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संडे जज्बात-बेटे का फोन आते ही घबरा जाती हूं: कर्नल की बीवी हूं फिर भी भगवान का नाम लेकर फोन उठाती हूं

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संडे जज्बात-बेटे का फोन आते ही घबरा जाती हूं:  कर्नल की बीवी हूं फिर भी भगवान का नाम लेकर फोन उठाती हूं

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संडे जज्बात-बेटे का फोन आते ही घबरा जाती हूं: कर्नल की बीवी हूं फिर भी भगवान का नाम लेकर फोन उठाती हूं

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मैं नीता सिंह, मेरा बेटा मनु सिंह आर्मी एविएशन में कैप्टन है। भोपाल शहर के बाहरी इलाके रक्षा विहार में रहती हूं। हाल ही में बेटे को घर आना था, हमने घूमने जाने के प्लान बना रखे थे। अचानक उसका मैसेज आया कि छुट्टियां कैंसिल हो गईं। छुट्टी कैंसिल होने की

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न तो बेटा फोन करता है और न बताता है कि कहां है, क्या सिचुएशन है। साल 2020 में ही बेटे का कमीशन हुआ था। उसकी पहली पोस्टिंग नॉर्थ ईस्ट में हुई थी। तब भी वह ऐसा ही करता था। हमें बस इतना ही बताता है कि सब ठीक है। उससे ज्यादा एक शब्द भी नहीं। मैं तो ये भी नहीं बता सकती कि इस वक्त उसकी पोस्टिंग कहां है।

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अपने बेटे के साथ नीता सिंह।

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बॉर्डर पर जब भी तनाव बढ़ता है तो आंखें टीवी पर टिक जाती हैं। बीते दिनों बेटे का केवल इतना सा मैसेज आता था कि ऑल गुड। हमारे लिए यही सबसे बड़ा सुकून होता है कि बच्चा सलामत है। कभी मैसेज न आए या फिर देर से आए तो चिंता में बार-बार फोन देखती रहती थी। एक मिनट के लिए भी हाथों से मोबाइल नहीं छूटता।

ऐसा लगता है कि बेटे की कॉल कहीं मिस न हो जाए। किचन में खाना बनाते वक्त भी मोबाइल साथ रहता है। दिन में कई दफा तो ये चेक करती हूं कि नेटवर्क तो है न, मोबाइल साइलेंट मोड पर तो नहीं है।

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जब बेटे का ऑल ओके मैसेज देख लेती हूं तो लगता है, दुनिया में इससे बड़ा सुकून और कुछ नहीं। बेटा सलामत है यही मेरे लिए सबकुछ है, एक मां के लिए इससे ज्यादा कुछ नहीं होता। मां हूं इसलिए कई बार डर जाती हूं, नर्वस हो जाती हूं, लेकिन पति और बेटी तो बहुत मजबूत हैं। पति भी आर्मी में कर्नल थे, अब रिटायर हो चुके हैं।

आर्मी वाले घरों में महिलाओं को बहुत हिम्मत रखनी पड़ती है। जैसे ही फोन की घंटी बजती है हम प्रार्थना करने लगते हैं कि सही सलामत रहें। एक मां होने के नाते किसी अनहोनी को लेकर डर तो लगता है, लेकिन दूसरी तरफ भगवान मुझे शक्ति भी देता है।

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नीता के बेटे मनु सिंह आर्मी एविएशन में कैप्टन हैं।

अंदर से एक आवाज आती है कि सब अच्छा होगा, अपने आप दिमाग बदल जाता है। गलत ख्याल आने पर सिर्फ प्रार्थना करती हूं। बुरे से बुरा भी मन में आता है, लेकिन इस बारे में बोलना बहुत मुश्किल है। बहुत तकलीफ देह है बोलना और कुछ नहीं बोल सकती हूं।

जंग की स्थिति में जब शहीदों के परिवारों को बिलखते हुए देखते हैं, जिनके पति, बेटे, भाई शहीद हुए , उनके परिवारों को देखते हैं तो बहुत दुख होता है, तकलीफ होती है। फिर भी अगर ये सोच लेंगे कि पति या बच्चों को बॉर्डर पर नहीं भेजना है तो देश कैसे चलेगा, देश कैसे सुरक्षित रहेगा।

बेटा जब चौथी क्लास में था, तब उसने अपने पापा को वर्दी में देखकर कहा था मैं भी फौज में जाऊंगा। तब हमें लगा था कि अभी छोटा है, बचपन में तो बच्चों के सपने हर दूसरे दिन बदलते हैं। उसके बाद से अगर बेटे से कोई पूछता बड़े होकर क्या बनोगे, तो तपाक से कहता आर्मी ऑफीसर। उसने स्कूल, कॉलेज सब जगह यही सपना देखा और इसके लिए काम किया। बड़ा हुआ तो कहता था आर्मी में न जा पाया तब किसी दूसरे ऑप्शन के बारे में सोचूंगा।

मेरे लिए यह सुनना अटपटा नहीं था क्योंकि हमेशा से वर्दी वाले माहौल में रही हूं। मेरे पिता भी आईपीएस ऑफीसर थे तो बेटे की इस जिद से कोई दिक्कत नहीं थी। मुझे लगा कि हां उसे आर्मी में जाना चाहिए। वैसे भी आर्मी ऑफीसर्स या डिफेंस वालों के बच्चे ज्यादातर सैनिक स्कूलों में पढ़ते हैं।

इन दिनों जो देश के आर्मी चीफ हैं उपेंद्र द्विवेदी, नेवी चीफ दिनेश त्रिपाठी और मेरे पति भी सब सैनिक स्कूल रीवा से ही पढ़े हुए हैं। वहां बच्चों को हर तरह से फौज में जाने की शिक्षा मिलती है। टीचर्स भी हौसला बढ़ाते हैं।

नीता सिंह अपने पति कर्नल पीके सिंह, बेटे मनु सिंह और बेटी के साथ।

सच कहूं तो मुझे तो बहुत प्राउड फील हुआ जब मेरे बेटे ने फौज में जाने की इच्छा जाहिर की। कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। कोई डर महसूस नहीं हुआ। जंग लड़ने पर कैसा महसूस होता है, बॉर्डर पर तनाव से कैसा महसूस होता है। इन सबसे पहले ही गुजर चुकी हूं।

मेरे पति बहुत टेंशन वाले माहौल में कई बार बॉर्डर पर रहे हैं। शादी से पहले भी वह श्रीलंका में एक सीक्रेट मिशन पर थे। शादी के बाद पाकिस्तान बॉर्डर पर तैनात रहे। ऐसे में चिंता तो होती है, लेकिन दूसरों को देख कर हौसला आता है। जब भी दूसरों की मां, पत्नियों और बच्चों को देखते हैं तो खुद-ब-खुद हौसला आ जाता है।

मां हू इसलिए चिंता तो होती है, लेकिन बेटे से जाहिर नहीं करती। अगर हम परेशान होंगे, लो फील करेंगे तो बच्चे को कैसे हौसला देंगे। बेटे के सामने कभी भी नर्वसनेस की बात ही नहीं करते हैं। बस यही कहते हैं कि अच्छे से अपनी ड्यूटी दो और अच्छा परफॉर्म करो।

नीता सिंह के घर पर रखे बेटे के अवॉर्ड।

मुझे याद है कि जब मेरी पहली डिलीवरी हुई तो पति बॉर्डर पर थे। वह अगले दिन घर आए थे। जब बेटा हुआ तब भी मेरे पति बॉर्डर पर थे। मैं अकेली अपने माता-पिता के पास थी। वह चार महीने के बाद घर आए थे। इन मौकों पर मैंने पति को बहुत मिस किया। आर्मी वालों की पत्नियों की कहानी बहुत अलग होती है। वह एक आम औरत से अलग होती हैं। आत्मनिर्भर होती हैं।

90 फीसदी आर्मी वाइफ को कार चलाना आता ही है। अपने सारे काम खुद करना होता है। बच्चों को पढ़ाना, उनका स्कूल, ट्यूशन, हमारा अपना एक दायरा बन जाता है। आत्मनिर्भर होना जरूरी होता है। मुझे याद है कि बेटी होने के चार महीने बाद जब मैं उसे लेकर अपने पति के पास गई थी तो वह ऐसी जगह पर रहते थे जहां मिट्‌टी के मकान थे क्योंकि बॉर्डर पर उस जगह पर पक्के मकान नहीं बनवा सकते हैं।

वहां छोटे बच्चे के साथ रहना अपने आप में बहुत बड़ी दिक्कत थी, लेकिन आप पति से नहीं बोल सकते हैं क्योंकि अगर ऐसी शिकायतें उनसे करने लगेंगे तो वह काम कैसे करेंगे। यही नहीं बारिशों में तो उन मकानों की दीवारें गिरने लगती थीं। एक और किस्सा मुझे बहुत याद आता है कि जिन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करता था, उस वक्त कॉल बुक करवानी पड़ती थी।

हाथ से डायल घुमा कर रिसीवर कान पर लगाना होता था। जब मैं फोन करने जाती थी तो पास में ही एक जवान बैठा रहता था। उधर एक्सचेंज में भी फोन सुना जा रहा होता था, जिस वजह से कोई बात ही नहीं कर पाते थे। बस इतना कह पाते थे कि हां कैसे हो, मैं ठीक हूं, और वहां सब ठीक है, हां यहां सब ठीक है। ये सब मुश्किल तो होता है, लेकिन अगर हम पत्नियां और मांएं इतनी मजबूत और आत्मनिर्भर न हों तो पति या बच्चे बॉर्डर पर नौकरी नहीं कर सकेंगे।

ये बातें नीता सिंह ने दैनिक NEWS4SOCIALरिपोर्टर मनीषा भल्ला के साथ शेयर की हैं…

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