शिवपुरी के 15 बंधुआ मजदूर महाराष्ट्र से मुक्त कराए गए: 7 बच्चे भी शामिल, कहा- नरक से लौटकर आए; 50 हजार रुपए की फिरौती मांगी थी – Shivpuri News

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शिवपुरी के 15 बंधुआ मजदूर महाराष्ट्र से मुक्त कराए गए:  7 बच्चे भी शामिल, कहा- नरक से लौटकर आए; 50 हजार रुपए की फिरौती मांगी थी – Shivpuri News
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शिवपुरी के 15 बंधुआ मजदूर महाराष्ट्र से मुक्त कराए गए: 7 बच्चे भी शामिल, कहा- नरक से लौटकर आए; 50 हजार रुपए की फिरौती मांगी थी – Shivpuri News

महाराष्ट्र से वापस लौटे मजदूर।

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महाराष्ट्र के सांगली से शिवपुरी के 8 आदिवासी मजदूर और उनके 7 बच्चों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया गया है। शिवपुरी के करेरा तहसील के ग्राम मुजरा के इन मजदूरों को एक दलाल गुना में काम दिलाने के बहाने महाराष्ट्र ले गया था।

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भगत नाम के दलाल ने इन मजदूरों को सांगली के एक कृषि फार्म पर बंधक बना लिया। मजदूरों के परिवार से प्रति व्यक्ति 50,000 रुपए की फिरौती मांगी गई और धमकी दी गई कि रुपए नहीं देने पर उन्हें घर नहीं जाने दिया जाएगा।

इस मामले की शिकायत सहरिया क्रांति संगठन के सदस्यों ने अमोला थाने में दर्ज कराई। संगठन के संयोजक संजय बेचैन ने जिला कलेक्टर रवीन्द्र कुमार चौधरी को स्थिति से अवगत कराया। कलेक्टर के निर्देश पर महाराष्ट्र पुलिस और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त अभियान में सभी बंधकों को मुक्त कराया गया।

8 मजदूरों और उनके 7 बच्चों को मुक्त कराया गया।

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मजदूर बोले- नरक से लौटकर आए हैं

मुक्त किए गए मजदूरों में बबलू, सुमन, रामेती, खेरू, उम्मेद, हरिबिलास, सुदामा, सपना और उनके सात बच्चे शामिल हैं। मुक्त कराई गई महिलाओं ने बताया कि उन्हें वहां जानवरों से भी बदतर स्थिति में रखा गया था। दिन-रात कड़ी मजदूरी करवाई जाती थी और अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं। एक महिला मजदूर ने कहा कि हम साक्षात नरक से लौटकर आए हैं। गांव वापस पहुंचने पर आदिवासी समुदाय ने ढोल-नगाड़ों के साथ अपने परिजनों का स्वागत किया। पूरे गांव में खुशी का माहौल है।

मजदूर पानी और बासी रोटी खाकर गुजारा कर रहे थे

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मजदूरों ने बताया कि खाने के लिए मुश्किल से एक वक्त का भोजन मिलता था। अगर हम थककर रुक जाते, तो गालियां और मारपीट होती थी। बच्चों को भी भूखा रखा जाता था। महिलाओं ने बताया कि वहां की स्थिति इतनी खराब थी कि कई बार उन्हें पानी और बासी रोटी खाकर दिन गुजारने पड़े। हमारे साथ ऐसे बर्ताव किया गया, जैसे हम इंसान नहीं, बल्कि गुलाम हों। वहीं, एक महिला ने कहा कि अगर हम विरोध करने की कोशिश करते, तो हमें धमकाया जाता कि घर वापस जाने के लिए 50 हजार रुपए देने होंगे। हमारे पास न पैसे थे और न कोई मदद। हमें लगा कि हम वहीं मर जाएंगे।

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