सब सो गए, वो उठा और मार डाले 5 लोग: दीदी-जीजा का सिर कुचला, भांजी और बेटे का भी कत्ल; नागपुर फैमिली किलर, पार्ट-2

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सब सो गए, वो उठा और मार डाले 5 लोग:  दीदी-जीजा का सिर कुचला, भांजी और बेटे का भी कत्ल; नागपुर फैमिली किलर, पार्ट-2
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सब सो गए, वो उठा और मार डाले 5 लोग: दीदी-जीजा का सिर कुचला, भांजी और बेटे का भी कत्ल; नागपुर फैमिली किलर, पार्ट-2

30 मई 2014, सुबह के करीब 5 बज रहे थे। नागपुर के नवरगांव का धनराज खेत में शौच के लिए गया। ‘अरे ये क्या चमक रहा है?’ धनराज टॉर्च लेकर जैसे ही आगे बढ़ा, कांप उठा… राख हो चुके पुआल की ढेर में इंसानी खोपड़ी, हाथ में कड़ा फंसा हुआ। ‘मेरे खेत में जली हुई ला

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करीब दो घंटे बाद अरौली थाने के एडिशनल पुलिस इंस्पेक्टर अरुण गुरमुले खेत पहुंच गए। राख टटोला तो चांदी का कड़ा, पायल, कान की बाली और मंगलसूत्र मिला। एपीआई गुरमुले को याद आया… कुछ दिन पहले गीता कावले थाने आई थी कि उसकी बेटी सविता लापता है। उसे उसका पति विवेक मारता-पीटता है। सविता की ससुराल भी इसी गांव में है। कहीं ये लाश उसी की तो नहीं है।

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एपीआई गुरमुले ने गीता कावले को थाने बुलाया और राख की ढेर में मिले गहने दिखाए। गीता चीख पड़ी- ‘ये गहने तो मेरी बेटी के हैं साहब। विवेक ने मार डाला उसे।’ फोरेंसिक रिपोर्ट में लाश और सविता के बच्चों का DNA मैच कर गया।

अब पुलिस विवेक की तलाश में जुट गई। आखिरकार 11 जून को वो पकड़ा गया। एडिशनल पुलिस इंस्पेक्टर गुरमुले ने थाने लाकर थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया तो विवेक टूट गया। कहने लगा- ‘साहब उसका गांव में कई लोगों के साथ चक्कर था। इसी बात पर एक दिन हमारी लड़ाई हो गई। गुस्से में मैंने खाट के पाये से पीटककर उसे मार डाला। फिर लाश जला दी।’

2015 में नागपुर सेशन कोर्ट ने विवेक को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन 2017 आते-आते ज्यादातर गवाह मुकर गए। पुलिस हाईकोर्ट में विवेक के खिलाफ ठोस सबूत नहीं पेश कर सकी और वो बरी हो गया। विवेक को बचाने में उसके जीजा कमलाकर ने बहुत मदद की थी।

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एक साल बाद यानी 10 जून 2018 की रात, विवेक गुस्से से तमतमाता हुआ अपने जीजा कमलाकर के दरवाजे पर पहुंचा। उसके हाथ में भारी भरकम लोहे की रॉड थी। वह मन ही मन कुछ बुदबुदा रहा था।

दैनिक NEWS4SOCIALकी सीरीज ‘मृत्युदंड’ में नागपुर फैमिली किलर केस के पार्ट-1 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-2 में आगे की कहानी…

10 जून 2018, रात के 8 बज रहे थे। बारिश में भीग रहा विवेक लोहे की रॉड लिए बहन अर्चना के घर के बाहर खड़ा था। उसके बार-बार आवाज लगाने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था। तभी वहां से 34-35 साल का एक आदमी गुजरा। विवेक ने जोर से आवाज लगाई- ‘ओ संजय…जीजा को फोन करके बता दो कि विवेक बाहर खड़ा है। मेरे फोन में बैट्री नहीं है।’

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संजय, विवेक के जीजा कमलाकर का पड़ोसी था। उसने फौरन नंबर डायल किया- ‘तुम्हारा साला कबसे बाहर खड़ा है। दरवाजा तो खोल दो।’ सुनते ही कमलाकर और अर्चना, भागे-भागे दरवाजे तक आए और जल्दी से गेट खोल दिया।

अर्चना कहने लगी- ‘बच्चे तेज आवाज में टीवी देख रहे थे। संडे है तो घर में मेहमान भी आए थे। घर में सारा काम बिखरा हुआ था। वही सब समेट रही थी। डोर बेल खराब है न, तो तुम्हारी आवाज नहीं सुन पाई।’

विवेक अंदर आ गया। कहने लगा- ‘इधर से जा रहा था, तभी बारिश होने लगी। सोचा यही रुक जाता हूं। जीजा से भी मिलना हो जाएगा।’

‘कोई नहीं अच्छा किए। कपड़े बदल लो, मैं खाना लगा देती हूं।’ किचन में जाते हुए अर्चना बोली।

तभी दूसरे कमरे से चारों बच्चे दौड़ते हुए आ गए। दो बच्चे विवेक के थे और दो बच्चे उसकी दीदी के। विवेक कपड़े बदलकर बच्चों के साथ खेलने लगा। तभी कमलाकर भी अपनी मां के साथ वहां आ गया। कमलाकर की मां को देखते ही विवेक बोल पड़ा- ‘आप कब आईं?’ वो कुछ बोलती इससे पहले ही अर्चना बोल पड़ी- ‘अरे आज मेरा देवर केशव आया था। उसी के साथ मां आई थीं। वो चला गया, ये रुक गईं।’

चले अब खाना खा लो। ये कहते हुए अर्चना थाली लेकर आ गई। विवेक ने खाना खाया।

सगी बहन अर्चना के घर पहुंचकर विवेक ने खाना खाया, सबसे बातें की। स्केच: संदीप पाल

फिर सब सोने जाने लगे। तभी विवेक बोल पड़ा- ‘दीदी मेरी बाइक बाहर ही खड़ी है। मैं अंदर करके आता हूं।’

विवेक बाहर गया। मोटरसाइकल लाकर अंदर खड़ी की और लोहे की रॉड बाउंड्री के बाहर छिपा दी।

अंदर आया तो अर्चना बोली- ‘हम लोग हॉल में सो जाते हैं। बच्चे पलंग पर हैं। तुम उसी कमरे में सोफे पर सो जाओ।’ विवेक जाकर सोफे पर सो गया।

रात के करीब 1 बजे। अचानक विवेक उठा और दरवाजा खोलकर दबे पांव बाहर निकला। बाउंड्री के बाहर रखी लोहे की रॉड उठाई और अंदर आ गया। सभी गहरी नींद में थे।

विवेक दबे पांव जीजा कमलाकर की तरफ बढ़ा और पूरी ताकत लगाकर उसके सिर पर 4-5 बार रॉड दे मारी। चीख निकलने से पहले ही कमलाकर की सांसें थम गईं।

विवेक ने अपने जीजा कमलाकर के सिर लोहे की रॉड से कुचल दिया। स्केच: संदीप पाल

खून के छीटे बगल में सो रही अर्चना के मुंह पर पड़े। उसकी आंख खुल गई। वह जोर से चिल्लाई- ‘कौन है? कौन है?’ तभी विवेक ने उसके सिर पर भी जोर से रॉड दे मारी। अर्चना का सिर फट गया। खून के छींटे दीवारों पर फैल गए। विवेक ने फिर से 2-3 बार रॉड उसके सिर पर मारी। अर्चना भी शांत पड़ गई।

इधर दूसरे कमरे में पलंग पर सो रही अर्चना की बेटी वेदांती जाग गई। वो रोते हुए आ गई और कहने लगी- ‘मामा…. मम्मी पापा को क्या हुआ। ये खून कहां से आया। क्या हुआ, कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो।’

खून से सने विवेक ने वेदांती को झट से उठाया और अर्चना की लाश के ऊपर पटक दिया। फिर 4-5 बार रॉड से वार कर दिया। ऑन द स्पॉट वेदांती खत्म हो गई। अब विवेक सोफे पर बैठकर सुस्ताने लगा। उसके हाथ में अब भी रॉड था। उससे खून टपक रहा था।

करीब 10 मिनट बाद विवेक सोफे से उठा। मन ही मन बुदबुदाया- ‘कई महीने से इसी वक्त का इंतजार था। तीन तो खत्म हो गए। बाकी जो बचे हैं, उनका भी राम नाम सत्य कर ही देता हूं।’

विवेक पलंग की तरफ बढ़ा। कमरे में अंधेरा था। उसने ध्यान से देखा तो पलंग पर 3 बच्चे एक दूसरे से लिपटकर सो रहे थे। उसने कंधे के ऊपर तक रॉड उठाई और एक के बाद एक कई वार कर डाला। बच्चों की चीख से कमरा गूंज उठा। तभी अर्चना की सास मीराबाई भागती हुई आ गई। सामने खून से लथपथ विवेक लोहे की रॉड लिए खड़ा था।

मीराबाई के तो प्राण ही सूख गए। हाथ-पैर कांपने लगे। वो कुछ बोलना चाहती थी पर हलक से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। विवेक कहने लगा- ‘आ जा बुढ़िया… तेरा भी काम तमाम ही कर देता हूं।’ उसने उसके सिर पर रॉड दे मारी। मीराबाई वहीं गिर पड़ी। विवेक ने पैरों से मीराबाई को धक्का दिया और फिर से उसके सिर पर रॉड मारने लगा। कुछ ही पल में वो शांत पड़ गई। पूरे कमरे में खून ही खून फैल गया।

विवेक ने लोहे की रॉड से कमलाकर की मां मीराबाई का भी सिर कुचल दिया। स्केच: संदीप पाल

अब विवेक ने अंगुली पर कुछ गिना और रॉड लेकर कमरे से निकल गया। बाहर आया तो मेन गेट पर ताला लगा था। उसने खून से सनी रॉड उठाई और बाउंड्री के बाहर फेंक दी। गेट फांदकर भाग निकला।

सुबह के करीब 5 बजे। अर्चना के घर से बच्चों के जोर-जोर से रोने की आवाज आ रही थी। पड़ोस में रहने वाली लता बच्चों का रोना सुनकर भागते-भागते वहां पहुंची। अर्चना की 11 साल की बेटी मिताली और विवेक की 6 साल की बेटी कात्यायनी रो रही थीं। मेन गेट लॉक था।

लता को देखते ही गेट के अंदर से ही मिताली बोली- ‘आंटी, मामा ने मां-पापा सबको को मार दिया।’

‘मार दिया, कैसे?’ घबराई हुई लता बोली।

‘रात में चीखने की आवाज सुनी तो नींद खुल गई। देखा मामा रॉड से मम्मी को मार रहे थे। पास में ही पापा की लाश पड़ी थी। तभी वेदांती रोते हुए पलंग से उठकर खड़ी हो गई। मामा ने उसे भी रॉड से मार दिया। मैं डर गई और आंख बंद कर ली। जब मामा चले गए तो देखा कि उन्होंने सबको मार दिया है। सिर्फ मैं और कात्यायनी ही बची हैं।’ इतना कहते-कहते मिताली जोर-जोर से रोने लगी।

मिताली के बातें सुनते ही लता लगभग दौड़ते हुए अपने घर गई। बेटे भूषण से बोली- ‘जल्दी चलो कमलाकर के घर। मिताली के मामा ने पूरे परिवार को मार डाला है। कमलाकर के भाई केशव को फोन करो।’

लता के बेटे भूषण ने केशव को फोन पर सारी बात बताई। मर्डर की बात सुनते ही केशव बोल पड़ा- ‘कल रात ही तो मैं वहां से आया हूं। सुबह-सबह मर्डर। मजाक कर रहे हो क्या?’

भूषण बोला- ‘भइया, सही कह रहा हूं। मिताली और कात्यायनी घर के बाहर हैं। आस पास के लोग भी जुट गए हैं। बच्चों के फ्रॉक पर भी खून लगा है।’

कुछ ही देर में केशव वहां आ गया। बाउंड्री फांदकर केशव और कॉलोनी वाले अंदर घुसे। देखा- पूरे घर में जगह-जगह खून फैला पड़ा था। 55 साल का कमलाकर, उसकी 44 साल की पत्नी अर्चना, 14 साल की बेटी वेदांती की लाशें पड़ी थीं। सभी के सिर कुचले हुए। किचन के पास 75 साल की मीराबाई की लाश थी। केशव अंदर कमरे में गया। पलंग पर चार साल का कृष्णा पड़ा हुआ था। खून से सना, उसका मुंह, नाक, सिर सब बुरी तरह कुचले हुए थे।

लता बोल पड़ी- ‘ये तो विवेक का बेटा कृष्णा है। उसने अपने बेटे को भी नहीं छोड़ा। हाय…! पहले पत्नी का मर्डर किया था और अब इन लोगों का। अर्चना इतने साल से विवेक के दोनों बच्चे कात्यायनी और कृष्णा को पाल रही थी। इसने उसी के परिवार को खत्म कर दिया।’

कमलाकर के बेड पर पड़ी वेदांती और कृष्णा की लाशें।

इधर, अराधना नगर में पेट्रोलिंग कर रहा एक कॉन्स्टेबल नंदनवन पुलिस स्टेशन पहुंचा। इंस्पेक्टर मुकुल सलुंके से हड़बड़ाते हुए बोला- ‘सर, अराधना नगर में मास किलिंग हो गई है। जल्दी चलिए। लोगों की भीड़ जुटी है। सभी कह रहे हैं कि पावनकर परिवार के 5 लोगों का मर्डर हो गया है।’

15 मिनट के भीतर इंस्पेक्टर मुकुल सलुंके अपनी टीम के साथ अराधना नगर पहुंच गए। देखा, एक घर के सामने भीड़ लगी थी। पुलिस को देखते ही केशव बिलखते हुए बोला- ‘साहब, मेरा पूरा परिवार बर्बाद हो गया। अब कोई नहीं बचा। विवेक ने श्मशान बना दिया। भीतर 5 लोगों की लाश पड़ी हैं। दो बच्चियां ही जिंदा बची हैं। एक मेरे भाई की बेटी मिताली और दूसरी विवेक की बेटी कात्यायनी।’

‘विवेक कौन है? तुम्हें कैसे पता कि इसी ने सभी मारा है।’, इंस्पेक्टर मुकुल ने दोहराते हुए पूछा।

‘सर, विवेक मेरी भाभी अर्चना का भाई है। कल रात वो यहां आया था। उसकी बाइक और चाबी पड़ी हैं। पड़ोसी लता और संजय शेंद्रे ने उसे देखा था। मिताली और कात्यायनी ने उसे मर्डर करते देखा है।’

इंस्पेक्टर मुकुल सोचने लगे- ‘जब सभी को मारा, तो फिर ये दोनों बच्चे कैसे बच गए? उसने अपने बेटे कृष्णा को क्यों मार दिया?’

उन्होंने कॉन्स्टेबल से कहा- ‘सभी लाशें बाहर निकालो और पोस्टमार्टम के लिए भेजो। खून के सैंपल कलेक्ट करो। जिस हथियार से मारा है उसे भी ढूंढो।’

एक-एक करके पांचों लाश बाहर निकाली गईं। तभी पड़ोसी संजय शेंद्रे भागते-भागते आया। कहने लगा- ‘साहब… सामने वाली बाउंड्री के बाहर एक भारी भरकम रॉड पड़ा है। उस पर खून लगे हैं।’

इंस्पेक्टर ने कॉन्स्टेबल से कहा- ‘फौरन रॉड को सीज कर लो।’

फिर इंस्पेक्टर, केशव से बोले- ‘ये बच्चे डरे हुए हैं। एक-दो दिन बाद इनका बयान लूंगा।’

‘वैसे विवेक रहता कहां है?’ इंस्पेक्टर ने केशव से पूछा।

‘सर उसका गांव तो नवरगांव में है, लेकिन वो इधर ही कहीं किराए के मकान में रहता था। बाकी मुझे नहीं पता।’

इंस्पेक्टर मुकुल सलुंके ने 302 यानी हत्या और 201 यानी सबूत मिटाने की धारा लगाकर विवेक के खिलाफ जांच शुरू कर दी। अखबार में पोस्टर निकाले गए। विवेक के दोस्त-रिश्तेदारो के घर जाकर पुलिस उसे ढूंढने लगी। इंस्पेक्टर ने एक टीम उसके गांव नवरगांव भी भेज दी।

घटना के 3 दिन बाद यानी 14 जून को पुलिस को उस मकान तक पहुंच गई, जहां विवेक किराए पर रहता था। इंस्पेक्टर ने मकान मालिक को एक फोटो दिखाते हुए पूछा, ‘इस आदमी को देखा है।’

‘साहब, ये तो विवेक है, मेरे यहां फरवरी से रह रहा है। दो-तीन दिन से घर नहीं आया है।’

पुलिस विवेक के कमरे का ताला तोड़कर अंदर घुस गई। एक कोने में बैग रखा था। खोला गया तो उसमें खून से रंगा जींस-शर्ट मिला। दूसरे कोने में बने रैक पर कुछ किताबें और पूजा-पाठ के सामान मिले। एक कॉन्स्टेबल ने किताबें उलटना-पलटना शुरू किया तो एक पोस्टर मिला। जिस पर क्रॉस का निशान लगा था। नीली स्याही से मराठी में लिखा था, ‘मन ईश्वर है। मन को समझाया मैंने, विवेक से बड़ा कोई नहीं। सविता मेली, कमलाकर मेला, आज पांड्या मेला, विवेक संग प्रिया/सविता।’ यानी- सविता को मारा, कमलाकर को मारा, बच्चों को मारा।

पुलिस को विवेक के मकान में खून से सने कपड़े और एक पोस्टर मिला। स्केच: संदीप पाल

इधर, नवरगांव से पुलिस टीम वापस लौटी और इंस्पेक्टर सलुंके को बताया-‘साहब, वहां तो बस उसकी बूढ़ी मां है। उसे भी कुछ नहीं पता। गांववालों को भी कुछ पता नहीं है। सभी का कहना है कि विवेक बचपन से ही गुस्सैले मिजाज का था। कुछ साल पहले उसने अपनी बीवी को भी मार डाला था। तबसे गांववालों ने उसके घरवालों से रिश्ता-नाता तोड़ लिया है।’

इंस्पेक्टर सलुंके सोच में पड़ गए कि आखिर विवेक ने बहन-बहनोई और भांजी को इतनी बेरहमी से क्यों मारा? उसने अपने बेटे कृष्णा को क्यों मार डाला? पूरी कहानी नागपुर फैमिली किलर पार्ट-3 में…

(नोट- यह सच्ची कहानी पुलिस चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, एडवोकेट मोहम्मद अतीक और अभय जिखर, रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर मुकुल सलुंके और कमलाकर पावनकर के भाई केशव पावनकर से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा है।)

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