साइकिल के पंप से खेली जाती है होली: बेगूसराय में अद्भुत होली खेलने की सदियों की परंपरा, बुजुर्गों ने बताया- सामाजिक एकता का महत्त्व – Begusarai News

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साइकिल के पंप से खेली जाती है होली:  बेगूसराय में अद्भुत होली खेलने की सदियों की परंपरा, बुजुर्गों ने बताया- सामाजिक एकता का महत्त्व – Begusarai News

साइकिल के पंप से खेली जाती है होली: बेगूसराय में अद्भुत होली खेलने की सदियों की परंपरा, बुजुर्गों ने बताया- सामाजिक एकता का महत्त्व – Begusarai News

बेगूसराय के मटिहानी गांव में अनोखी होली की एक परंपरा सदियों से जीवित है। इस गांव में होली सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि दो दिन मनाई जाती है। यहां लोग पारंपरिक बाल्टी और पिचकारी से नहीं, बल्कि बड़े-बड़े ड्रम और नांद में रंग घोलकर होली खेलते हैं।

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इस गांव में होली में सिर्फ रंगों की बरसात नहीं, बल्कि एक अद्भुत प्रतियोगिता भी होती है, जहां पूरे गांव के लोग सात जगहों पर इकट्ठा होकर एक-दूसरे पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। प्रतियोगिता अब तक कई दशकों से चली आ रही है और इस बार भी इसके लिए व्यापक तैयारी की गई है।

परंपरा के अनुसार, मटिहानी गांव में यह होली सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि दो दिन मनाई जाती है। पहले दिन लोग पांच जगहों पर इकट्ठा होते हैं और रंगों से भरे बड़े बर्तन, ड्रम और नांद को लेकर दो पक्षों में बंट जाते हैं। फिर एक पक्ष दूसरे पक्ष पर रंग डालने के लिए साइकिल में हवा भरने वाले पंप का इस्तेमाल करते हैं।

जो पक्ष दूसरे पक्ष को रंग डालकर भागने पर मजबूर कर देता है, उसे विजेता घोषित किया जाता है। दूसरे दिन यह सिलसिला दो कुओं पर चलता है, और फिर विजेता और उपविजेता घोषित किए जाते हैं।

साइकिल के पंप से होली खेलने की परंपरा।

इस परंपरा में महिलाओं की भी भागीदारी

पहले यहां केवल पुरुषों की टोली होती थी, लेकिन 2023 में महिलाओं को भी इसमें शामिल किया गया। इस वर्ष महिलाओं की टोली अलग-अलग कुएं पर रंग भरी होली खेलेगी। महिला स्वयंसेवकों और निर्णायक मंडल की पूरी टीम होगी, जबकि पुरुष केवल दर्शक बनकर सहयोग करेंगे।

इस पहल से यह साबित हो गया कि यहां की होली में अब महिलाओं की भी समान भागीदारी है, और यह परंपरा समाज में बदलाव की ओर इशारा करती है।

वहीं, मटिहानी की होली में सिर्फ गांव वाले ही नहीं, बल्कि गांव से बाहर रहने वाले लोग भी इस पर्व का हिस्सा बनने के लिए वापस गांव आते हैं। होली में शामिल होने के बाद, जब लोग परदेश लौटते हैं, तो परिवार और समाज के लोग उन्हें अगले साल फिर से होली में आने की बात जरूर कहते हैं।

यह एक अद्भुत परंपरा है, जो लोगों के बीच एकता और भाईचारे का संदेश देती है।

परंपरा की शुरुआत और माड़वार समाज का योगदान

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि करीब 80-85 साल पहले राजस्थान से आए माड़वार समाज के एक परिवार ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। उन्होंने पहली बार दो पक्षों में बांटकर कुएं पर होली खेलने की परंपरा शुरू की थी। हालांकि वह परिवार अब गांव में नहीं है, लेकिन उनकी छोड़ी गई परंपरा आज भी जीवित है और इस होली का हिस्सा बन चुकी है।

गांव के बुजुर्गों का मानना है कि समाजवाद और परिवारवाद की बढ़ती ताकतों के बीच यह परंपरा सामाजिक एकता का प्रतीक है। वे इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि यह परंपरा सदियों तक जीवित रहे और गांव की सामाजिक एकता को बनाए रखे।

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