अटल बिहारी.. मोरारजी देसाई ने चखी यहां की बेढ़ई और कचौड़ियां, 65 साल से ठेले पर चल रही दुकान, गजब का स्वाद
आगरा: ताजनगरी आगरा के लोगों की सुबह यहां के सबसे प्राचीनतम और लजीज व्यंजन बेढ़ई और कचौड़ियों के नाश्ते से होती है। स्वाद ऐसा कि खाने वाले अपनी उंगलियों को चाट जाते हैं। आगरा में कई दुकानें अपने स्वाद के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं में से एक दुकान रामा गुरू की है। जो कि पिछले 65 सालों से एक ठेले पर चल रही है। खास बात यह है कि 65 सालों के बाद भी यहां का स्वाद नहीं बदला है। यही वजह है कि बड़े-बड़े नेताओं ने आगरा आकर बेढ़ई और कचौडिय़ों का स्वाद लिया है। दुकान को चलाने वाले किशोर शर्मा कहते हैं कि उनके बाबा ने इसे शुरू किया था। यहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई, मोरार जी देसाई, लालजी टंडन समेत कई बड़े नेताओं ने नाश्ता किया है।
कभी मुगलों की राजधानी रहा आगरा देश के प्राचीन शहरों में शामिल है। बेलनगंज आगरा के व्यस्तम बाजारों में से एक है। बेलनगंज तिकोनियां पर सुबह छह बजे से कचौड़ी और बेढ़ई खाने वालों की भीड़ जुट जाती है। किशोर बताते हैं कि उनकी दुकान पर आगरा के कई किमी दूर से लोग रोजाना सुबह नाश्ता करने के लिए आते हैं।
सरसों के तेल से कचौड़ी और बेढ़ई तैयार करते हैं। उनके बाबा रामा गुरु ने एक आना की एक कचौड़ी बेची है अब वह आठ रुपये में एक बेचते हैं। किशोर के पिता लक्ष्मन शर्मा बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपई जब भी आगरा आते थे तो सर्किट हाउस में उनके यहां से नाश्ता पैक होकर जाता था। एक-दो बार ठेले पर भी आकर बेढ़ई खाई है। बेढ़ई खाने के बाद वे देवीराम की जलेबियां भी खाते थे।
खास स्वाद के लिए जाना जाता है बेलनगंज
बेलनगंज में कई ऐसी दुकानें हैं जो कि आजादी से पूर्व से चल रही है। जिनमें रामबाबू का पराठा, देवीराम की मिठाई, बेनीराम के तवे वाले छोले भटूरे और रामा गुरू की कचौडिय़ां। बेलनगंज व्यापारियों और सेठ लोगों की भूमि है। खाने पीने के शौकीन और पुराने स्वाद के लिए लोग कई किमी दूर से आते हैं। लोगों का कहना है कि अगर वे बेलनगंज आते हैं तो इन खास दुकानों पर जरूर जाते हैं।
सरसों के तेल में बनती है कचौड़ी-बेढ़ई
लक्ष्मन शर्मा 30-35 सालों से दुकान संभाल रहे हैं। उनकी बेढ़ई और कचौडिय़ों में खास स्वाद उनकी सब्जी होती है। सब्जी तैयार करने में वे जिन मसालों का प्रयोग करते हैं वे उन्हें खुद तैयार करते हैं। आटे की बेढ़ई बनाई जाती है और मैदा की कचोडिय़ां बनती हैं। इन्हें सरसों तेल में तला जाता है। लजीज सब्जी के साथ गरम-गरम बेढ़ई खाने में कमाल का जायका पैदा करती हैं।
इनपुट-सुनील साकेत
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सरसों के तेल से कचौड़ी और बेढ़ई तैयार करते हैं। उनके बाबा रामा गुरु ने एक आना की एक कचौड़ी बेची है अब वह आठ रुपये में एक बेचते हैं। किशोर के पिता लक्ष्मन शर्मा बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपई जब भी आगरा आते थे तो सर्किट हाउस में उनके यहां से नाश्ता पैक होकर जाता था। एक-दो बार ठेले पर भी आकर बेढ़ई खाई है। बेढ़ई खाने के बाद वे देवीराम की जलेबियां भी खाते थे।
खास स्वाद के लिए जाना जाता है बेलनगंज
बेलनगंज में कई ऐसी दुकानें हैं जो कि आजादी से पूर्व से चल रही है। जिनमें रामबाबू का पराठा, देवीराम की मिठाई, बेनीराम के तवे वाले छोले भटूरे और रामा गुरू की कचौडिय़ां। बेलनगंज व्यापारियों और सेठ लोगों की भूमि है। खाने पीने के शौकीन और पुराने स्वाद के लिए लोग कई किमी दूर से आते हैं। लोगों का कहना है कि अगर वे बेलनगंज आते हैं तो इन खास दुकानों पर जरूर जाते हैं।
सरसों के तेल में बनती है कचौड़ी-बेढ़ई
लक्ष्मन शर्मा 30-35 सालों से दुकान संभाल रहे हैं। उनकी बेढ़ई और कचौडिय़ों में खास स्वाद उनकी सब्जी होती है। सब्जी तैयार करने में वे जिन मसालों का प्रयोग करते हैं वे उन्हें खुद तैयार करते हैं। आटे की बेढ़ई बनाई जाती है और मैदा की कचोडिय़ां बनती हैं। इन्हें सरसों तेल में तला जाता है। लजीज सब्जी के साथ गरम-गरम बेढ़ई खाने में कमाल का जायका पैदा करती हैं।
इनपुट-सुनील साकेत