अमेरिका के तुरंत बाद भारत क्यों बढ़ा देता है ब्याज दरें? जानिए महंगाई, रेपो रेट, बांड और रुपये के बीच का रिश्ता

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अमेरिका के तुरंत बाद भारत क्यों बढ़ा देता है ब्याज दरें? जानिए महंगाई, रेपो रेट, बांड और रुपये के बीच का रिश्ता

अमेरिका के तुरंत बाद भारत क्यों बढ़ा देता है ब्याज दरें? जानिए महंगाई, रेपो रेट, बांड और रुपये के बीच का रिश्ता

नई दिल्ली : लोन पर बढ़ी हुई ईएमआई (Loan EMI) देने के लिए अब तैयार हो जाइए। यूएस फेड (US Fed) द्वारा अगले हफ्ते ब्याज दरों में बढ़ोतरी किया जाना लगभग तय है। माना जा रहा है कि इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी ब्याज दरों (Interest Rates) को बढ़ाएगा। आखिर जब भी अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती है, तो दुनियाभर में क्यों खलबली मच जाती है? आपने देखा होगा कि यूएस फेड के तुरंत बाद ही आरबीआई भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर देता है। इसका क्या कारण है? अगर आरबीआई ब्याज दरें नहीं बढ़ाए तो क्या होगा। इस लेख में आगे हम इन सब बातों के बारे में जानेंगे। दरअसल, महंगाई, रेपो रेट और बांड के बीच एक रिश्ता होता है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों को इस रिश्ते में संतुलन बनाकर रखना होता है।

दरें बढ़ने के आसार क्यों?
सोमवार को भारत में महंगाई के आंकड़े (Inflation Data in India) जारी हुए थे। इसके बाद मंगलवार को अमेरिका में महंगाई (Inflation in US) के आंकड़े जारी हुए । दोनों ही देशों में प्रमुख महंगाई दर अधिक दर्ज हुई है। इसका असर यह है कि महंगाई को रोकने के लिए अब यूएस फेड (US Fed) द्वारा ब्याज दरें बढ़ाना तय सा हो गया है। यूएस में मंथली सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) अगस्त में 8.3 फीसदी की दर से बढ़ी। इससे अब अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी करना तय हो गया है। महंगाई पर काबू पाने के लिए अमेरिका ही नहीं, भारत में भी ब्याज दरें बढ़ने की उम्मीद है। भारत में अगस्त महीने में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7 फीसदी पर पहुंच गई। अब आरबीआई रेपो रेट (Repo Rate) में 0.25 से 0.35 फीसदी की बढ़ोतरी का फैसला ले सकता है। फेड की बैठक 21 सितंबर को होगी। इसके बाद आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक 28 सितंबर से 30 सितंबर के बीच होगी।

ब्याज दरें बढ़ने से कैसे रुकती है महंगाई

इकोनॉमी में डिमांड और सप्लाई के बीच बैलेंस बनाना काफी जरूरी होता है। जब डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम रह जाए, तो महंगाई (Inflation) बढ़ने लगती है। डिमांड बढ़ने के पीछे एक कारण लिक्विडिटी का अधिक होना भी है। जब लोगों के पास अधिक मात्रा में पैसा होगा, तो वे ज्यादा खर्च करेंगे और डिमांड बढ़ेगी। एक अच्छी डिमांड जीडीपी ग्रोथ के लिए बढ़िया होती है। लेकिन जब महंगाई काफी अधिक हो जाती है, तो केंद्रीय बैंक बाजार से लिक्विडिटी को कम करने की कोशिश करते हैं। केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर देते हैं। इसके बाद बैंकों को भी लोन पर दरें बढ़ानी होती हैं। बढ़ी हुई ब्याज दरों के चलते ग्राहक लोन लेना कम कर देते हैं। इससे बाजार में लिक्विडिटी (पैसों की आवक) कम हो जाती है और महंगाई पर काबू पाया जाता है।

अमेरिका के तुरंत बाद भारत में क्यों बढ़ती हैं दरें

अगर आरबीआई अमेरिका में दरें बढ़ने के बाद रेपो रेट (Repo Rate) नहीं बढ़ाए, तो देश को काफी नुकसान हो सकता है। अमेरिका और भारत की प्रमुख ब्याज दरों के बीच गेप बढ़ने से विदेशी निवेशक अपना पैसा निकालने लगेंगे। देश में विदेशी निवेश की कमी हो जाएगी। जब विदेशी निवेशक पैसा निकालेंगे, तो रुपये में भी कमजोरी आ आएगी। यही कारण है कि आरबीआई को यूएस फेड के तुरंत बाद ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं। आइए विस्तार से समझते हैं।
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रेपो रेट और बांड में रिलेशन
अन्य देशों की तरह भारत बांड (Bond) जारी करता है। ये बांड लाखों करोड़ रुपयों के होते हैं। इन बांड्स में विदेशी निवेशक बड़ी मात्रा में पैसा लगाते हैं। निवेशकों को इस बांड पर ब्याज मिलता है। सरकार इन बांड्स से जुटाए गए पैसों को विकास कार्यों आदि में खर्च करती है। जब केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दर बढ़ाते हैं, तो बांड्स पर ब्याज दर भी बढ़ती है। मान लीजिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर बढ़ाई। इससे वहां के बांड पर भी ब्याज दर बढ़ेगी। अब अगर भारत अपने यहां प्रमुख ब्याज दर नहीं बढ़ाता है, तो धीरे-धीरे अमेरिका और भारत के बांड पर मिलने वाली ब्याज दर का अंतर कम हो जाएगा। अब निवेशक भारत के बांड से पैसा निकालकर अन्य जगहों पर लगाने लगेंगे। साफ है कि इससे विदेशी निवेश घट जाएगा। भारतीय बांड बाजार से एफपीआई की निकासी ना हो, इसके लिए भारत में भी आरबीआई को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ती हैं। इसी तरह ही दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाएं भी ब्याज दरें बढ़ाती हैं।

रुपये पर कैसे पड़ेगा असर
आरबीआई द्वारा रेपो रेट नहीं बढ़ाने से विदेशी निवेशक भारत में बांड से निकासी करने लगेंगे। इससे आरबीआई को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा इन निवेशकों को देनी पडे़गी। देश में विदेशी मुद्रा में कमी आएगी और परिणामस्वरूप रुपये की कीमत गिर जाएगी।

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