शेखर गुप्ता का कॉलम: अभी हम युद्ध के कौन-से पायदान पर हैं?

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शेखर गुप्ता का कॉलम:  अभी हम युद्ध के कौन-से पायदान पर हैं?
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शेखर गुप्ता का कॉलम: अभी हम युद्ध के कौन-से पायदान पर हैं?

4 घंटे पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

भारत और पाकिस्तान तकरार बढ़ाने वाली सीढ़ी पर पैर रख चुके हैं, अब सवाल यह है कि इससे उतरने का मुकाम कब आएगा? पहलगाम इस संघर्ष की सीढ़ी का पहला पायदान था। 6/7 मई की दरमियानी रात ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने दूसरी सीढ़ी पर कदम रख दिया।

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जब मैं यह लेख लिख रहा था, तब जम्मू, पठानकोट और जैसलमेर में पाकिस्तान की ओर से ड्रोन-मिसाइलें दागे जा रहे थे। पाकिस्तान ने अप्रत्याशित रूप से कबूल किया है कि उसके दो जेएफ-2 लड़ाकू जेट विमान मार गिराए गए हैं, जबकि भारतीय सूत्रों का मानना है कि उन्होंने एक एफ-16 विमान को भी धराशायी किया है। घटनाएं बहुत तेजी से घट रही हैं, इसलिए मैं आंखों देखा हाल बताने की जगह वर्तमान संकट के कारण उभरे प्रमुख मसलों के बारे में चर्चा करूंगा।

पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हमले के बाद से हमारी चर्चाओं में आपस में जुड़ी तीन बातें उभरती रही हैं। ये हैं- ‘काइनेटिक’ (गतिशील) जवाबी कार्रवाई, ‘एस्केलेटरी लैडर’ (संघर्ष बढ़ाने वाली सीढ़ी) और ‘ऑफ-रैम्प’ (निकासी मार्ग)।

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वैसे, इन तीनों से पहले भी एक शब्द आता है जिसका इन दिनों शायद ही इस्तेमाल किया जाता है, जो कुछ अनजाना-सा है। और वह एक लैटिन शब्द है- ‘केसस बेली’ (युद्ध का कारण)। इस मामले में ‘केसस बेली’ पहलगाम है, और यह हैरानी और निराशा की बात है कि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मीडिया में भी इसे ओझल कर दिया गया है।

अगर वे हत्याएं न होतीं तो आज हम ये बातें न कर रहे होते। इसलिए पहलगाम संघर्ष की सीढ़ी का पहला पायदान है। पाकिस्तानी सत्ता तंत्र और उसके भाड़े के लोगों ने यह कांड क्यों किया, इसका विश्लेषण हम अगले लेख में करेंगे।

जिस सीढ़ी पर पैर रखे जा चुके हैं, उसके ऊपरी पायदानों से हम परिचित हैं। दूतावासों के कर्मचारियों की संख्या में कटौती की जाएगी, दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क टूटेगा और वीजा बंद हो जाएंगे। एक-दूसरे के हवाई मार्ग से विमान ले जाने पर रोक लगा दी जाएगी।

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और जहां भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है, वहीं पाकिस्तान जवाब में धमकी दे चुका है कि वह शिमला समझौते को ‘रद्द करने का अधिकार’ रखता है। संघर्ष को तेज करने वाले इन कदमों के साथ अक्सर यह सवाल उठाया जाता था कि क्या कोई गतिशील कार्रवाई की जाएगी? अगर की जाएगी तो कैसी?

गतिशील कार्रवाई का अर्थ यह माना जाता है कि अपना मकसद पूरा करने और अपना संदेश देने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया जाएगा; जो कूटनीतिक, सूचना केंद्रित, आर्थिक, कानूनी, प्रतिबंध केंद्रित आदि-आदि संघर्षों से अलग होगा। भारत ने 6 और 7 मई की रात उस सीढ़ी के इस पायदान पर कदम रख दिया था।

इसकी अगली रात पाकिस्तान ने उत्तरी और पश्चिमी सीमा के पास भारतीय हवाई अड्डों को अचानक निशाना बनाने की कोशिश की। वह कोई बड़ा नुकसान पहुंचाने या विमानों पर हमला करने की कोशिश नहीं कर रहा था। वह जिस तरह का आक्रमण कर रहा था, जिन हथियारों का इस्तेमाल कर रहा था और जो निशाने चुन रहा था उन सबके कारण एक और शब्द उभर रहा था, जिससे आपका परिचय जरूरी है।

यह है- ‘सीड’ (एसईएडी) यानी दुश्मन की हवाई सुरक्षा को कमजोर करना। कभी-कभी इसे ‘डेड’ (डीईएडी) कहा जाता है, जिसमें उसे नष्ट करने की बात की जाती है। अगर आप दुश्मन की हवाई सुरक्षा को थोड़ा भी कमजोर कर लेते हैं तो आपकी हवाई शक्ति को कार्रवाई करने की ज्यादा आजादी और सुरक्षा हासिल हो जाती है।

भारत ने 6/7 मई की रात जो हमले किए, उससे पहले ‘सीड’ वाली कार्रवाई नहीं की गई थी। यदि की गई होती तो भारतीय वायुसेना के हमलावरों की कार्रवाई को ज्यादा सुरक्षा हासिल होती, लेकिन वह हवाई हमले के अलार्म जैसा होता जो पाकिस्तानियों को जगा देता। इससे हम समझ सकते हैं कि हमारे हमलावरों को कितनी मुश्किल व खतरे का सामना करना पड़ रहा था।

दरअसल, पाकिस्तान ने उसकी अगली रात ‘सीड’ वाली कार्रवाई करने की कोशिश की। अगर इसमें उन्हें थोड़ी भी सफलता मिलती तो वह और बड़े हमले करता। भारत ने पाकिस्तान के हमलों को नाकाम कर दिया। पाकिस्तान ने अगली रात जो जवाब दिया, वह उपरोक्त सीढ़ी का अगला पायदान था।

यह हमें ‘निकासी मार्ग’ के मोड़ पर ला खड़ा करता है। यह ऐसा ही है जैसे आप किसी हाईवे पर जाते हुए थोड़ी देर आराम करना चाहते हैं। सामरिक विमर्श में इसे लड़ाई को विराम देना या अमन के लिए वार्ता की मेज पर आना कहा जाता है।

भारत और पाकिस्तान के मामले में रैम्प से उतरने की कार्रवाई अमूमन या तो विदेशी मध्यस्थता के कारण होती है (जैसे कारगिल में महीनों की लड़ाई के बाद या ऑपरेशन पराक्रम के दौरान दोनों सेनाओं की आमने-सामने की लंबी तैनाती के बाद हुआ था) या तब होती है, जब ऐसी स्थिति बन जाए कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा कर सकें।

पुलवामा को याद कीजिए। भारत ने जब पहली बार पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी अड्डों पर हमला किया था तब पाकिस्तान ने एक भारतीय पायलट को युद्धबंदी बना लिया था। भारत के दबाव के बाद उस पायलट की वापसी दोनों के लिए रैम्प से उतरने का बहाना बनी।

अब जो कुछ चल रहा है उसमें किसी नाटकीय सुलह का संकेत नहीं दिखता। बल्कि हर रात संघर्ष को और तेज करने वाली सीढ़ी के अगले पायदान पर कदम रखा जा रहा है। देर रात में की जाने वाली कार्रवाइयों को देखते हुए मैं उन लोगों को, जो इस घटनाक्रम पर हमेशा नजर रखे रहना चाहते हैं, यही सलाह दूंगा कि दिन में थोड़ी नींद ले लिया करें। यह वह सफर है जिसमें आपको ‘सीट बेल्ट हमेशा बांधे रखना’ होगा।

गतिशील कार्रवाई का पायदान गतिशील कार्रवाई का अर्थ माना जाता है अपना मकसद पूरा करने और संदेश देने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया जाएगा। भारत ने 6-7 मई की रात उस सीढ़ी के इस पायदान पर कदम रख दिया था। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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