सत्ता की हनक का इस्तेमाल करते रहे हैं लालू यादव और नीतीश कुमार
पटना: सत्ता में हनक का खेल पुराना है। हां, सत्ता से खेल रहे राजनेताओं के तरीके में जरूर अंतर रहा है। वर्तमान की बात करें तो आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार भी अपने-अपने तरीके से नौकरशाह को ‘औकात’ दिखाते रहे हैं। मगर, लालू प्रसाद का अंदाज निराला था। रही नीतीश कुमार की बात तो वे सौम्य अंदाज में व्यवहार कर नौकरशाह को उनके अस्तित्व का भान कराते रहे हैं। सत्ता में हनक बरकरार रखने को लेकर लालू प्रसाद यादव के कई किस्से मशहूर हैं। कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री थे तो कई पदाधिकारी सिर्फ इसलिए लालू यादव के करीब हो गए कि वे लालू प्रसाद की खैनी खाने की आदत को जानकर उनके सामने ही खैनी बना कर देते थे। इस आदत का असर यह हुआ कि सार्वजनिक स्थल पर भी लालू प्रसाद अधिकारी से खैनी बनवाते थे। उनके करीबी नेताओं का मानना था कि उस खास घड़ी में लालू प्रसाद का टारगेट आम आवाम के भीतर से डर निकालना रहता था। याद कीजिए लालू प्रसाद के कार्यकाल में ब्लॉक लेवल के पदाधिकारी एक अनजाने भय से ग्रस्त रहते थे। राजद का कोई कार्यकर्ता भी ब्लॉक के अधिकारियों पर भरी पड़ता था।
नौटंकी के माहिर थे लालू
लालू यादव जमीनी नेता रहे हैं। उन्हें अधिकारियों के रुआब तोड़ने में काफी मजा आता था। यह पदाधिकारी चाहे संघटन के भीतर भी क्यों न हो। इसलिए कभी नौकरशाह के साथ बैठक कर रहे हों या दल के पदाधिकारियों के साथ, वे पारखी नजर के साथ स्वयं को जागरूक रखते थे। उनके करीबी कहते हैं कि उन्हें बैठक के दौरान पता रहता है कि पीकदान किधर रखा है, पर जानबूझ कर वे जिधर पीकदान रखा है, उसकी दूसरी तरफ थूकने का नाटक करते हैं। वैसे अधिकारी जो लालू यादव के सदैव करीब रहना चाहते हैं, वे बड़ी हड़बड़ी के साथ पीकदान उठाकर उनकी तरफ कर देते हैं।
लालू प्रसाद के बैठने का स्टाइल भी निराला
कहा जाता है कि जब लालू प्रसाद किसी अधिकारी को बुलाते हैं तो वे दो कुर्सी रखते हैं। एक पर बैठते हैं और दूसरे पर पांव रखते हैं। ऐसे में अधिकारी जब उनसे मिलकर राज्य के हालात बताना चाहता हो या अपनी कोई निजी बात या कोई सीक्रेट बताना चाहता हो तो ऐसे में उसके पास सिवाय खड़े रहने का कोई विकल्प नहीं। और लालू प्रसाद यादव का यह व्यवहार मानसिक तनाव तो सामने वाले अधिकारी को दे ही जाता है। जैसा कि पहले कहा कि लालू प्रसाद यादव की नजर बहुत पारखी थी। वह जैसे ही देख लेते कि अधिकारी तनाव में है, वह स्वयं आवाज देकर कुर्सी मंगवाते और उस व्यक्ति से यह कहने से भी नहीं चूकते कि जब पता है तो पहले से कुर्सी रख देते न रे बुड़बक। यह कह कर मुस्कुराते लालू प्रसाद अधिकारी को बैठने के लिए कहते थे, लेकिन तब तक अधिकारी का मानमर्दन हो चुका होता है।
अंदाज तो नीतीश कुमार का निराला है!
अधिकारियों के प्रति व्यवहार में नीतीश कुमार का कोई जवाब नहीं। ऐसा कई बार मौका आया जब राजनीतिज्ञ और अधिकारी में भिड़ंत हो जाती है तो उनका झुकाव अधिकारी की तरफ होता है। वैसे भी अधिकारियों के सहारे सत्ता चलाने और गठबंधन दल के मंत्रियों पर अंकुश रखने में वे अधिकारियों की सहायता लेते रहते हैं। भाजपा के कई मंत्रियों ने तो अपनी इस परेशानी यानी अफसर हावी हैं, को सार्वजनिक भी किया। राजद के सुधाकर सिंह हों या प्रो चंद्रशेखर, सभी अफसरों पर आरोप लगाया। पर नीतीश कुमार अधिकारियों के पक्ष में खड़े रहे।
क्या है नीतीश कुमार का तरीका?
कहते हैं कि अगर किसी अधिकारी से नीतीश कुमार नाराज हैं तो वे उस से मिलते ही नहीं। चाहे वो कितनी अर्जियां डाले। इस से एक कदम गर आगे बढ़े तो स्थानांतरण उनका एक महत्वपूर्ण हथियार होता है और वे तब अधिकारी की सीमा भी तय कर देते हैं। पर वे कभी शारीरिक और मानसिक तनाव से अधिकारी को नहीं गुजारते।
क्या थी थावे की घटना?
चर्चा है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव मंगलवार की सुबह थावे मंदिर में पूजा करने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान तेज बारिश हो रही थी। इस खास खड़ी में हथुआ के एसडीपीओ अनुराग कुमार ने लालू प्रसाद को बारिश से बचाने के लिए उन्हे छाते से ढक कर चल रहे थे। अब इस पर पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने अधिकारी पर कार्रवाई की मांग करते यह कह डाला कि ‘लालू यादव जब मुख्यमंत्री थे तब आईएएस अधिकारी उनका थूकदान उठाया करते थे, अब तो गनीमत है कि एसडीपीओ साहब लालू के लिए छाता उठाकर चल रहे हैं।
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हालंकि विरोध करने को ले कर कोई भी स्वतंत्र है पर इस घटना को राजनीतिक जामा भाजपा पहना रही है। इस घटना को लालू प्रसाद की उम्र, उनका राजनीतिक कद और समय को भी ध्यान में रखना चाहिए। यह एक सामान्य कटसी है। बुजुर्ग के प्रति सेवा भाव है। राजनीत करने के लिए तो खुला मैदान है। एक दूसरे को कठघरे में खड़ा का समय नहीं। अधिकारी अनुराग कुमार ने भी सफाई देते कहा कि लालू यादव को छाता लगाने का आरोप बिल्कुल निराधार है। वहां तेज बारिश हो रही थी। मेरे पास हथियार था। मैं शुरू से ही अपनी सुरक्षा के लिए छाता लिए हुआ था। लालू जी बुजुर्ग हैं, इसलिए गुड फेथ में मैंने यह काम किया।
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नौटंकी के माहिर थे लालू
लालू यादव जमीनी नेता रहे हैं। उन्हें अधिकारियों के रुआब तोड़ने में काफी मजा आता था। यह पदाधिकारी चाहे संघटन के भीतर भी क्यों न हो। इसलिए कभी नौकरशाह के साथ बैठक कर रहे हों या दल के पदाधिकारियों के साथ, वे पारखी नजर के साथ स्वयं को जागरूक रखते थे। उनके करीबी कहते हैं कि उन्हें बैठक के दौरान पता रहता है कि पीकदान किधर रखा है, पर जानबूझ कर वे जिधर पीकदान रखा है, उसकी दूसरी तरफ थूकने का नाटक करते हैं। वैसे अधिकारी जो लालू यादव के सदैव करीब रहना चाहते हैं, वे बड़ी हड़बड़ी के साथ पीकदान उठाकर उनकी तरफ कर देते हैं।
लालू प्रसाद के बैठने का स्टाइल भी निराला
कहा जाता है कि जब लालू प्रसाद किसी अधिकारी को बुलाते हैं तो वे दो कुर्सी रखते हैं। एक पर बैठते हैं और दूसरे पर पांव रखते हैं। ऐसे में अधिकारी जब उनसे मिलकर राज्य के हालात बताना चाहता हो या अपनी कोई निजी बात या कोई सीक्रेट बताना चाहता हो तो ऐसे में उसके पास सिवाय खड़े रहने का कोई विकल्प नहीं। और लालू प्रसाद यादव का यह व्यवहार मानसिक तनाव तो सामने वाले अधिकारी को दे ही जाता है। जैसा कि पहले कहा कि लालू प्रसाद यादव की नजर बहुत पारखी थी। वह जैसे ही देख लेते कि अधिकारी तनाव में है, वह स्वयं आवाज देकर कुर्सी मंगवाते और उस व्यक्ति से यह कहने से भी नहीं चूकते कि जब पता है तो पहले से कुर्सी रख देते न रे बुड़बक। यह कह कर मुस्कुराते लालू प्रसाद अधिकारी को बैठने के लिए कहते थे, लेकिन तब तक अधिकारी का मानमर्दन हो चुका होता है।
अंदाज तो नीतीश कुमार का निराला है!
अधिकारियों के प्रति व्यवहार में नीतीश कुमार का कोई जवाब नहीं। ऐसा कई बार मौका आया जब राजनीतिज्ञ और अधिकारी में भिड़ंत हो जाती है तो उनका झुकाव अधिकारी की तरफ होता है। वैसे भी अधिकारियों के सहारे सत्ता चलाने और गठबंधन दल के मंत्रियों पर अंकुश रखने में वे अधिकारियों की सहायता लेते रहते हैं। भाजपा के कई मंत्रियों ने तो अपनी इस परेशानी यानी अफसर हावी हैं, को सार्वजनिक भी किया। राजद के सुधाकर सिंह हों या प्रो चंद्रशेखर, सभी अफसरों पर आरोप लगाया। पर नीतीश कुमार अधिकारियों के पक्ष में खड़े रहे।
क्या है नीतीश कुमार का तरीका?
कहते हैं कि अगर किसी अधिकारी से नीतीश कुमार नाराज हैं तो वे उस से मिलते ही नहीं। चाहे वो कितनी अर्जियां डाले। इस से एक कदम गर आगे बढ़े तो स्थानांतरण उनका एक महत्वपूर्ण हथियार होता है और वे तब अधिकारी की सीमा भी तय कर देते हैं। पर वे कभी शारीरिक और मानसिक तनाव से अधिकारी को नहीं गुजारते।
क्या थी थावे की घटना?
चर्चा है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव मंगलवार की सुबह थावे मंदिर में पूजा करने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान तेज बारिश हो रही थी। इस खास खड़ी में हथुआ के एसडीपीओ अनुराग कुमार ने लालू प्रसाद को बारिश से बचाने के लिए उन्हे छाते से ढक कर चल रहे थे। अब इस पर पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने अधिकारी पर कार्रवाई की मांग करते यह कह डाला कि ‘लालू यादव जब मुख्यमंत्री थे तब आईएएस अधिकारी उनका थूकदान उठाया करते थे, अब तो गनीमत है कि एसडीपीओ साहब लालू के लिए छाता उठाकर चल रहे हैं।
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हालंकि विरोध करने को ले कर कोई भी स्वतंत्र है पर इस घटना को राजनीतिक जामा भाजपा पहना रही है। इस घटना को लालू प्रसाद की उम्र, उनका राजनीतिक कद और समय को भी ध्यान में रखना चाहिए। यह एक सामान्य कटसी है। बुजुर्ग के प्रति सेवा भाव है। राजनीत करने के लिए तो खुला मैदान है। एक दूसरे को कठघरे में खड़ा का समय नहीं। अधिकारी अनुराग कुमार ने भी सफाई देते कहा कि लालू यादव को छाता लगाने का आरोप बिल्कुल निराधार है। वहां तेज बारिश हो रही थी। मेरे पास हथियार था। मैं शुरू से ही अपनी सुरक्षा के लिए छाता लिए हुआ था। लालू जी बुजुर्ग हैं, इसलिए गुड फेथ में मैंने यह काम किया।