हस्तशिल्प कला को सहेजने में जुटा हरियाणा का ये परिवार, 4 सदस्यों को मिल चुका नेशनल अवॉर्ड
झज्जर: बहादुरगढ़ का बोंदवाल परिवार 3 पीढ़ियों से हस्तशिल्प कला को सहेजने का काम कर रहा है। इस परिवार के 4 सदस्यों को हस्तशिल्प कला का राष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुका है। जबकि एक सदस्य को नेशनल मेरिट अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही हस्तशिल्प कला के लिए सबसे बड़े सम्मान शिल्प गुरु अवार्ड से भी इस परिवार को सम्मानित किया जा चुका है। इसी परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत बोंदवाल ने महात्मा बुध की अस्थियों को रखने का बक्सा भी बनाया था। पिछले कई दशकों से बहादुरगढ़ का बोंदवाल परिवार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हस्तशिल्प के क्षेत्र में प्रदेश का नाम रोशन कर रहा है। चंदन व कदम लकड़ी की हस्त कारीगरी में निपुण इस परिवार ने पारंपरिक कला को आगे बढ़ाया है।हाथी दांत पर नकाशी करने के लिए मिला था नेशनल अवार्ड
बोंदवाल परिवार के सदस्य महावीर बोंदवाल को साल 1979 में सबसे पहले हस्तशिल्प कला क्षेत्र का नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने हाथी दांत पर की गई नक्काशी के लिए सम्मानित किया था। उनके बाद उनके भाई राजेन्द्र बोंदवाल को 1984 में हाथी दांत पर की गई नक्काशी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया था। वर्ष 1999 में इनके पिता जयनारायण बोंदवाल को चंदन की लकड़ी पर नक्काशी करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया था। परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत बोंदवाल को 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम आजाद ने राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया था। 2004 में ही चन्द्रकान्त को यूनेस्को का श्रेष्ठ अवॉर्ड भी मिला था। इसी परिवार के सदस्य सूर्यकांत बोंदवाल को हस्तकला के लिए 2013 में नेशनल मेरिट अवॉर्ड मिला था।
विदेशों में जाकर भी सिखा चुके हैं हस्तशिल्प कला
हस्तशिल्प कलाकार राजेन्द्र बोंदवाल को 2015 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हस्तशिल्प कला के सबसे बड़े सम्मान हस्त शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित किया। उन्हें यह अवॉर्ड एक लकड़ी के फ्रेम पर चिड़िया व फूल पत्ती बनाने के लिए दिया गया था। इसके अलावा, वह दो साल के लिए नॉर्थ अफ्रीका भी गए। वहां पर आईटीआई में छात्रों को लकड़ी की कारीगिरी सिखाने के लिए सरकार की ओर से भेजा गया। भारत सरकार के आग्रह पर वे कई देशों में जाकर हस्तशिल्प कला युवाओं को सिखा भी चुके हैं। उन्होंने बताया कि हरियाणा प्रदेश देश और विदेश में उन्हें उनकी कला की बदौलत खूब मान सम्मान मिला है। वे पहले हाथी दांत पर कलाकारी करते थे और इसी कलाकारी की बदौलत उन्हें पहला राष्ट्रीय अवार्ड मिला था। हाथी दांत पर प्रतिबंध लगने के बाद उन्होंने चंदन की लकड़ी पर काम शुरू किया। लेकिन चंदन की लकड़ी पर कलाकारी के प्रशंसक कम होने के बाद उन्होंने कदम की लकड़ी पर कलाकारी शुरू कर दी।
पहले कलाकारों के पास था काम बहुत ज्यादा
राष्ट्रीय अवार्ड विजेता महावीर बोंदवाल ने बताया कि महावीर बोंदवाल ने बताया कि उन्होंने 16 हाथियों की एक बेल को बनाया था। यह कारीगिरी उन्होंने एक ही पीस में बनाई थी। उस कारीगिरी के लिए उन्हें अवॉर्ड दिया गया। उनके पिता जयनारायण बोंदवाल एक उम्दा कलाकार थे। वह हाथी दांत और लकड़ी पर बिना किसी पेंसिल स्केच के सिर्फ औजारों की सहायता से ही बेहतरीन कलाकार का प्रदर्शन करते थे। उन्होंने बताया कि पहले कलाकारों के पास काम बहुत ज्यादा होता था लेकिन अब उनके पास काम है। लेकिन उनके काम का मोल अब उन्हें कहीं ज्यादा मिलता है। समय के साथ साथ हस्तशिल्प कला कला क्षेत्र में भारी बदलाव देखने को मिले हैं।
परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत बोंदवाल हैं बेहद खास
बोंदवाल परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत ने बताया कि उन्हें यह कला विरासत में मिली है। वे इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के कलाकार हिअ जिन्हें हस्तशिल्प कला के लिए नेशनल अवार्ड मिला है। उन्हें कलामणि व वन पीस अंडर कट पैरेट बनाने के लिए सम्मान दिया गया था। इसके अलावा, साल 2009 में कलानिधि पुरस्कार से उन्हें नवाजा जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चंद्रकात को साल 2004 में यूनेस्को अवॉर्ड भी मिल चुका है। चंद्रकांत ने बताया कि उनकी कलाकृतियों की मांग प्रदेश के अलावा देश-विदेश में भी है। वे कहते हैं कि हस्तशिल्प बेहद मेहनत और बारीकी का काम है, जिसे बढ़ावा देने के लिए सरकार को अधिकाधिक प्रयास करते रहने चाहिए।
चंद्रकांत ने बनाया था महात्मा बुध की अस्थियों को रखने का बक्सा
चंद्रकांत बोंदवाल ने महात्मा बुद्ध की अस्थियों को रखने के लिए लकड़ी का बॉक्स भी तैयार किया, जिसमें भगवान बुद्ध की अस्थियों को रखकर श्रीलंका ले जाया गया। देश की तत्कालीन पर्यटन एवं सांस्कृतिक विकास मंत्री कुमारी शैलजा और दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के निदेशक चंद्रकांत द्वारा बनाए गए चंदन की लकड़ी के बक्से में महात्मा बुध की अस्थियां रखकर श्रीलंका गए थे और वहां की सरकार को इसे सौंपा था। चंद्रकांत ने इसके अलावा इंच भर की ओखली, मटका, हांडी व जूती बनाई है, जिनके माध्यम से वे प्रदेश की पारंपरिक वस्तुओं का प्रचार-प्रसार कर संस्कृति को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं।
पंजाब की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Punjab News
बोंदवाल परिवार के सदस्य महावीर बोंदवाल को साल 1979 में सबसे पहले हस्तशिल्प कला क्षेत्र का नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने हाथी दांत पर की गई नक्काशी के लिए सम्मानित किया था। उनके बाद उनके भाई राजेन्द्र बोंदवाल को 1984 में हाथी दांत पर की गई नक्काशी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया था। वर्ष 1999 में इनके पिता जयनारायण बोंदवाल को चंदन की लकड़ी पर नक्काशी करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया था। परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत बोंदवाल को 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम आजाद ने राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया था। 2004 में ही चन्द्रकान्त को यूनेस्को का श्रेष्ठ अवॉर्ड भी मिला था। इसी परिवार के सदस्य सूर्यकांत बोंदवाल को हस्तकला के लिए 2013 में नेशनल मेरिट अवॉर्ड मिला था।
विदेशों में जाकर भी सिखा चुके हैं हस्तशिल्प कला
हस्तशिल्प कलाकार राजेन्द्र बोंदवाल को 2015 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हस्तशिल्प कला के सबसे बड़े सम्मान हस्त शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित किया। उन्हें यह अवॉर्ड एक लकड़ी के फ्रेम पर चिड़िया व फूल पत्ती बनाने के लिए दिया गया था। इसके अलावा, वह दो साल के लिए नॉर्थ अफ्रीका भी गए। वहां पर आईटीआई में छात्रों को लकड़ी की कारीगिरी सिखाने के लिए सरकार की ओर से भेजा गया। भारत सरकार के आग्रह पर वे कई देशों में जाकर हस्तशिल्प कला युवाओं को सिखा भी चुके हैं। उन्होंने बताया कि हरियाणा प्रदेश देश और विदेश में उन्हें उनकी कला की बदौलत खूब मान सम्मान मिला है। वे पहले हाथी दांत पर कलाकारी करते थे और इसी कलाकारी की बदौलत उन्हें पहला राष्ट्रीय अवार्ड मिला था। हाथी दांत पर प्रतिबंध लगने के बाद उन्होंने चंदन की लकड़ी पर काम शुरू किया। लेकिन चंदन की लकड़ी पर कलाकारी के प्रशंसक कम होने के बाद उन्होंने कदम की लकड़ी पर कलाकारी शुरू कर दी।
पहले कलाकारों के पास था काम बहुत ज्यादा
राष्ट्रीय अवार्ड विजेता महावीर बोंदवाल ने बताया कि महावीर बोंदवाल ने बताया कि उन्होंने 16 हाथियों की एक बेल को बनाया था। यह कारीगिरी उन्होंने एक ही पीस में बनाई थी। उस कारीगिरी के लिए उन्हें अवॉर्ड दिया गया। उनके पिता जयनारायण बोंदवाल एक उम्दा कलाकार थे। वह हाथी दांत और लकड़ी पर बिना किसी पेंसिल स्केच के सिर्फ औजारों की सहायता से ही बेहतरीन कलाकार का प्रदर्शन करते थे। उन्होंने बताया कि पहले कलाकारों के पास काम बहुत ज्यादा होता था लेकिन अब उनके पास काम है। लेकिन उनके काम का मोल अब उन्हें कहीं ज्यादा मिलता है। समय के साथ साथ हस्तशिल्प कला कला क्षेत्र में भारी बदलाव देखने को मिले हैं।
परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत बोंदवाल हैं बेहद खास
बोंदवाल परिवार के सबसे छोटे सदस्य चंद्रकांत ने बताया कि उन्हें यह कला विरासत में मिली है। वे इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के कलाकार हिअ जिन्हें हस्तशिल्प कला के लिए नेशनल अवार्ड मिला है। उन्हें कलामणि व वन पीस अंडर कट पैरेट बनाने के लिए सम्मान दिया गया था। इसके अलावा, साल 2009 में कलानिधि पुरस्कार से उन्हें नवाजा जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चंद्रकात को साल 2004 में यूनेस्को अवॉर्ड भी मिल चुका है। चंद्रकांत ने बताया कि उनकी कलाकृतियों की मांग प्रदेश के अलावा देश-विदेश में भी है। वे कहते हैं कि हस्तशिल्प बेहद मेहनत और बारीकी का काम है, जिसे बढ़ावा देने के लिए सरकार को अधिकाधिक प्रयास करते रहने चाहिए।
चंद्रकांत ने बनाया था महात्मा बुध की अस्थियों को रखने का बक्सा
चंद्रकांत बोंदवाल ने महात्मा बुद्ध की अस्थियों को रखने के लिए लकड़ी का बॉक्स भी तैयार किया, जिसमें भगवान बुद्ध की अस्थियों को रखकर श्रीलंका ले जाया गया। देश की तत्कालीन पर्यटन एवं सांस्कृतिक विकास मंत्री कुमारी शैलजा और दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के निदेशक चंद्रकांत द्वारा बनाए गए चंदन की लकड़ी के बक्से में महात्मा बुध की अस्थियां रखकर श्रीलंका गए थे और वहां की सरकार को इसे सौंपा था। चंद्रकांत ने इसके अलावा इंच भर की ओखली, मटका, हांडी व जूती बनाई है, जिनके माध्यम से वे प्रदेश की पारंपरिक वस्तुओं का प्रचार-प्रसार कर संस्कृति को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं।