हरिनाम संकीर्तन पर किया भक्ति नृत्य, लगाया 1008 व्यंजनों का भोग, अमेरिका के युवा ब्रह्मचारी भक्त भी हुए शामिल | Devotional dance performed on Harinam Sankirtan, 1008 dishes were offe | News 4 Social h3>
अविर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में 4 दिवसीय हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया गया था। इसमें खास आकर्षण का केंद्र अमेरिका से आए पांच युवा ब्रह्मचारी भक्त थे। इसका नेतृत्व मत्स्य दास अटलांटा अमेरिका ने किया। संगीतमय संकीर्तन पर भक्ति नृत्य भाव विभोर हो गए। इस मौके पर मत्स्यदास ने बताया कि कलयुग में भगवत प्रेम प्राप्ति का सरल और सबसे उत्तम उपाया भगवान हरिनाम का कीर्तन है। यहीं मानव समाज के लिए कल्याणकारी है। इस मौके पर भक्ति सिद्धांत ठाकुर के आध्यात्मिक जीवन पर वैभव कथा हुई। इस दौरान मंदिर के अध्यक्ष अच्युतकृष्ण प्रभु ने उनके जीवन पर प्रकाश डाला।
भगवान को लगाया 1008 व्यंजनों का भोग
इस उत्सव के मौके पर भजन और हरे कृष्ण कीर्तन का आयोजन किया गया। इस मौके पर 1008 अलग-अलग व्यंजनों का भोग अर्पित किया गया। इस मौके पर संदेश, खाजा, हलवा, राजभोग, रसगुल्ला, अनेक प्रकार के सुगंधित चावल, पुलाव, शाक सब्जी, नमकीन पदार्थ सहित विभिन्न प्रकार के फलों का रस अर्पित किया गया। इस भोग को मंदिर से जुडे गृहस्थ भक्तों द्वारा मनाया गया था। इस मौके पर पुष्पांजलि और आरती हुई। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जीवन
– वैष्णव परिवार में जन्म: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जन्म के एक महान वैष्णव परिवार में हुआ था। उनके पिता, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, एक प्रखर विद्वान और महान वैष्णव भक्त थे, जिन्होंने भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
– कौमार अवस्था से आध्यात्मिक जागृति: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर मात्र 5 वर्ष की आयु से ही आध्यात्मिक रुचि के लक्षण दिखाए। वे बचपन में ही भगवद गीता और अन्य ग्रंथों का पाठ करके, उनको कंठस्थ करते।
– वैष्णव सिद्धांत में रुचि: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर में ज्ञान के लिए एक अतृप्त प्यास थी और उन्होंने अपने बाल्य और युवावस्था का अधिकांश समय विभिन्न वैदिक ग्रंथों और धर्मग्रंथों का अध्ययन करते हुए बिताया। उन्हें रूप गोस्वामी और अन्य वैष्णव आचार्यों के रचना व टिप्पणी में विशेष रुचि थी।
– एक दूरदर्शी जननायक: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के पास गौड़ीय वैष्णव सिद्धांतों को भारतवर्ष से परे प्रचार करने की स्पष्ट दृष्टिकोण था। उनका मानना था कि भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षा संपूर्ण विश्व में एक आध्यात्मिक क्रांति ला सकती है।
– आध्यात्मिक यात्रा: सन् 1918 में, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु से जुड़े पवित्र स्थान जैसे वृन्दावन और मायापुर धाम की यात्रा किए। इस दौरान, वे कई साधु, संथ के संपर्क में आए, जिनसे वे भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का गभीर समझ प्राप्त किए।
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अविर्भाव दिवस के उपलक्ष्य में 4 दिवसीय हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया गया था। इसमें खास आकर्षण का केंद्र अमेरिका से आए पांच युवा ब्रह्मचारी भक्त थे। इसका नेतृत्व मत्स्य दास अटलांटा अमेरिका ने किया। संगीतमय संकीर्तन पर भक्ति नृत्य भाव विभोर हो गए। इस मौके पर मत्स्यदास ने बताया कि कलयुग में भगवत प्रेम प्राप्ति का सरल और सबसे उत्तम उपाया भगवान हरिनाम का कीर्तन है। यहीं मानव समाज के लिए कल्याणकारी है। इस मौके पर भक्ति सिद्धांत ठाकुर के आध्यात्मिक जीवन पर वैभव कथा हुई। इस दौरान मंदिर के अध्यक्ष अच्युतकृष्ण प्रभु ने उनके जीवन पर प्रकाश डाला।
भगवान को लगाया 1008 व्यंजनों का भोग
इस उत्सव के मौके पर भजन और हरे कृष्ण कीर्तन का आयोजन किया गया। इस मौके पर 1008 अलग-अलग व्यंजनों का भोग अर्पित किया गया। इस मौके पर संदेश, खाजा, हलवा, राजभोग, रसगुल्ला, अनेक प्रकार के सुगंधित चावल, पुलाव, शाक सब्जी, नमकीन पदार्थ सहित विभिन्न प्रकार के फलों का रस अर्पित किया गया। इस भोग को मंदिर से जुडे गृहस्थ भक्तों द्वारा मनाया गया था। इस मौके पर पुष्पांजलि और आरती हुई। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जीवन
– वैष्णव परिवार में जन्म: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जन्म के एक महान वैष्णव परिवार में हुआ था। उनके पिता, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, एक प्रखर विद्वान और महान वैष्णव भक्त थे, जिन्होंने भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
– कौमार अवस्था से आध्यात्मिक जागृति: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर मात्र 5 वर्ष की आयु से ही आध्यात्मिक रुचि के लक्षण दिखाए। वे बचपन में ही भगवद गीता और अन्य ग्रंथों का पाठ करके, उनको कंठस्थ करते।
– वैष्णव सिद्धांत में रुचि: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर में ज्ञान के लिए एक अतृप्त प्यास थी और उन्होंने अपने बाल्य और युवावस्था का अधिकांश समय विभिन्न वैदिक ग्रंथों और धर्मग्रंथों का अध्ययन करते हुए बिताया। उन्हें रूप गोस्वामी और अन्य वैष्णव आचार्यों के रचना व टिप्पणी में विशेष रुचि थी।
– एक दूरदर्शी जननायक: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के पास गौड़ीय वैष्णव सिद्धांतों को भारतवर्ष से परे प्रचार करने की स्पष्ट दृष्टिकोण था। उनका मानना था कि भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षा संपूर्ण विश्व में एक आध्यात्मिक क्रांति ला सकती है।
– आध्यात्मिक यात्रा: सन् 1918 में, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु से जुड़े पवित्र स्थान जैसे वृन्दावन और मायापुर धाम की यात्रा किए। इस दौरान, वे कई साधु, संथ के संपर्क में आए, जिनसे वे भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का गभीर समझ प्राप्त किए।