अब गुड़गांव से जयपुर 4 की बजाय दो घंटे में ही पहुंचेंगे , 160 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ेगी ट्रेन

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अब गुड़गांव से जयपुर 4 की बजाय दो घंटे में ही पहुंचेंगे ,  160 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ेगी ट्रेन

अब गुड़गांव से जयपुर 4 की बजाय दो घंटे में ही पहुंचेंगे , 160 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ेगी ट्रेन

गुड़गांव : दिल्ली से जयपुर अब 4 की बजाय सिर्फ दो घंटे में पहुंचा जा सकेगा। इसकी वजह है कि दिल्ली-जयपुर रेलवे ट्रैक पर ऑटोमैटिक सिग्नलिंग और इंटरलॉकिंग का काम पूरा हो गया है। साथ ही जहां पर ट्रैक गड़बड़ था, उसे भी दुरुस्त कर दिया गया है। हाल ही में गुड़गांव से अलवर के बीच हाईस्पीड ट्रायल ट्रेन भी दौड़ाई गई थी। सब कुछ ठीक रहा तो इस साल के अंत तक इस लाइन पर 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें दौड़ने लगेंगी यानी गुड़गांव से जयपुर तक 4 घंटे की बजाय 2 घंटे में पहुंचा जा सकेगा।

अभी सबसे कम समय अहमदाबाद राजधानी ट्रेन से
अभी गुड़गांव से जयपुर तक 276 किलोमीटर का सफर सबसे कम तीन घंटे 12 मिनट का समय अहमदाबाद राजधानी ट्रेन लेती है। इसके बाद तीन घंटे 42 मिनट अजमेर शताब्दी लगाती है। बाकि सभी ट्रेनें चार से आठ घंटे में पहुंचाती हैं। फिलहाल दिल्ली से जयपुर के बीच ट्रेनों की औसत स्पीड 70 किमी प्रति घंटे की है। ट्रेनों के परिचालन को लेकर उत्तर-पश्चिम रेलवे की तरफ से गतिशक्ति यूनिट भी गठित कर दी गई है, जो स्टेशन पुनर्विकास, यार्ड रिमॉडलिंग, ट्रेन टाइमिंग आदि कार्यों को समयबद्ध तरीके से पूरा करना सुनिश्चित करेगी।

दिल्ली से राजस्थान के रूटों पर यात्री ट्रेनों की गति बढ़ाने की दिशा में काम अंतिम चरण में है। उम्मीद है कि इस साल के अंत तक 160 किमी प्रति घंटे की अधिकतम स्पीड से ट्रेन दौड़ने लग जाएंगी। सभी मंडलों में गति शक्ति यूनिट भी गठित कर दी गई है।

– कैप्टन शशि किरण, सीपीआरओ, उत्तर पश्चिम रेलवे

दूर की जा रही हैं ये बाधाएं

  • रेलवे फाटकों पर अंडरपास और ओवरब्रिज बनाए जा रहे हैं।
  • पशुओं को रोकने के लिए दीवार और तारबंदी की जा रही।
  • रेलवे ट्रैक पार करने के लिए स्टेशनों पर एफओबी का निर्माण।
  • दोहरीकरण और विद्युतिकरण का काम पूरा हो चुका है।
  • डीजल इंजनों को इलेक्ट्रिक इंजनों में बदला जा रहा है।
  • वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेड कॉरिडोर पर शिफ्ट होंगी मालगाड़ियां।

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ये है ऑटोमैटिक सिग्नलिंग
इस रेल खंड पर ऑटोमैटिक सिग्नलिंग यानी एबसोल्यूट प्रणाली का काम पूरा हो चुका है। इसका फायदा यह होता है कि 2 स्टेशनों के बीच एक साथ चार से पांच ट्रेनें चलाई जा सकती हैं। इस सिस्टम में लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर के बाद लगातार सिग्नल दिए जाते हैं। एबसोल्यूट सिग्नलिंग प्रणाली में जब तक एक ट्रेन अगले स्टेशन को पार न कर ले तब तक उसके पीछे वाले स्टेशन से ट्रेन नहीं चलाई जाती।

गुड़गांव स्टेशन एक नजर

  • रोजाना 50 हजार से ज्यादा यात्री करते हैं सफर
  • इनमें से लंबी दूरी की ट्रेनों के 20 हजार यात्री
  • कुल 46 ट्रेनों का है ठहराव, इनमें पांच प्रीमियम भी हैं शामिल
  • राजधानी, शताब्दी, गरीबरथ और सप्तक्रांति का भी है स्टॉपेज

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ट्रेनों में लगेंगे एलएचबी कोच
इस रूट की ट्रेनों में आईसीएफ की बजाय एलएचबी कोच होंगे। प्रीमियम और कुछ सुपरफास्ट ट्रेनों को छोड़कर अन्य ट्रेनों में अभी आईसीएफ कोच हैं जो लोहे के बने होते हैं और इनका भार अधिक होता है। इनमें एयर ब्रेक होते हैं और इनकी अधिकतम गति 110 किमी प्रति घंटा तक होती है। वहीं एलएचबी कोच जर्मन तकनीक पर बने हुए हैं। यह स्टेनलेस स्टील के होते हैं। जिससे इनका वजन कम होता है। इनमें डिस्क ब्रेक लगा होता है। अधिकतम गति 200 किमी प्रति घंटा और परिचालन गति 160 किमी प्रति घंटा होती है। दुर्घटना के बाद ये डिब्बे एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते हैं। इनके रखरखाव में कम खर्चा होता है और बैठने की क्षमता कम होती है। यह आईसीएफ से 1.7 मीटर बड़े भी होते हैं।

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