वीरेंद्र सहवाग कभी नहीं बनेंगे चीफ सिलेक्टर, इन शर्तों के आगे नहीं झुकने वाले वीरू

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वीरेंद्र सहवाग कभी नहीं बनेंगे चीफ सिलेक्टर, इन शर्तों के आगे नहीं झुकने वाले वीरू


वीरेंद्र सहवाग कभी नहीं बनेंगे चीफ सिलेक्टर, इन शर्तों के आगे नहीं झुकने वाले वीरू

नई दिल्ली: पूर्व भारतीय ओपनर वीरेंद्र सहवाग ने उन सारी रिपोर्ट्स को कोरी बकवास बताया है, जिसमें उन्हें चीफ सिलेक्टर पद का ऑफर देने की बात कही गई थी। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के सवालों के जवाब में वीरू ने कहा कि उनसे बीसीसीआई ने इस बारे में कभी कोई संपर्क नहीं साधा। याद हो कि स्टिंग ऑपरेशन कांड के बाद से भारतीय क्रिकेट के चीफ सिलेक्टर का पद खाली है। इस साल फरवरी में चेतन शर्मा को अपने पद से तब हाथ धोना पड़ा था, जब वह हिडन कैमरा में भारतीय प्लेयर्स और टीम सिलेक्शन से जुड़ी कई खुफिया बातों का खुलासा करते हुए पाए गए थे। तब से एक और पूर्व भारतीय ओपनर शिव सुंदर दास अंतरिम मुख्य चयनकर्ता बनकर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। चयनकर्ताओं के पैनल में एस शरत (साउथ), सुब्रतो बनर्जी (सेंट्रल), सलील अनकोला (वेस्ट) सरीखे मेंबर्स शामिल हैं।

क्या सहवाग बनेंगे चीफ सिलेक्टर?

बीसीसीआई एशिया कप और वर्ल्ड कप से पहले अपना चीफ सिलेक्टर कुर्सी पर बिठाना चाहता है, जिसके लिए भर्ती प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। बोर्ड ने साफ कर दिया है कि यह चयन समिति का अध्यक्ष नॉर्थ जोन से आएगा। ऐसे में हाल ही में संन्यास लेने वाले युवराज सिंह, गौतम गंभीर और हरभजन सिंह जैसे बड़े नाम दिमाग में आते हैं, लेकिन शर्तों के मुताबिक तीनों ने अभी तक पांच साल की सेवानिवृत्ति अवधि के मानदंडों को पूरा नहीं किया है। ऐसे में वीरेंद्र सहवाग पांच साल के संन्यास वाले ब्रेकेट में भी फिट बैठते हैं, लेकिन इतनी कम सैलरी पर तो शायद ही वह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हो।

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बड़े प्लेयर्स नहीं बनना चाहते चीफ सिलेक्टर?
चयन समिति के अध्यक्ष की सालाना सैलरी एक करोड़ रुपये होती है जबकि चार अन्य सदस्यों को 90 लाख रुपये का भुगतान होता है। आखिरी बार जब किसी प्रतिष्ठित पूर्व खिलाड़ी ने चयन समिति की अध्यक्षता की थी तो वह 2006 का दौर था, तब पूर्व कप्तान दिलीप वेंगसरकर (2006-2008) इसके चेयरमैन थे। उसके बाद कृष्णमाचारी श्रीकांत (2008-2012) टॉप पर थे। कमेंट्री और विज्ञापन के साथ-साथ अकादमियों से पूर्व क्रिकेटरों की कमाई मुख्य चयनकर्ता की सैलरी से कहीं ज्यादा हो जाती है, ऐसे में बड़े नाम इस पद पर बैठने से कतराते हैं।

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