संडे जज्बात- 13 साल की रेप विक्टिम को बेटी बनाया: वो पूछती-मुझे उल्टी-दर्द क्यों हो रहा; मैं कैसे बताती कि उसे दरिंदों ने प्रेग्नेंट कर दिया

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संडे जज्बात- 13 साल की रेप विक्टिम को बेटी बनाया:  वो पूछती-मुझे उल्टी-दर्द क्यों हो रहा; मैं कैसे बताती कि उसे दरिंदों ने प्रेग्नेंट कर दिया
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संडे जज्बात- 13 साल की रेप विक्टिम को बेटी बनाया: वो पूछती-मुझे उल्टी-दर्द क्यों हो रहा; मैं कैसे बताती कि उसे दरिंदों ने प्रेग्नेंट कर दिया

पंजाब के मोहाली का ‘प्रभु आसरा’ शेल्टर होम मशहूर है। यहां लोग अपने बच्चे, बूढ़े मां-बाप को छोड़कर चले जाते हैं। मैं इस शेल्टर होम की सेवादार राजिंदर कौर हूं।

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मैंने पिछले 20 सालों में कई ऐसे केस देखें हैं जिन्होंने इंसानी रिश्तों को लेकर मेरा नजरिया ही बदल दिया है। मैंने शेल्टर होम के बाहर झूला लगा रखा है, ताकि लोग बच्चों को कहीं फेंकने की बजाय झूले में डाल जाएं। फिर भी कई लोग अपनी चंद दिनों के बच्चों को शेल्टर होम के सामने सड़क पर फेंक जाते हैं। उन नाजुक दुधमुंहे बच्चों की खाल तक उधड़ जाती है, मुझे समझ नहीं आता कि लोग अपने ही बच्चे के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं। यहां 10-12 साल की रेप विक्टिम भी आती हैं।

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एक बार पुलिस लुधियाना से एक बच्ची लेकर मेरे पास आई। उसकी उम्र करीब 13 साल रही होगी। उसे देखते ही मैं समझ गई कि प्रेग्नेंट है।पुलिस ने बताया कि उसके साथ रेप हुआ था। फटे चीथड़ों में बलात्कारी उसे एक पार्क में फेंक गए थे। फिर बच्ची उसी पार्क में रहने लगी। पार्क के ठीक सामने गुरुद्वारा था। वो बच्ची दिन में गुरुद्वारे में खाना खा लेती थी और रात में उसी पार्क के एक बेंच पर सो जाती थी।

गुरुद्वारे आने-जाने वाले लोग भी उसपर तरस खाते। कभी उसे खाना देते तो कभी कपड़े दे जाते। जब कुछ महीने बाद उस लड़की का पेट निकलने लगा तो लोगों ने पुलिस को बुलाया और कहा कि बच्ची को यहां से ले जाओ। इस बच्ची को देखकर हमारे बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा।

मैं ये सुनकर परेशान हो गई कि जो लोग उसे खाना देते थे, उसका ख्याल रखते थे। वही लोग रेप की बात जानते ही पीछे हट गए। उसका पेट बाहर आने लगा तो इन्हीं लोगों को शर्म आने लगी। उन्हें लगने लगा कि उनके बच्चों पर बुरा असर होगा। लोग कितने दोगले होते हैं।

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पुलिस जब उस बच्ची के बारे में मुझे सबकुछ बता रही थी, तब मैं उसे एकटक देखे जा रही थी। वो डरी-सहमी सी चारों तरफ देख रही थी। उस मासूम बच्ची को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि उसके साथ हुआ क्या है। उसका पेट बाहर क्यों निकल रहा है। क्यों उसे उल्टी हो रही है। पेट में दर्द क्यों हो रहा है।

उस लड़की के हालात से देखकर मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि उसका ख्याल कैसे रखूं, कैसे उसे मजबूत बनाऊं। शेल्टर होम की बाकी बच्चियां भी उसे देखकर परेशान थीं कि उसका पेट क्यों निकल रहा है। वो बार-बार मुझसे पूछतीं लेकिन मैं ये बता ही नहीं पा रही थी कि उन दरिंदों ने बेचारी बच्ची के साथ क्या किया है। मैं ये बातें उन्हें समझा ही नहीं पा रही थी।

मुझे उसे देखकर लोगों पर गुस्सा आ रहा था। उसी दिन मैंने ठान लिया कि उसे अपनी बेटी बनाऊंगी। मेरे दो बेटे हैं और मैं हमेशा से एक बेटी चाहती थी। इसलिए मैंने सुरभि को अपनी बेटी मान लिया। उसके साथ मैंने एक नई जिंदगी शुरू की। हर वक्त ये सोचने लगी कि अपनी बेटी को इन हालातों से कैसे बाहर निकालूं।

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एक महीने बाद पुलिस दोबारा मेरे पास आई और कहा कि सुरभि को उसके घर भेजना है, लेकिन सुरभि अपने घर जाने को तैयार ही नहीं थी। घर जाने की बात सुनते ही वह मेरी कुर्सी के पीछे छिप गई। रोते हुए कहने लगी कि यहां से कहीं नहीं जाएगी। मैंने पुलिस को किसी तरह समझा-बुझा कर वापस भेजा।

पुलिस के जाने के बाद मैंने उससे पूछा कि तुम्हे घर क्यों नहीं जाना है? तो वह कहने लगी कि मैं नेपाल की हूं। वहां नानी मुझसे भीख मंगवाती हैं, इसलिए मुझे वहां दोबारा नहीं जाना है।

कुछ ही दिनों में वो मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गई। मैं उसे स्पेशल प्रेग्नेंट महिलाओं वाली डाइट देती थी। उसका मेडिकल चेकअप कराती थी और रोज उसे अपने पास सुलाती थी। एक महीने के बाद सुरभि ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया। डॉक्टरों ने बच्चा लाकर मेरी गोद में डाल दिया, उसे शहद भी मैंने ही चटाई थी।

वो बच्चा भी हमारे साथ शेल्टर होम में ही रहता था। सुरभि बच्ची थी, इसलिए उसके बेटे की देखभाल भी मैं ही करती थी। एक महीने बाद वो बच्चा बीमार रहने लगा। मैंने कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन सभी ने उसे निमोनिया बताया।

बच्चे की हालत बिगड़ने लगी, मैं फौरन अस्पताल ले गई। डॉक्टरों ने आधा घंटा उस बच्चे को बचाने की जद्दोजहद की, लेकिन उसकी धड़कन बंद हो गई।

डॉक्टरों ने उसकी लाश मेरी गोद में दी। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे आसरा लेकर कैसे जाऊं। सुरभि को क्या बताऊंगी। मैं उसे गोद में लेकर बैठी रही।

मैंने वापस बच्चे को उसी अस्पताल में रखा। आसरा आई और किसी से कुछ नहीं बताया। दोबारा अस्पताल गई और बच्चे को दफनाया।

वापस आसरा आई तो सुरभि तुरंत मेरे पास आई। मेरे हाथ खाली थे। बस मैंने इतना कहा कि हमने बहुत कोशिश की। वह जोर-जोर से मेरे गले लगकर रोने लगी। उस बच्चे से मेरा पता नहीं क्या रिश्ता था, मैं उसे आज तक नहीं भूल पाई। अब मेरे लिए सुरभि को जिंदा रखना, ठीक रखना बहुत जरूरी था। उसने कमरे से बाहर निकलना बंद कर दिया। खाना नहीं खाती थी। मैंने जैसे-तैसे सुरभि को संभाला।

राजिंदर कौर के साथ सुरभि।

मैंने तय किया कि ऐसी लड़कियों की हालत समझने के लिए फिर से पढ़ाई करूंगी। मैंने साइकोलॉजी में एमएसई की। यह देखने दुनिया के बाकी देशों में गई कि वहां ऐसे लोगों से कैसे निपटा जाता है।

वापस इंडिया आई तो मैंने एक दिन सुरभि से कहा कि सुनो बेटा, तुम मुझे मम्मी बोलती हो। देखो तुम्हारी मम्मी कितनी मोटी हो गई है। मैं बीमार हो जाऊंगी। तुम मेरे साथ रोज सुबह 5 बजे सैर करने चलोगी।

बस उसी दिन से सुरभि मेरे साथ सुबह सैर पर जाने लगी। सैर करते हुए मैं उसे कहानियां सुनाती थी।

मैंने पढ़ाई के लिए उसका हौंसला बढ़ाया, लेकिन वह पढ़ना नहीं चाहती थी।

अब मुझे लगा कि इसे खेल-कूद की तरफ ले जाऊं। जब मैंने उससे कहा तो कहने लगी कि नहीं मेरा बच्चा मर गया है। मेरे पेट में टांके लगे हैं। मैं खेलने नहीं चल पाऊंगी।

फिर मैंने उसे मैरीकॉम फिल्म दिखाई। फिल्म उसे अच्छी लगी। इसके बाद उसने कई खेलों को आजमाया, लेकिन उसका मन टेबल टेनिस और डांस में लगा।

डांस और टेबल टेनिस में उसने कई खिताब जीते। स्पेशल चिल्ड्रन कैटेगरी के ओलिंपिंक में उसने गोल्ड जीते। अब अगले साल चिली जाने की तैयारी में है। यह हमारे आश्रय की नेशनल स्टार है।

शेल्टर होम के कैंपस में पीच कलर के कपड़ों में टेनिस खेलती सुरभि।

अब वह मेरा दोपहर का खाना, रात का खाना बनाती है। मुझे सुबह-शाम सैर पर लेकर जाती है। उसकी जिंदगी धीरे-धीरे बदलने लगी।

मुझे महसूस हुआ कि अगर किसी को भी उसके बुरे हालात से निकालने की कोशिश करो तो वह निकल ही जाता है। हम ऐसे लोगों से बात ही नहीं करते। बेकार समझ कर उनके हाल पर छोड़ देते हैं।

एक और 10 साल की बच्ची आई थी। उसका भी रेप हुआ था। सौतेले पिता ने उसके साथ रेप किया था। वह 5वीं क्लास में पढ़ती थी और वह प्रेग्नेंट थी।

उसे उल्टियां हो रही थीं। पेट में दर्द था, लेकिन उसे यह समझाना मुश्किल था कि वह प्रेग्नेंट है। वह नहीं जानती थी कि उसके साथ रेप हुआ है। बताने पर भी यह समझ नहीं पाती कि रेप क्या होता है। छोटी बच्चियों के साथ इस तरह के होने वाले अपराध मुझे रुला देते हैं।

जिस दिन उसे दर्द शुरू हुआ, मैं बता नहीं सकती थी कि उसकी क्या हालत थी। मैं यह सोचकर बस रो रही थी कि आखिर एक छोटी सी बच्ची एक बच्चे को कैसे जन्म देगी।

उसे इतना दर्द हुआ कि वह बेहोश हो गई। उसे एडमिट कराना पड़ा। ऑपरेशन से बच्चा पैदा हुआ। इसके बाद यह बच्ची आठ दिन तक बेहोश रही। मुझे इन घटनाओं ने तोड़ कर रख दिया।

मेरे पास एक 80 साल की रेप पीड़िता बुजुर्ग भी आई थीं। 4 साल तक मेरे पास रहीं। वह 12 साल से घर से बाहर बेसहारा घूम रही थीं। उनका परिवार तो उनका अंतिम संस्कार तक कर चुका था।

कितने अफसोस की बात है कि बेटों के रहते हुए भी ऐसी मांओं को बेसहारा सड़क पर घूमना पड़ता है।

उनकी कहानी ये है कि एक औरत उनकी दोस्त बन गई थी, लेकिन वह बोलना बंद कर चुकी थीं। एक दिन जब उनकी दोस्त की मौत हो गई तब उस खबर को सुनकर वह अचानक फिर से बोलने लगीं।

फिर इन्होंने हमें बताया कि वह महाराष्ट्र की रहने वाली हैं और उनके साथ रेप हुआ था।

राजिंदर कौर के साथ दिख रही बुजुर्ग महिला के साथ 80 साल की उम्र में रेप हुआ था।

इसके अलावा हमारे आसरा में लोग छोटी-छोटी बच्चियों को भी छोड़कर चले जाते हैं। एक बच्चा तो पता नहीं किसी ने मेरे आसरे के पास रात के अंधेरे में सड़क पर छोड़ दिया था, जिसे हम उठा कर लाए थे।

इस शेल्टर होम को शुरू करने से पहले मेरे पास केमिस्ट की दुकानें थीं। उनसे अच्छा पैसा आता था, लेकिन मन समाज सेवा करने का होता था।

शुरू में हमने फ्री मेडिकल कैंप लगाए और लोगों को फ्री दवाएं दीं। उस दौरान मैंने देखा कि लोग रेप पीड़ितों को अस्पताल में छोड़कर चले जाते थे। बाद में डॉक्टर इनका ख्याल नहीं करते थे।

मुझे लगा कि मैं मेडिकल कैंप के जरिए लोगों की उतना ठीक से मदद नहीं कर पा रही हूं जितनी की होनी चाहिए।

आखिरकार दो कमरों से मैंने अपने पति के साथ ये ‘प्रभु आसरा’ शुरू किया, जहां आज ऐसे लोग आकर रहते हैं।

इसमें लावारिस बच्चे, बुजुर्ग और रेप विक्टिम हैं। बहुत सारे स्पेशल चाइल्ड भी हैं, जिनके मां-बाप इन्हें किसी काम का न समझकर यहां छोड़ गए हैं।

(नोट- सुरभि बदला हुआ नाम है।)

राजिंदर कौर ने ये सारी बातें NEWS4SOCIALरिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा की हैं।

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