शरद पवार का मुद्दा, मुलायम सिंह यादव का साथ… प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गई थीं सोनिया गांधी h3>
लखनऊ: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने अध्यक्ष पद से रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की इस घोषणा ने देश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस से निकल कर अपनी अलग धारा की राजनीति करने वाले शरद पवार ने कांग्रेस के साथ मिलकर बाद के दिनों में राजनीति तो की, लेकिन उनके संबंध मधुर नहीं रहे। इसका कारण 1999 की वह घटना है, जिसने कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री पद की राह में कांटे बिछा दिए थे। महाराष्ट्र के इस कद्दावर नेता को तब उत्तर प्रदेश के सीनियर नेता रहे मुलायम सिंह यादव का साथ मिला था। मुलायम सिंह यादव और शरद पवार ने एक अप्रत्याशित जोड़ी बना ली थी। शरद पवार की राजनीति और मुलायम सिंह यादव के दांव ने देश की राजनीति को बदल दिया था। सोनिया के पीएम बनने के तमाम प्रयासों को इन दोनों नेताओं ने विफल कर दिया था।
मुलायम सिंह यादव का साथ मिलते ही राजनीति के दिग्गज शरद पवार ने ऐसा पासा फेंका, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़े बिछ गए। उस समीकरण ने देश की राजनीति को पलटकर रख दिया। सोनिया गांधी ने इस एक घटनाक्रम के बाद से कभी भी प्रधानमंत्री पद की इच्छा तक जाहिर नहीं की। दरअसल, मामला वर्ष 1999 का है। 17 अप्रैल, 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में विश्वास मत हार गए थे। इसके बाद तेजी से घटनाक्रम बदला। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र में सरकार बनाने का दावा पेश किया। सोनिया गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन में मीडिया से बातचीत में सोनिया ने दावा किया था कि हमारे पास 272 सांसद हैं। हमें उम्मीद है कि कुछ अन्य सांसदों का हमें समर्थन मिलेगा। तय था कि सोनिया देश की अगली प्रधानमंत्री बन सकती हैं।
गूंज उठा था सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा
सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बड़ी दावेदार बनी हुई थी। हालांकि, उन्होंने कभी इसका दावा नहीं किया था। हालांकि, कांग्रेस की ओर से उनके नाम की चर्चा थी। दावों के बावजूद सोनिया पर्याप्त नंबर जुटाने में कामयाब नहीं हो पा रही थीं। इसी बीच कांग्रेस के भीतर विद्रोह की आग भड़कने लगी। माना जा रहा था कि शरद पवार देश के प्रधानमंत्री बनने की रेस में सबसे आगे हैं, लेकिन उनके नाम पर चर्चा तक नहीं की गई। ऐसे में उनके नेतृत्व में कांग्रेस के भीतर का गुट सोनिया के पीएम बनने की राह में खड़ा हो गया। करीब एक माह बाद लोकसभा में कांग्रेस के तत्कालीन नेता शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा दिया। पवार ने तब कहा था कि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है।
शरद पवार की ओर से विदेशी मूल का मुद्दा उठाने के समय में उन्हें अप्रत्याशित रूप से मुलायम सिंह यादव का समर्थन मिल गया। मुलायम के शरद का समर्थन करने के कारण ही सोनिया गांधी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। सोनिया के पीएम की उम्मीदों पर ग्रहण लगाने के करीब एक माह बाद 15 मई 1999 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में विद्रोह हुआ।
यूपी से मिली थी सोनिया को निराशा
लोकसभा चुनाव 1998 में भाजपा को 182 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें से 57 सीटें उत्तर प्रदेश से आई थीं। कांग्रेस ने 141 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन, कांग्रेस को तब यूपी की एक भी सीट से जीत नहीं मिल पाई थी। मुलायम सिंह यादव के शरद पवार खेमे में जाने के कारण सोनिया को खासी निराशा हुई। यह उनके लिए झटके जैसा था। अगर वह प्रधानमंत्री बन भी जातीं तो लोकसभा में उनके साथ देश के सबसे बड़े राज्य का कोई प्रतिनिधि नहीं रहता। वहीं, सोनिया के लिए दूसरा झटका पवार विद्रोह था। लोकसभा सीटों के मामले में देश के दूसरे सबसे राज्य में पार्टी की स्थिति कमजोर हो गई थी। लोकसभा चुनाव 1998 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र में 33 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
सोनिया को झटके के बाद भी रहा कांग्रेस का साथ
शरद पवार ने सोनिया गांधी को झटका दिया। लेकिन, उन्हें राजनीति का माहिर खिलाड़ी ऐसे ही नहीं कहा जाता है। उन्होंने बाद में महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। हालांकि, मुलायम को अपने राजनीतिक स्टैंड का अलग ही अनुभव झेलना पड़ा। वर्ष 2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद शरद पवार मनमोहन सरकार का हिस्सा रहे। लेकिन, मुलायम सिंह यादव को सरकार में जगह नहीं मिली। मुलायम या सपा को यूपीए के साथ का उस प्रकार का इनाम नहीं मिला, लेकिन शरद पवार और मुलायम की मित्रता को लोग आज भी याद करते हैं। मुलायम के निधन पर शरद पवार ने उनकी दोस्ती को याद किया था।
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मुलायम सिंह यादव का साथ मिलते ही राजनीति के दिग्गज शरद पवार ने ऐसा पासा फेंका, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़े बिछ गए। उस समीकरण ने देश की राजनीति को पलटकर रख दिया। सोनिया गांधी ने इस एक घटनाक्रम के बाद से कभी भी प्रधानमंत्री पद की इच्छा तक जाहिर नहीं की। दरअसल, मामला वर्ष 1999 का है। 17 अप्रैल, 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में विश्वास मत हार गए थे। इसके बाद तेजी से घटनाक्रम बदला। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र में सरकार बनाने का दावा पेश किया। सोनिया गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन में मीडिया से बातचीत में सोनिया ने दावा किया था कि हमारे पास 272 सांसद हैं। हमें उम्मीद है कि कुछ अन्य सांसदों का हमें समर्थन मिलेगा। तय था कि सोनिया देश की अगली प्रधानमंत्री बन सकती हैं।
गूंज उठा था सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा
सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बड़ी दावेदार बनी हुई थी। हालांकि, उन्होंने कभी इसका दावा नहीं किया था। हालांकि, कांग्रेस की ओर से उनके नाम की चर्चा थी। दावों के बावजूद सोनिया पर्याप्त नंबर जुटाने में कामयाब नहीं हो पा रही थीं। इसी बीच कांग्रेस के भीतर विद्रोह की आग भड़कने लगी। माना जा रहा था कि शरद पवार देश के प्रधानमंत्री बनने की रेस में सबसे आगे हैं, लेकिन उनके नाम पर चर्चा तक नहीं की गई। ऐसे में उनके नेतृत्व में कांग्रेस के भीतर का गुट सोनिया के पीएम बनने की राह में खड़ा हो गया। करीब एक माह बाद लोकसभा में कांग्रेस के तत्कालीन नेता शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा दिया। पवार ने तब कहा था कि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है।
शरद पवार की ओर से विदेशी मूल का मुद्दा उठाने के समय में उन्हें अप्रत्याशित रूप से मुलायम सिंह यादव का समर्थन मिल गया। मुलायम के शरद का समर्थन करने के कारण ही सोनिया गांधी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। सोनिया के पीएम की उम्मीदों पर ग्रहण लगाने के करीब एक माह बाद 15 मई 1999 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में विद्रोह हुआ।
यूपी से मिली थी सोनिया को निराशा
लोकसभा चुनाव 1998 में भाजपा को 182 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें से 57 सीटें उत्तर प्रदेश से आई थीं। कांग्रेस ने 141 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन, कांग्रेस को तब यूपी की एक भी सीट से जीत नहीं मिल पाई थी। मुलायम सिंह यादव के शरद पवार खेमे में जाने के कारण सोनिया को खासी निराशा हुई। यह उनके लिए झटके जैसा था। अगर वह प्रधानमंत्री बन भी जातीं तो लोकसभा में उनके साथ देश के सबसे बड़े राज्य का कोई प्रतिनिधि नहीं रहता। वहीं, सोनिया के लिए दूसरा झटका पवार विद्रोह था। लोकसभा सीटों के मामले में देश के दूसरे सबसे राज्य में पार्टी की स्थिति कमजोर हो गई थी। लोकसभा चुनाव 1998 में कांग्रेस ने महाराष्ट्र में 33 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
सोनिया को झटके के बाद भी रहा कांग्रेस का साथ
शरद पवार ने सोनिया गांधी को झटका दिया। लेकिन, उन्हें राजनीति का माहिर खिलाड़ी ऐसे ही नहीं कहा जाता है। उन्होंने बाद में महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। हालांकि, मुलायम को अपने राजनीतिक स्टैंड का अलग ही अनुभव झेलना पड़ा। वर्ष 2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद शरद पवार मनमोहन सरकार का हिस्सा रहे। लेकिन, मुलायम सिंह यादव को सरकार में जगह नहीं मिली। मुलायम या सपा को यूपीए के साथ का उस प्रकार का इनाम नहीं मिला, लेकिन शरद पवार और मुलायम की मित्रता को लोग आज भी याद करते हैं। मुलायम के निधन पर शरद पवार ने उनकी दोस्ती को याद किया था।
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