अखिलेश का भविष्य, आजम की राजनीति और BJP के पसमांदा दांव का फैसला करेंगे यूपी उपचुनाव के नतीजे

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अखिलेश का भविष्य, आजम की राजनीति और BJP के पसमांदा दांव का फैसला करेंगे यूपी उपचुनाव के नतीजे

अखिलेश का भविष्य, आजम की राजनीति और BJP के पसमांदा दांव का फैसला करेंगे यूपी उपचुनाव के नतीजे

लखनऊः उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर-खतौली विधानसभा इलाके में उपचुनाव संपन्न कराए जा चुके हैं। सुस्त वोटिंग के बावजूद तीनों उपचुनाव के नतीजों पर पूरे उत्तर प्रदेश की नजर है। कारण है कि तीनों सीटें प्रदेश में राजनीति के नए समीकरणों, सियासी ताकत के नए प्रयोग और पुरानी सत्ता की अपने गढ़ पर कितनी पकड़ है, इसकी सबसे बड़ी प्रयोगशाला के तौर पर देखी-मानी जा रही हैं। इस बार के उपचुनाव के नतीजे न सिर्फ अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य तय करने वाले हैं बल्कि रामपुर के आजम खान की राजनीतिक हैसियत पर बड़ा फैसला सुनाने वाले हैं। इसके अलावा ये परिणाम यूपी की सियासत में भारतीय जनता पार्टी के एक नए राजनीतिक समीकरण के हश्र की भी इबारत लिखेंगे। विस्तार से समझते हैं कि मैनपुरी, खतौली और रामपुर उपचुनाव के नतीजे यूपी की राजनीति के लिए इतने महत्वपूर्ण क्यों हैंः

मैनपुरी में विरासत की बचाने की लड़ाई

मैनपुरी लोकसभा सीट सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के दिवंगत होने के बाद खाली हुई थी। इस सीट को पूर्व सपा मुखिया नेताजी के नाम से ही पहचान मिली। वह लगातार यहां से सांसद बनते रहे। ऐसे में मुलायम सिंह यादव की इस विरासत को संभालने की जिम्मेदारी अखिलेश यादव के कंधों पर थी। लेकिन बीते कुछ उपचुनावों में पार्टी के मजबूत गढ़ गंवाने के बाद अखिलेश यादव इस बार सतर्क दिखे। उन्होंने मैनपुरी उपचुनाव के लिए न सिर्फ प्रत्याशी चुनने में काफी सावधानी बरती बल्कि पहली बार उपचुनाव में घर-घर चुनाव प्रचार करने के लिए भी निकले।

मैनपुरी चुनाव से अखिलेश की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। एक तो मुलायम सिंह यादव की इस पारंपरिक सीट को बचाने की लड़ाई है। दूसरी तरफ पत्नी डिंपल यादव को जो उन्होंने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर चुनने का फैसला किया है, यह उपचुनाव उस फैसले की भी परीक्षा है। मैनपुरी उपचुनाव यूं तो नेताजी के लिए सहानुभूति के तौर पर डाले गए वोटों से सपा जीत जाती लेकिन बीजेपी ने मैदान में मुलायम के कथित शिष्य को उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया। उपचुनाव में अपेक्षाकृत कम मतदान ने भी मैनपुरी में कांटे की टक्कर की संभावना को बढ़ा दिया है। यहां पत्नी डिंपल यादव के प्रचार के लिए अखिलेश, चाचा शिवपाल और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने हुंकार भरी है।

कुल मिलाकर सपा ने यह सीट जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकी है। ऐसे में चुनाव के नतीजे सीधे अखिलेश यादव की नेतृत्व क्षमता से संबद्ध हो गए हैं। मैनपुरी के लिए उनके तमाम फैसलों मसलन- चुनाव में डिंपल को प्रत्याशी बनाना, चुनाव प्रचार के लिए खुद मैदान में उतरकर बीजेपी की कड़ी टक्कर को मान्यता देना, चाचा शिवपाल यादव से दोस्ती आदि की परीक्षा की घड़ी है, जिसकी सफलता-असफलता पर गुरुवार को आने वाला चुनाव परिणाम मुहर लगाने वाला है।

रामपुर में आजम की सियासत का फैसला

रामपुर सपा का ऐसा मजबूत किला है, जिस पर बीजेपी एक बार जोरदार प्रहार कर चुकी है। आजम खान के लोकसभा सदस्यता छोड़ने के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी ने सपा के प्रत्याशी को हरा दिया। इसके बाद आजम खान को कोर्ट ने विधायकी के भी अयोग्य करार दे दिया। अब आजम के करीबी आसिम राजा सपा की ओर से बीजेपी के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। जेल से चुनाव जीत जाने वाले आजम खान के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि रामपुर के मतदाताओं में उनकी पकड़ सिर्फ तभी तक दिखती है, जब तक कि वह खुद उम्मीदवार होते हैं। हालिया उपचुनाव में ही आजम खान ने अपने सबसे करीबी को मैदान में उतारा लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। इस बार भी मामला वैसा ही है।

आजम खान की मुसलमान वोटर्स पर मजबूत पकड़ मानी जाती है लेकिन रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की हार ने उनकी इस पकड़ पर सवाल उठा दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता और सपा कैबिनेट में अहम पदों की शोभा बढ़ा चुके आजम की पार्टी में महत्ता ही मुसलमान वोटरों को बांधे रखने से संबंधित है। ऐसे में अगर उनकी मुस्लिम वोटरों खासतौर पर पसमांदा पर से पकड़ ढीली होती है तो यह उनके राजनैतिक करियर के लिए ठीक संकेत नहीं होगा। यही कारण है कि रामपुर उपचुनाव के नतीजे आजम खान की सियासत के लिए बेहद अहम साबित होने वाले हैं।

बीजेपी की पसमांदा पॉलिटिक्स का लिटमस टेस्ट

भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से पसमांदा मुसलमानों को साधने में जुटी है। इसके लिए बीजेपी के नेताओं ने पसमांदा समाज के साथ कई सम्मेलन किए। आरएसएस से लेकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं तक ने मुस्लिम समुदाय के नेताओं से मिलन-जुलन का कार्यक्रम किया। इसका सीधा सा टारगेट प्रदेश के कुल मुसलमानों में 80 फीसदी की अच्छी-खासी संख्यात्मक हिस्सेदारी रखने वाले पसमांदा मुसलमान हैं। रामपुर में भी भी 55 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जिसकी नुमाइंदगी का दावा आजम खान और सपा करती रही हैं।

इन 55 फीसदी मुसलमानों में अधिकांश संख्या पसमांदा मुसलमानों की है। पसमांदा का मतलब है कि वे मुसलमान जो विकास की राह में काफी पिछड़े हैं। मुस्लिम विरोधी छवि के लिए कुख्यात भारतीय जनता पार्टी इन पिछड़े समुदायों को साध लेने के रास्ते से ही सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश में लगी है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधे इस समाज के लोगों को मिला है। ऐसे में सीधा फायदा पहुंचाने की दलील लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता जब पसमांदा मुसलमानों के दर पर दस्तक देते हैं तो यहां सपा और अन्य दलों की दावेदारी थोड़ी कमजोर पड़ती ही है। कई पसमांदा वोटर्स ने खुले तौर पर बीजेपी के समर्थन के बारे में बोलना भी शुरू किया है, जिसके बाद से सपा और अन्य दलों में खलबली भी बढ़ी है।

वहीं बीजेपी अपने पक्ष में बन रहे इस माहौल का फायदा उठाने का मौका गंवाना नहीं चाहती। यही कारण है कि सत्ताधारी दल ने मुख्तार अब्बास नकवी जैसे पार्टी के कद्दावर मुस्लिम नेता को रामपुर अभियान के लिए विशेष तौर पर काम पर लगा दिया था। नकवी यहां खिचड़ी पंचायत करते रहे और हर समाज खासतौर पर पसमांदा मुसलमान के लोगों के साथ खूब पींगें बढ़ाईं। इसके अलावा सुरेश खन्ना, योगी आदित्यनाथ और मंत्री दानिश अंसारी जैसे लोगों ने भी रामपुर में जनसभाएं की। बीजेपी के इन ताबड़तोड़ प्रयासों का नतीजा भी गुरुवार को आने वाले उपचुनाव से जुड़ा है।

खतौली में सीट बचाने की लड़ाई

गुंडों-माफियों की पार्टी होने का दाग मिटाने की कोशिश में लगी अखिलेश की सपा ने खतौली में मदन भैया को उम्मीदवार बना दिया है। यह उसके पक्ष में सकारात्मक है या नहीं, यह नतीजों के बाद ही पता चलेगा। अयोग्य साबित किए गए विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमार सैनी को उम्मीदवार बनाने वाली भाजपा सपा पर मदन भैया के आपराधिक प्रवृत्ति को लेकर ही निशाना साध रही है। पार्टी के सभी शीर्ष नेता खतौली में रैली कर चुके हैं। सभी ने मदन भैया के माध्यम से समाजवादी पार्टी को गैंगस्टर्स और अपराधियों की पार्टी साबित करने की पूरी कोशिश की है। खतौली की जनता ने बीजेपी के इन दावों को स्वीकार किया है या नहीं, यह भी उपचुनाव के नतीजे ही बताएंगे जो गुरुवार को आने वाले हैं।

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