वेब सीरीज रिव्यू: सुष्मिता की दमदार परफॉर्मेंस, पर कमजोर स्क्रिप्ट के कारण नहीं बजी ‘ताली’
‘ताली’ की कहानी
सुष्मिता सेन की ‘ताली’ की कहानी श्रीगौरी सावंत की जिंदगी पर आधारित है। श्रीगौरी एक ट्रांसजेंडर हैं, जो अपने समुदाय के हितों के लिए लड़ाई लड़ती है। एक ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता, जिसने सड़क से लेकर कोर्ट-कचहरी तक लड़ाई लड़ी, ताकि किन्नरों को उनका हक मिले। तीसरे लिंग यानी थर्ड जेंडर के तौर पर देश में मान्यता मिले।
यहां देखें, ‘ताली’ का ट्रेलर
‘ताली’ वेब सीरीज रिव्यू
सुष्मिता सेन पूर्व मिस यूनिवर्स रह चुकी हैं। ऐसे में महिलाओं की खूबसूरती की ऐसी प्रतिमूर्ति को वेब सीरीज में एक किन्नर के किरदार में कास्ट करना, यकीनन एक बेहद बोल्ड कदम है। नेशनल अवॉर्ड जीत चुके डायरेक्टर रवि जाधव अपनी मराठी फिल्मों ‘नटरंग’, ‘बालगंधर्व’ और ‘बलक-पलक’ के लिए पहचाने जाते हैं। जाहिर तौर पर ‘ताली’ में सुष्मिता सेन की कास्टिंग के साथ ही उन्होंने इस वेब सीरीज की ओर सबका ध्यान खींचा है। ‘आर्या’ जैसी वेब सीरीज से ओटीटी के दर्शकों का दिल जीतने वाली सुष्मिता सेन ने भी श्रीगौरी सावंत के किरदार में पूरी ईमानदारी से अपनी आत्मा डाल दी है। हालांकि, इस पूरी कवायद का जो फलसफा सामने आया है, उसमें श्रीगौरी सावंत की जिंदगी के संघर्ष से जुड़े कुछ बेहतरीन पल तो हैं, लेकिन इस लंबी सीरीज को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह हर मोड़ पर आपको बांधने में सफल रहती है।
सीरीज की सबसे बड़ी कमी इसकी स्क्रिप्ट में है, जो किन्नरों की जिंदगी को छूती तो है, लेकिन उनकी झकझोर कर रख देने वाली सच्चाई को पूरी तरह से पर्दे पर रख नहीं पाती है। सीरीज में किन्नरों की कहानी को साफ-सुथरे और सतही तरीके से दिखाया गया है, इसलिए यह दिलों की गहराई तक पहुंचने से चूक जाती है। सीरीज की रफ्तार भी सुस्त है। ऐसे में कई बार मन में सवाल उठता है कि क्या इस कहानी को दो घंटे की फिल्म में दिखाना ज्यादा बेहतर होता?
शो में गौरी का बचपन और वर्तमान, दोनों कहानियां साथ-साथ चलती हैं। बचपन से ही उसे भीतर हो रहे बदलाव और बाहरी दुनिया से संघर्ष करना पड़ा। यह उसके शरीर में आ रहे बदलाव, मां बनने की इच्छा और किन्नर समुदाय में एक शक्तिशाली आवाज के रूप में उभरने की कहानी है। हालांकि, एक या दो सीन्स को छोड़कर, हम गौरी की ताकत और उसके द्वारा लाए गए बदलाव के किसी ठोस प्रभाव को महसूस नहीं करते हैं। सुष्मिता पूरी सीरीज में अपनी चौड़ी आंखों और किरदार के बदली गई आवाज के जरिए अपनी बात पर्दे पर रखती हैं।
सुष्मिता सेन का उच्चारण भी बोलचाल की मराठी और सटीक अंग्रेजी के बीच इधर से उधर झूलता रहता है। फिर भी, वह गौरी के किरदार के लिए जरूरी अंदाज और भाव ले आती हैं और बड़ी कुशलता से किरदार के भीतर चल रहे उथल-पुथल को दिखाती हैं। सुष्मिता की परफॉर्मेंस यकीनन इस पूरी सीरीज के लिए उस ‘गोंद’ की तरह है, जो इस असंतोषजनक कहानी के साथ आपको कुछ हद तक बांधे रखती है। ‘ताली’ के बाकी कलाकार भी अपने किरदार को अच्छे से निभा जाते हैं।
‘ताली’ का साउंडट्रैक कहानी में एक महत्वपूर्ण परत जोड़ता है। बीते जमाने की मुंबई की ड्रेसिंग सेंस और माहौल को बनाने में बारीकियों पर ध्यान दिया गया है। सुष्मिता सेन के मेकअप और बचपन से लेकर जवानी तक के बदलाव को पर्दे पर जिस तरह दिखाया गया है, वह चौंकाने वाला है।
क्यों देखें- खामियों के बावजूद, मेकर्स और सुष्मिता सेन, श्रीगौरी सावंत की अपरंपरागत कहानी को साहस और अटूट विश्वास के साथ ‘ताली’ के रूप में लेकर आए हैं और इसके लिए तालियां तो बजनी चाहिए।
‘ताली’ की कहानी
सुष्मिता सेन की ‘ताली’ की कहानी श्रीगौरी सावंत की जिंदगी पर आधारित है। श्रीगौरी एक ट्रांसजेंडर हैं, जो अपने समुदाय के हितों के लिए लड़ाई लड़ती है। एक ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता, जिसने सड़क से लेकर कोर्ट-कचहरी तक लड़ाई लड़ी, ताकि किन्नरों को उनका हक मिले। तीसरे लिंग यानी थर्ड जेंडर के तौर पर देश में मान्यता मिले।
यहां देखें, ‘ताली’ का ट्रेलर
‘ताली’ वेब सीरीज रिव्यू
सुष्मिता सेन पूर्व मिस यूनिवर्स रह चुकी हैं। ऐसे में महिलाओं की खूबसूरती की ऐसी प्रतिमूर्ति को वेब सीरीज में एक किन्नर के किरदार में कास्ट करना, यकीनन एक बेहद बोल्ड कदम है। नेशनल अवॉर्ड जीत चुके डायरेक्टर रवि जाधव अपनी मराठी फिल्मों ‘नटरंग’, ‘बालगंधर्व’ और ‘बलक-पलक’ के लिए पहचाने जाते हैं। जाहिर तौर पर ‘ताली’ में सुष्मिता सेन की कास्टिंग के साथ ही उन्होंने इस वेब सीरीज की ओर सबका ध्यान खींचा है। ‘आर्या’ जैसी वेब सीरीज से ओटीटी के दर्शकों का दिल जीतने वाली सुष्मिता सेन ने भी श्रीगौरी सावंत के किरदार में पूरी ईमानदारी से अपनी आत्मा डाल दी है। हालांकि, इस पूरी कवायद का जो फलसफा सामने आया है, उसमें श्रीगौरी सावंत की जिंदगी के संघर्ष से जुड़े कुछ बेहतरीन पल तो हैं, लेकिन इस लंबी सीरीज को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि यह हर मोड़ पर आपको बांधने में सफल रहती है।
सीरीज की सबसे बड़ी कमी इसकी स्क्रिप्ट में है, जो किन्नरों की जिंदगी को छूती तो है, लेकिन उनकी झकझोर कर रख देने वाली सच्चाई को पूरी तरह से पर्दे पर रख नहीं पाती है। सीरीज में किन्नरों की कहानी को साफ-सुथरे और सतही तरीके से दिखाया गया है, इसलिए यह दिलों की गहराई तक पहुंचने से चूक जाती है। सीरीज की रफ्तार भी सुस्त है। ऐसे में कई बार मन में सवाल उठता है कि क्या इस कहानी को दो घंटे की फिल्म में दिखाना ज्यादा बेहतर होता?
शो में गौरी का बचपन और वर्तमान, दोनों कहानियां साथ-साथ चलती हैं। बचपन से ही उसे भीतर हो रहे बदलाव और बाहरी दुनिया से संघर्ष करना पड़ा। यह उसके शरीर में आ रहे बदलाव, मां बनने की इच्छा और किन्नर समुदाय में एक शक्तिशाली आवाज के रूप में उभरने की कहानी है। हालांकि, एक या दो सीन्स को छोड़कर, हम गौरी की ताकत और उसके द्वारा लाए गए बदलाव के किसी ठोस प्रभाव को महसूस नहीं करते हैं। सुष्मिता पूरी सीरीज में अपनी चौड़ी आंखों और किरदार के बदली गई आवाज के जरिए अपनी बात पर्दे पर रखती हैं।
सुष्मिता सेन का उच्चारण भी बोलचाल की मराठी और सटीक अंग्रेजी के बीच इधर से उधर झूलता रहता है। फिर भी, वह गौरी के किरदार के लिए जरूरी अंदाज और भाव ले आती हैं और बड़ी कुशलता से किरदार के भीतर चल रहे उथल-पुथल को दिखाती हैं। सुष्मिता की परफॉर्मेंस यकीनन इस पूरी सीरीज के लिए उस ‘गोंद’ की तरह है, जो इस असंतोषजनक कहानी के साथ आपको कुछ हद तक बांधे रखती है। ‘ताली’ के बाकी कलाकार भी अपने किरदार को अच्छे से निभा जाते हैं।
‘ताली’ का साउंडट्रैक कहानी में एक महत्वपूर्ण परत जोड़ता है। बीते जमाने की मुंबई की ड्रेसिंग सेंस और माहौल को बनाने में बारीकियों पर ध्यान दिया गया है। सुष्मिता सेन के मेकअप और बचपन से लेकर जवानी तक के बदलाव को पर्दे पर जिस तरह दिखाया गया है, वह चौंकाने वाला है।
क्यों देखें- खामियों के बावजूद, मेकर्स और सुष्मिता सेन, श्रीगौरी सावंत की अपरंपरागत कहानी को साहस और अटूट विश्वास के साथ ‘ताली’ के रूप में लेकर आए हैं और इसके लिए तालियां तो बजनी चाहिए।