‘अगर लड़की कॉन्डम खरीदे तो इसमें गलत क्या है’, ऐक्‍ट्रेस प्रनूतन बहल के बेबाक बोल

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‘अगर लड़की कॉन्डम खरीदे तो इसमें गलत क्या है’, ऐक्‍ट्रेस प्रनूतन बहल के बेबाक बोल

ऐक्ट्रेस प्रनूतन बहल (Pranutan Bahl) ने 2019 में ‘नोटबुक’ फिल्‍म से बॉलिवुड डेब्‍यू किया। वह इन दिनों अपनी फिल्‍म ‘हेलमेट’ (Helmet Movie) को लेकर चर्चा में हैं। यह फिल्‍म कॉन्डम (Condom) से जुड़ी सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ती है। फिल्‍म का ट्रेलर आ चुका है और सुर्ख‍ियों में है। प्रनूतन ने इसी सिलसिले में ‘नवभारत टाइम्‍स’ से खास बातचीत की। प्रनूतन की पहली फिल्म ‘नोटबुक’ असफल रही थी। लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। वह दादी नूतन (Nutan) और पापा मोहनीश बहल (Mohnish Bahl) की सिनेमाई विरासत को आगे बढ़ाने को लेकर उत्‍साह से भरी हुई हैं। लेकिन क्‍या यह एक दबाव भी है? प्रनूतन ने तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की है। खासकर अपनी नई फिल्‍म के सब्‍जेक्‍ट को लेकर। आज भी लड़‍की अगर मेडिकल शॉप पर जाकर कॉन्‍डम खरीदती है तो आसपास मौजूद कान और आंख खड़े हो जाते हैं। प्रनूतन कहती हैं, ‘अगर लड़की कॉन्‍डम खरीदे तो इसमें गलत क्‍या है। ये कोई अपराध नहीं है।’

आपकी फिल्म ‘हेलमेट’ कॉन्डम से जुड़ी झिझक को दिखाती है। हमारे समाज में सेक्स हमेशा ही एक टैबू सब्‍जेक्‍ट रहा है। आपका निजी अनुभव इस बारे में क्या रहा है?
ये बिलकुल सही है कि हमारी सोसायटी में सेक्स एक टैबू माना जाता है और इसलिए कॉन्डम के बारे में बात करने से भी लोग हिचकते हैं। हम फिल्म में यही बता रहे हैं कि कॉन्डम खरीदना कुछ गलत नहीं है। ऐसा करके आप बहुत सी चीजों से सावधानी बरत रहे हैं, जनसंख्या से, बीमारियों से, अनचाही प्रेग्नेंसी से, तो जो शर्म और अपराध बोध समाज आपको महसूस कराता है, वह बहुत ही गलत है, क्योंकि ये कोई अपराध नहीं है। मैंने पर्सनली तो कभी कॉन्डम नहीं खरीदी है, पर मैं उम्मीद करती हूं कि ‘हेलमेट’ इस धारणा को तोड़े कि लड़के ही क्यों, अगर लड़कियां भी कॉन्डम खरीद रही है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है। फिल्म में यही मेरे करैक्टर रूपाली के जरिए दिखाया है, जो बहुत बिंदास सोचती है और कॉन्डम बेचती है।


ये फिल्म तीन दोस्तों की कहानी लग रही है। आपका किरदार कितनी अहमियत रखता है? और मुंबई की प्रनूतन को बनारस की रूपाली बनने के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ी?
मेरा किरदार बहुत ही ज्यादा अहम है। वह ट्रेलर में नहीं दिखाया गया है, पर जब आप फिल्म देखेंगे, तो आप समझेंगे कि ये सब हो क्यों रहा है? रूपाली और लकी की लव स्टोरी इसकी मेन वजह है। तैयारी की जहां तक बात है, तो मैं सात दिन पहले ही इस रोल के लिए सिलेक्ट हुई, तो तैयारी करने का ज्यादा वक्त नहीं मिला, इसलिए शुरू में थोड़ी मुश्किल भी हो रही थी। किरदार और उसके लहजे को पकड़ने में, क्योंकि वह बहुत लाउड है। फिर मुझे अपारशक्ति, अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा जैसे कलाकारों के साथ मैच करना था, जिनकी कॉमिक टाइमिंग बहुत बेहतरीन है, तो शुरू में थोड़ा चैलेंजिंग था, पर धीरे-धीरे सब पकड़ में आ गया।

ये फिल्म आपलोगों ने कोविड के बीच शूट की। आपकी एक शील्ड लगाकर शूट करने वाली फोटो भी आई थी। वह कितना चैलेंजिंग रहा?
वह भी बहुत चैलेंजिंग था और हम सबको बहुत निराशा भी हुई। हम नहीं चाहते थे कि ऐसे शूट करना पड़े। तब हमारा एक गाना बाकी था, जो हमें कोरोना महामारी के बीच में शूट करना पड़ा, तो काफी मुश्किल होती थी। मास्क पहनना, शील्ड पहनना, सैनिटाइज करना, मेकअप, कॉस्टयूम सबमें बहुत दिक्कत होती थी, लेकिन हमारी टीम बहुत अच्छी है, तो सब अच्छे से हो गया। मैं घर पर भी काफी सावधानी रखती थी। जैसे, अभी भी मैं प्रमोशन कर रही हूं, तो मैं अलग कमरे में रहती हूं। बहन के साथ रूम शेयर नहीं करती। पैरंट्स से भी फासला बनाकर रखती हूं, तो हम ये सब ध्यान रखते हैं।


सलमान खान के बैनर की फिल्म ‘नोटबुक’ एक तरह से आपके लिए ड्रीम डेब्यू थी। ऐसे में जब वह बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली, तो उस निराशा को कैसे हैंडल किया?
‘नोटबुक’ का न चलना मेरे लिए बहुत निराशाजनक था, क्योंकि दुर्भाग्य से जब तक आपकी फिल्म हिट नहीं होती, आपको उस तरह से काम भी नहीं मिलता, जितना हिट होती तो मिलता। अगर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर न चले, तो उसके बाद काम मिलना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है। फिर भी मैं ओके थी, क्योंकि जब आप फिल्मी परिवार से होते हैं, तो आपको पता होता है कि ऐसे उतार-चढाव आएंगे। हम हर फिल्म की सफलता या असफलता से प्रभावित नहीं हो सकते, क्योंकि वह हमारे हाथ में नहीं है। हमारे हाथ में है अपना काम और लोगों ने मेरा काम पसंद किया, तो मैं उससे खुश थी और हूं। रिव्यू बहुत अच्छे थे, सबने मेरी एक्टिंग की तारीफ की और यही एक चीज मेरे हाथ में है। बाकी आपके हाथ में कुछ है नहीं, तो उसे लेकर आप कितना निराश हो सकते हैं।

क्या आप अपने प्रॉजेक्ट्स के लिए पापा मोहनीश बहल से सलाह-मशविरा करती हैं? ‘हेलमेट’ के बारे में उनकी क्या राय थी?
हां, हां, मैं बिलकुल उनसे बात करती हूं, सुझाव लेती हूं। उन्हें भी हेलमेट का कॉन्सेप्ट बहुत ही यूनिक लगा। वह बहुत खुश थे कि मैं नोटबुक से एकदम अलग जॉनर की फिल्म कर रही हूं।


आप नूतन जैसी लीजेंड ऐक्‍ट्रेस की पोती और मोहनीश बहल जैसे अनुभवी अभिनेता की बेटी हैं। इस लीगेसी का कितना दबाव रहता है? आप इसे फायदेमंद मानती हैं या नुकसानदेह? क्योंकि इस वजह से नेपोटिजम के आरोप भी लगते हैं!
मेरे लिए ये हमेशा बहुत ही गर्व की बात रहेगी कि मैं एक ऐसे परिवार से आती हैं, जिसमें इतने कमाल के कलाकार और लोग हैं। इसका दबाव नहीं है, लेकिन जिम्मेदारी जरूर है। मेरी ख्वाहिश हमेशा यही रहेगी कि मैं उन्हें खुश कर सकूं। रही बात नेपोटिजम की, मैंने कभी काम के लिए अपने परिवार का नाम इस्तेमाल नहीं किया है। मेरे पापा या किसी ने भी कभी मेरे लिए एक फोन कॉल तक नहीं किया है। पहली फिल्म मिलने से पहले तीन साल तक मैं ऑडिशन की लाइन में खड़ी रहती थी, तो मुझे नहीं पता परिवार का लाभ उठाना क्या होता है। मैंने कभी वो किया नहीं है, लेकिन जिसको करना है, वह उसकी चॉइस है और मैं जियो और जीने दो में यकीन रखती हूं।

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