‘संदेह का लाभ’ के आधार पर बरी होने वाला निर्दोष: हाईकोर्ट ने बैंक का 6 साल पुराना आदेश किया रद्द, याचिकाकर्ता को दो माह में नियुक्ति के आदेश – Jaipur News

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‘संदेह का लाभ’ के आधार पर बरी होने वाला निर्दोष:  हाईकोर्ट ने बैंक का 6 साल पुराना आदेश किया रद्द, याचिकाकर्ता को दो माह में नियुक्ति के आदेश – Jaipur News
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‘संदेह का लाभ’ के आधार पर बरी होने वाला निर्दोष: हाईकोर्ट ने बैंक का 6 साल पुराना आदेश किया रद्द, याचिकाकर्ता को दो माह में नियुक्ति के आदेश – Jaipur News

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश देते हुए कहा कि संदेह का लाभ लेकर बरी होने वाला व्यक्ति भी निर्दोष होता हैं। केवल इस आधार पर की उसे सम्मानपूर्वक (बाइज्जत) बरी नहीं किया गया हैं। उसे नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता हैं।

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यह आदेश जस्टिस आनंद शर्मा की बैंच ने कृष्ण गोपाल शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिका में कहा गया था कि उसका चयन यूको बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर के पद पर हुआ था। लेकिन, बैंक ने केवल इस आधार पर उसे नियुक्ति नहीं दी कि उसे दो आपराधिक मामलों में अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए बरी किया था।

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बैंक की ओर से कहा गया था कि हमारी संस्था सार्वजनिक राष्ट्रीयकृत बैंक सेवा हैं। जिसके साथ जनता का विश्वास जुड़ा होता हैं। ऐसे में यहां उच्च स्तर की ईमानदारी की आवश्यकता होती हैं। जबकि याचिकाकर्ता को दोनों आपराधिक मामलों में अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी किया हैं।

अदालत ने अपने आदेश में बैंक के 24 जुलाई 2020 के आदेश को असंवैधानिक और मनमाना ठहराते हुए रद्द कर दिया। वहीं बैंक को निर्देश दिए है कि वह याचिकाकर्ता को दो माह में नियुक्ति दें।

याचिकाकर्ता ने 12 साल लड़ी कानूनी लड़ाई याचिकाकर्ता की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र लोढ़ा ने कहा कि याचिकाकर्ता का चयन 18 फरवरी 2013 को प्रोबेशनरी ऑफिसर के पद पर हुआ। प्रक्रिया के तहत उसने 2 अप्रेल 2013 को रीजनल ट्रेनिंग सेंटर में रिपोर्ट किया। वहां उसने घोषणा पत्र में अपने दो आपराधिक मुकदमों की जानकारी दी।

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जिसके बाद बैंक ने 4 अप्रेल 2013 को मुकदमे लंबित होने पर उसे नियुक्ति देने से मना कर दिया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए याचिकाकर्ता के लिए एक पद सुरक्षित रखने का निर्देश दिया। मुकदमा चलने के दौरान उसे दोनों मामलों में ट्रायल कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

इस पर हाईकोर्ट 1 जुलाई 2020 को याचिका को निस्तारित करते हुए बैंक को याचिकाकर्ता की नियुक्ति पर नए सिरे से विचार करने को कहा। याचिकाकर्ता ने बैंक को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। लेकिन बैंक ने 24 जुलाई 2020 को यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता को सम्मानपूर्वक बरी नहीं किया गया। इसलिए उसे नियुक्ति नहीं दी जा सकती हैं।

आजीविका के अवसर को खत्म नहीं किया जा सकता इस पर याचिकाकर्ता ने फिर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में बैंक का आदेश असंवैधानिक हैं। याचिकाकर्ता ने कभी भी अपने तथ्यों को नहीं छिपाया। आवेदन के समय ही उसने दोनों आपराधिक मुकदमों का खुलासा कर दिया था।

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वहीं इसका कोई तथ्य नहीं है कि याचिकाकर्ता को बरी करने का फैसला गलत था। केवल इस आधार पर कि उसे सम्मानपूर्वक बरी नहीं किया गया। उसके आजीविका के अवसर को खत्म नहीं किया जा सकता हैं।

अदालत ने कहा कि ‘संदेह का लाभ के आधार पर बरी होना भी कानून की नजर में निर्दोषिता हैं। अगर हर ‘संदेह का लाभ’ पाए व्यक्ति को हमेशा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए, तो आपराधिक न्याय प्रणाली ही दंड का माध्यम बन जाएगी।

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