शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन: जो केवल भगवान को ही मानता है, वह भगवान का ही हो जाता है- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News h3>
जीव ने राग-द्वैष के कारण जगत को अपनी बुद्धि में धारण कर रखा है। ययेदं धार्यते जगत्…अधिदेव अर्थात ब्रह्माजी आदि सभी देवता अलौकिक हैं। अधियज्ञ अर्थात अंतरयामी भगवान सबसे हृदय में रहते हुए भी निर्लिप्त होने के कारण अलौकिक हैं। जो केवल भगवान को ही मानत
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शुक्रवार को यह बात कही।
सबकुछ भगवान का ही स्वरूप
महाराजश्री ने सुनाया- सयुजा सखाया द्वा सुपर्णा समानं वृक्षं परिषस्वजाते। तयोः अन्यः पिप्पलं स्वादु अत्ति। अन्यः तु अनश्नन् अभिचाकशीति॥… एक साथ रहने वाले तथा परस्पर सखा भाव रहने वाले दो पक्षी जीवात्मा और परमात्मा एक ही वृक्ष (शरीर) का आसरा लेकर रहते हैं। इन दोनों में एक (जीवात्मा) तो उस वृक्ष के सुख-दु:ख रूपी कर्म फलों का स्वाद ले लेकर उपभोग करता है, पर दूसरा परमात्मा कुछ न खाता हुआ केवल देखता रहता है। संपूर्ण रूप बताने का अर्थ है कि जड़-चेतन, सत-असत जो कुछ भी है, वह सबकुछ भगवान का ही स्वरूप है। इस प्रकार जो मनुष्य भगवान के विराट रूप को जान लेता है, अंतकाल में मन के विचलित होने पर भी योग-भ्रष्ट नहीं होता, वरन् वह भगवान को ही प्राप्त होता है। कारण कि उसकी दृष्टि में जब भगवान के सिवाय कोई दूसरी सत्ता है ही नहीं तो फिर मन के विचलित होने का प्रश्न ही नहीं उठता। दूसरी सत्ता की मान्यता नहीं होने के कारण भक्त का मन जहां जाएगा, परमात्मा में ही जाएगा। इसलिए उसका मन विचलित हुए बिना योग-भ्रष्ट हो ही नहीं सकेगा। जब तक भक्त एक भगवान की सत्ता के अलावा दूसरी सत्ता को मानता है, तब तक ही मन विचलित होने की संभावना बनी रहती है। जो भगवान के अलावा दूसरी सत्ता को मानता ही नहीं है, उसका मन विचलित होने की संभावना ही नहीं रहती। एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।… एक के अलावा दूसरा है ही नहीं। हम दूसरे को मानकर भटके ही क्यों? इसलिए केवल एक ईश्वर को साधो तो सबकुछ सध जाएगा।