सच और लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व लेखकों के ऊपर : डॉ. रविभूषण
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पटना। राजनीति झूठ के साथ चल रही है। भारत और पूरी दुनिया में लोकतंत्र के गर्भ से फासीवाद जन्म ले रहा है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ तोड़ दिए गए हैं। ऐसे समय में सच, लोकतंत्र, संविधान, जीवन के मूल्य, भाईचारे की रक्षा का दायित्व लेखकों के ऊपर है। ये बातें आलोचक डॉ. रविभूषण ने जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के सभागार में आयोजित ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि हिन्दी पट्टी आज दक्षिणपंथियों का गढ़ बना हुआ है। ऐसे समय में हिंदी प्रदेश के लेखकों की भूमिका बढ़ जाती है। आज राजनीति ने बेशकीमती शब्दों को लील लिया है। बिहार में अभी भी चिंगारियां शेष हैं। वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि पुस्तकें अधिक लिखी जाएं, लेकिन उससे अधिक लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। कलाकारों से कहा कि आपलोग छोटे-छोटे गांव, पंचायत व जिले में पुस्तकालय खोलने की कोशिश करें। समारोह के अतिथियों व वक्ताओं ने बनारसी प्रसाद भोजपुरी की तस्वीर पर माल्यार्पण किया। जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध-संस्थान के डायरेक्टर नरेंद्र पाठक ने स्वागत वक्तव्य दिया। संयोजकीय वक्तव्य में अरविंद कुमार ने बताया कि बनारसी प्रसाद भोजपुरी भोजपुर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, संपादक और साहित्यकार थे। उनकी स्मृति में आरंभ हुए सम्मान समारोह के आज 35 साल हो गए हैं। इस बार 2018 में कहानी के लिए पूनम सिंह, 2019 में कविता के लिए डॉ. विनय कुमार, 2020 में कहानी के लिए रामदेव सिंह, 2021 में कविता के लिए अनिल विभाकर, 2022 में कहानी के लिए रतन वर्मा और 2023 में कविता के लिए विनय सौरभ के लिए घोषित सम्मान एक साथ दिया गया।
सम्मानित साहित्यकारों के प्रशस्ति-पत्र का पाठ अनीश अंकुर, सुधीर सुमन, प्रणय प्रियवंद, ओम प्रकाश मिश्र, बालमुकुंद व संजय कुमार कुंदन ने किया। इन कवियों और कहानीकारों के रचनात्मक महत्व पर सुनीता गुप्ता, राकेश रंजन, संतोष दीक्षित, शिवदयाल, सतीश कुमार राय एवं यादवेंद्र ने वक्तव्य दिया। सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य के बतौर आलोक धन्वा ने कहा कि कविताओं में स्त्रियां बेहतर कर रही हैं। अवधेश प्रीत ने कहा कि साहित्य आज राजनीति को परखने वाला मशाल है। अभिधा बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित डॉ. रविभूषण के निबंधों की पुस्तक ‘आजादी : सपना और हकीकत का लोकार्पण कथाकार व विचारक प्रेम कुमार मणि ने किया।
‘आज की कहानी और कविता पर विमर्श: समारोह के दूसरे सत्र में ‘आज की कहानी और कविता पर विमर्श हुआ। अध्यक्षता कवि विमल कुमार, मीरा श्रीवास्तव और आलोक धन्वा ने किया। कविता पर बोलते हुए कवि रंजीत वर्मा ने कहा कि भारतेंदु, निराला और शुक्ल पर हिन्दुत्ववाद का प्रभाव रहा है, जिसकी परंपरा आज उत्कर्ष पर पहुंच गयी है। आज का साहित्य जनांदोलन से कटा हुआ है। विमल कुमार ने कहा कि चीजों के सरलीकरण से बचना चाहिए। हर कवि के भीतर अंतर्विरोध होता है। डॉ. रविभूषण ने कहा कि साहित्यकारों की भूमिका को संपूर्णता में देखना चाहिए। आलोक धन्वा ने कहा कि कवियों में अच्छाई और बुराई दोनों होती है। बुराई को छोड़ देना चाहिए और जो सकारात्मक हो उसे ले लेना चाहिए। आज का समय बेहद खतरनाक है, ऐसे समय में हमारे बीच सम्मान होना चाहिए। मंच संचालन सुधीर सुमन ने किया।
यह हिन्दुस्तान अखबार की ऑटेमेटेड न्यूज फीड है, इसे लाइव हिन्दुस्तान की टीम ने संपादित नहीं किया है।
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पटना। राजनीति झूठ के साथ चल रही है। भारत और पूरी दुनिया में लोकतंत्र के गर्भ से फासीवाद जन्म ले रहा है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ तोड़ दिए गए हैं। ऐसे समय में सच, लोकतंत्र, संविधान, जीवन के मूल्य, भाईचारे की रक्षा का दायित्व लेखकों के ऊपर है। ये बातें आलोचक डॉ. रविभूषण ने जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के सभागार में आयोजित ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि हिन्दी पट्टी आज दक्षिणपंथियों का गढ़ बना हुआ है। ऐसे समय में हिंदी प्रदेश के लेखकों की भूमिका बढ़ जाती है। आज राजनीति ने बेशकीमती शब्दों को लील लिया है। बिहार में अभी भी चिंगारियां शेष हैं। वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने कहा कि पुस्तकें अधिक लिखी जाएं, लेकिन उससे अधिक लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। कलाकारों से कहा कि आपलोग छोटे-छोटे गांव, पंचायत व जिले में पुस्तकालय खोलने की कोशिश करें। समारोह के अतिथियों व वक्ताओं ने बनारसी प्रसाद भोजपुरी की तस्वीर पर माल्यार्पण किया। जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध-संस्थान के डायरेक्टर नरेंद्र पाठक ने स्वागत वक्तव्य दिया। संयोजकीय वक्तव्य में अरविंद कुमार ने बताया कि बनारसी प्रसाद भोजपुरी भोजपुर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, संपादक और साहित्यकार थे। उनकी स्मृति में आरंभ हुए सम्मान समारोह के आज 35 साल हो गए हैं। इस बार 2018 में कहानी के लिए पूनम सिंह, 2019 में कविता के लिए डॉ. विनय कुमार, 2020 में कहानी के लिए रामदेव सिंह, 2021 में कविता के लिए अनिल विभाकर, 2022 में कहानी के लिए रतन वर्मा और 2023 में कविता के लिए विनय सौरभ के लिए घोषित सम्मान एक साथ दिया गया।
सम्मानित साहित्यकारों के प्रशस्ति-पत्र का पाठ अनीश अंकुर, सुधीर सुमन, प्रणय प्रियवंद, ओम प्रकाश मिश्र, बालमुकुंद व संजय कुमार कुंदन ने किया। इन कवियों और कहानीकारों के रचनात्मक महत्व पर सुनीता गुप्ता, राकेश रंजन, संतोष दीक्षित, शिवदयाल, सतीश कुमार राय एवं यादवेंद्र ने वक्तव्य दिया। सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य के बतौर आलोक धन्वा ने कहा कि कविताओं में स्त्रियां बेहतर कर रही हैं। अवधेश प्रीत ने कहा कि साहित्य आज राजनीति को परखने वाला मशाल है। अभिधा बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित डॉ. रविभूषण के निबंधों की पुस्तक ‘आजादी : सपना और हकीकत का लोकार्पण कथाकार व विचारक प्रेम कुमार मणि ने किया।
‘आज की कहानी और कविता पर विमर्श: समारोह के दूसरे सत्र में ‘आज की कहानी और कविता पर विमर्श हुआ। अध्यक्षता कवि विमल कुमार, मीरा श्रीवास्तव और आलोक धन्वा ने किया। कविता पर बोलते हुए कवि रंजीत वर्मा ने कहा कि भारतेंदु, निराला और शुक्ल पर हिन्दुत्ववाद का प्रभाव रहा है, जिसकी परंपरा आज उत्कर्ष पर पहुंच गयी है। आज का साहित्य जनांदोलन से कटा हुआ है। विमल कुमार ने कहा कि चीजों के सरलीकरण से बचना चाहिए। हर कवि के भीतर अंतर्विरोध होता है। डॉ. रविभूषण ने कहा कि साहित्यकारों की भूमिका को संपूर्णता में देखना चाहिए। आलोक धन्वा ने कहा कि कवियों में अच्छाई और बुराई दोनों होती है। बुराई को छोड़ देना चाहिए और जो सकारात्मक हो उसे ले लेना चाहिए। आज का समय बेहद खतरनाक है, ऐसे समय में हमारे बीच सम्मान होना चाहिए। मंच संचालन सुधीर सुमन ने किया।
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