‘हर परिवार को 15 लाख रुपए, 1 एकड़ जमीन’: पूर्व सांसद बोले- उत्तर कोयल नहर प्रोजेक्ट के प्रभावितों को दोबारा मुआवजा, 780 किसानों को फायदा – Aurangabad (Bihar) News h3>
पूर्व सांसद ने कहा कि करीब 11 साल तक ये परियोजना ठंडे बस्ते में पड़ी रही।
‘उत्तर कोयल नहर परियोजना के पास 7 ऐसे गांव हैं, जो डूब क्षेत्र में आते हैं। डैम में पानी भरने के बाद ये गांव डूब जाएंगे। ऐसे में इन गांव के 780 किसान परिवारों को दोबारा मुआवजा देने का फैसला हुआ है। हर परिवार को 15 लाख रुपए और एक एकड़ जमीन दी जा रही ह
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पूर्व सांसद ने कहा कि ये औरंगाबाद, पलामू, गढ़वा और गया जिलों के लिए बड़ी खुशखबरी है। उन्होंने वर्तमान सांसद राजद के अभय कुशवाहा पर तंज कसते हुए ये भी कहा कि गलत श्रेय लेने के लिए भी दिमाग चाहिए। परियोजना का इतिहास सबको पता है। अगर कोई श्रेय लेने की कोशिश करेगा तो वह मजाक का पात्र बन जाएगा। जैसे अगर कोई कहे कि पोखरण में परमाणु परीक्षण उसी ने शुरू कराया, तो क्या वह मजाक का पात्र नहीं बनेगा।
प्रेसवार्ता में जानकारी देते पूर्व सांसद सुशील कुमार सिंह।
पूर्व सांसद बोले- नहर परियोजना को लेकर केंद्र सरकार का बड़ा फैसला
औरंगाबाद के पूर्व सांसद सभा भाजपा नेता सुशील कुमार सिंह ने कहा कि उत्तर कोयल नहर परियोजना को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। इस परियोजना से 50 लाख से ज्यादा किसान प्रभावित हैं। 1975 में इस योजना को मंजूरी मिली थी। लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों की उदासीनता के कारण यह योजना अधूरी रह गई।
करीब 11 साल पहले तक यह योजना ठंडे बस्ते में पड़ी थी। 2009 में जब जनता ने दोबारा सांसद चुना, तब इसे फिर से शुरू करने की कोशिश की गई। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। कई प्रयासों के बावजूद कोई सफलता नहीं मिली। सिंचाई मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी ने डैम में फाटक लगाने का आदेश दिया था। लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने टाइगर प्रोजेक्ट का हवाला देकर रोक लगा दी। इसके बाद केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया। लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
2009 में सांसद बनने के बाद प्रधानमंत्री, वन और पर्यावरण मंत्री से मुलाकात की गई। मंत्री जयराम रमेश ने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई। कमेटी ने डैम स्थल का निरीक्षण किया। लेकिन रिपोर्ट देने से पहले मंत्रालय में बदलाव हो गया। जयंती नटराजन मंत्री बनीं। उनसे भी कई बार आग्रह किया गया। तत्कालीन सांसद इंदर सिंह नामधारी भी साथ गए। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने पर भी निराशा ही हाथ लगी। 2013 में उनके हस्ताक्षर वाला पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि परियोजना में अड़चनें हैं, इसे पूरा नहीं किया जा सकता।
1975 में इस परियोजना को केंद्र सरकार की मंजूरी मिली थी।
2017 में अधूरे काम को पूरा करने के लिए दी 1622 करोड़ की मंजूरी
2014 में सरकार बदली। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। उन्हें योजना की जानकारी दी गई। उन्हें आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी किसान हितैषी योजना अधूरी है। इसके बाद प्रभावित क्षेत्रों के सांसदों की टोली बनाई गई। टोली में चतरा के सांसद सुनील कुमार, पलामू के बीडी राम, जहानाबाद के अरुण कुमार सिंह, गया के हरि मांझी शामिल थे। प्रधानमंत्री से लगातार मुलाकात होती रही। उनके निर्देश पर कार्रवाई शुरू हुई। मुख्य सचिव, संबंधित विभागों के मंत्री और अधिकारी चर्चा में शामिल हुए।
2017 में केंद्रीय मंत्री परिषद ने अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए 1622 करोड़ रुपए की मंजूरी दी। 20 महीने में कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन जटिलताओं के कारण समय बढ़ाना पड़ा। फिर से 2456 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई। इसमें एक अनोखा निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किया कि एक ही जमीन के लिए किसानों को दोबारा मुआवजा दिया जाएगा। यह परंपरा और नियम के खिलाफ था। लेकिन 50 लाख से ज्यादा किसान प्रभावित हो रहे थे। इसलिए यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया।