालों तक देश के प्रधानमंत्री रहे। अगर कांग्रेस नेता अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री की बात करते है तो एक सवाल यह उठता है कि क्या सिख समुदाय अल्पसंख्यक नहीं हैं?

देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर अब तक चार अल्पसंख्क बैठ चुके हैं। देश के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन को याद किया जाना चाहिए। वे राष्ट्रपति पद पर 1967 से 1969 तक विराजमान रहे। मोहम्मद हिदायतुल्ला देश के चौथे और अल्पसंख्यक समाज से आने वाले दूसरे राष्ट्रपति हुए। देश के सातवें राष्ट्रपति के रूप में फखरुद्दीन अली अहमद ने 1974 से 1977 तक अपनी सेवाएं दीं।

सरदार ज्ञानी जैल सिंह वर्ष 1982 से 1987 तक देश के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त रहे थे। इनसे पहले मोहम्मद हिदायतुल्ला वर्ष 1982 में कुछ दिनों के लिए फिर देश के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किए थे। मशहूर साइंटिस्ट डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2002 से वर्ष 2007 के बीच राष्ट्रपत के रूप में अपनी सेवाएं दी थी। इस प्रकार शीर्ष पदों पर अल्पसंख्यक चेहरों को मौका न मिलने की इस पूरी स्थिति में कहीं फिट नहीं बैठती है।

नजर मुस्लिम वोट बैंक पर
अभी ऋषि सुनक के जरिए जो बहस शुरू हुई है, उसके पीछे का कारण वर्ष 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव है। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर तमाम दल अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने की कोशिश में हैं। भाजपा की ओर से भी यूपी में पिछले दिनों पसमांदा सम्मेलन का आयोजन किया गया। बसपा प्रमुख मायावती कांग्रेस से सपा तक सफर करने वाले इमरान मसूद को साथ जोड़कर दलित-अल्पसंख्यक राजनीति को धार देने में जुटी हैं। वहीं, समाजवादी पार्टी अपने मुस्लिम+यादव समीकरण को एकजुट रखने का प्रयास करती दिख रही है। इन सबके बीच मुस्लिम समाज के बीच देश भर में ओवैसी अपनी अलग जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अल्पसंख्यक और बुर्कानशीं प्रधानमंत्री के बहाने इस वर्ग को भावनात्मक रूप से साथ लाने की पूरी कवायद है।

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