अचला सप्तमी और सूर्य जयंती पर आज होगा पूजन, रखेंगे व्रत | Worship will be done today on Achala Saptami and Surya Jayanti | Patrika News
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर शनिवार को अचला सप्तमी का व्रत रखा जाएगा । भगवान सूर्य को समर्पित इस व्रत को सूर्य जयंती, रथ सप्तमी के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अचला सप्तमी के दिन भगवान सूर्य रथ में सवार होकर प्रकट हुए थे। इसी के कारण इस दिन को सूर्य जयंती कहा जाता है। शनिवार को सूर्य जयंती पर पूजन व स्नान-दान किया जाएगा।
स्नान-दान भी किया जाएगा
जबलपुर। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर शनिवार को अचला सप्तमी का व्रत रखा जाएगा । भगवान सूर्य को समर्पित इस व्रत को सूर्य जयंती, रथ सप्तमी के नाम से भी जानते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अचला सप्तमी के दिन भगवान सूर्य रथ में सवार होकर प्रकट हुए थे। इसी के कारण इस दिन को सूर्य जयंती कहा जाता है। शनिवार को सूर्य जयंती पर पूजन व स्नान-दान किया जाएगा। श्रद्धालु व्रत रखकर घरों और मन्दिरों में सूर्यदेव के विशेष अनुष्ठान करेंगे। महिलाएं भी संतान के लिए मंगलकामना करेंगी।
यह है पूजन,स्नान के मुहूर्त-
अचला सप्तमी का व्रत इस वर्ष 28 जनवरी, शनिवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन स्नान का शुभ मुहुर्त सुबह 5 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर 7 बजकर 14 मिनट तक बताया जा रहा है। वहीं, अचला सप्तमी के दिन पूजा के शुभ मुहूर्त का समापन सुबह 8 बजकर 45 मिनट पर माना जा रहा है।
बन रहे सुखद योग-
उदया तिथि के अनुसार अचला सप्तमी का व्रत 28 जनवरी को रखा जाएगा। पंचांग के मुताबिक अश्विनी नक्षत्र होने से सौम्य नाम का शुभ योग दिन भर रहेगा। वहीं भरणी और साध्य योग भी निर्मित हो रहा है। पौराणिक मान्यता है कि खुद भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत के बारे में बताया था और इस व्रत को करने की विधि भी बताई थी।
सूर्यदेव का हुआ था जन्म,विवाह –
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला बताते हैं कि भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को ही सूर्यदेव का आविर्भाव हुआ था। सप्तमी तिथि पर ही उन्हें भार्या प्राप्त हुई थी, इसी तिथि पर सूर्यदेव को दिव्य रूप प्राप्त हुआ और इसी दिन संतान प्राप्त हुई। यही वजह है कि सूर्यदेव को सप्तमी तिथि अति प्रिय है। स्कंद पुराण के अनुसार इसी दिन सूर्यदेव अश्वरथ पर पहली बार आरूढ हुए थे।माघ शुक्ल सप्तमी को नारद पुराण में अचला व्रत कहा गया है। यह पुत्रदायक व्रत माना गया है। इसे त्रिलोचन जयंती भी कहा जाता है। इस दिन अरुणोदय के समय स्नान किया जाता है। स्वयं सूर्यदेव ने कहा है कि माघ शुक्ल सप्तमी के दिन जो मेरी पूजा करेगा मैं अपने अंश से उसका पुत्र होउंगा। इस दिन आक और बेर के सात—सात पत्ते सिर पर रखकर स्नान कर दिनभर नियम संयम से उपवास रखा जाता है।